रिश्तों की ठिठुरन
रिश्तों की ठिठुरन


सर्द हवाओं से मदन का पूरा जिस्म कांप रहा था।बुढ़ापे की मार ओर कमर दर्द ने उसे ओर कमजोर बना दिया था।गोमती ने खाट पर लेटे मदन को हिलाते हुए पूछा..,"आज दाड़की पर नही जानो का..? मदन ने आँख खोली चरमराती खाट पर करवट बदल कर गोमती को ओर देख बोला।
"आज तो जबरदस्त सर्दी लागे है,माहरी कमर दुखे है,का, करू भागबान जिसम ठंडा पड़ रव है।
गोमती ठंडे पड़े चूल्हे की ओर नजर दौड़ाकर भूख से सुकडती आंतों पर हाथ रख कर बोली।
"तो...आज फिर चूल्हा नाही जलेगो..?
सवालिया नज़रो से मदन की ओर देख पूछने लगी।कुछ देर मन मे उठते अनगिनत सवालो के सैलाब को रोकते हुए मदन को एकटक ताकती रही।
मदन मजबूरन चरमराती खाट से उठ बैठा।
"तू..जा,कमली से कुछ रुपये ले आ,आज की रोटी का इंतजाम कर ले,कल से में काम पे चला जाऊँगा।कहते हुए वह फिर खाट पर लेट गया।
सर्दी से उसका जिस्म थरथरा रहा था।जिस्म को बर्फ होते देख गोमती से बोला..,"जा....थोड़ी आगी जला दे, सर्दी बर्दाश नही हो रही।
गोमती मन के अनकहे दर्द को लेकर उठी।चबूतरे पर गिरे सूखे पत्तो को उठाकर तगारी में भर लाई।चिलम में पड़ी गर्म राख को उसमे डाल कर फूंक मारने लगी।आंतों में कहा प्राण बचे थे।जो आग जल पाती फिर भी अंतकरण से जोर लगाकर उसने उन पत्तो में आग पैदा की मदन के पास तगारी रख
कमली के घर की ओर उम्मीद की आस लेकर चल पड़ी।। कमली उसकी एकलौती बहू उसके बनाये हुए घोसले की मालकिन बन बैठी।बेटा जोरू का गुलाम निकला जैसा कहती, वैसा करता ,पूरी जिंदगी पाई,पाई जोड़ उसे पढ़ाया पत्थर तोड़ मेहनत कर गाँव मे छोटा सा मकान बनाकर इज्जत से बसर कर रहे थे।बेटे को सरकरी नोकरी लग गई थी।वह मैट्रिक की परीक्षा पास था।दफ्तर गाँव से थोड़ी दूरी पर था।मोटरसाइकिल भी अभी दो साल पहले ही कसवा दी थी।अभी साल भर पहले ही छोरे का ब्याह भी कर दिया था,सभी जिम्दारियों से मुक्त हो गए थे।उन्हें कहा मालूम था,कि बहू आने से परिस्थियां इस कदर बदल जाएगी।
पर वक्त की मार से कोई बचा है भला।दोनों ने माँ बाप को खेती की चौकीदारी के बहाने अलग कर दिया।खेत पर बनी झोपड़ी में पैर क्या रखा।घर तो अब कोसो दूर हो गया।खेत के नाम पर सुखी बंजर जमीन पड़ी थी।अब कोई साधन नही था कि खेती कर सके।बेटे को अपनी दफ्तरी ओर ब्याता से फुरसत मिले तो माँ बाप की सुध ले।
इन्ही विचारों के उधेड़ बुन में कब घर पहुँची पता ही नही चला।कमली ने अम्माँ को आते देख साकल चढ़ा दी...।,"बोली अम्माँ नेक देर से अइयो अभी हमाओ पूजा का समय हे गयो है,गोमती कुछ कहती इसके पहले ही किबाड़ बंद हो चुके थे।वह थक कर चूर हो चुकी थी,भूख जो थी कि अपना मुँह फाड़
रही थी।थोड़ी देर सुस्ताने के बहाने चबूतरे पर ही बैठ गई,बेटे बहू के होते हुए भी बीमारी और भुखमरी का मुह देखना पड़ रहा था।जे कलयुग की लीला जो ठहरी।तभी ललन ने अम्माँ को देखा, "बोला अम्माँ कब तक राह देखोगी भाभी कोनो पूजा,वूजा नही कर रही,हम अभी अंदर से हीआ रहे हैं साम तक भी
बैठी रही, तब भी उनकी पूजा खत्म नही होगी,ललन को घर के काम के लिए रख छोड़ा था।गोमती ने अपने बेटे को मोटरसाइकिल पर आते देखा।वह माँ को देख मुँह बनाकर बोला,"अम्माँ.. यहाँ काहे बैठी हो..?, आज कछु काम नाही का..?"थारे बापू की तबियत ठीक नाही है,
कुछ पैसे बास्ते कमली के पास आई थी।कब से बाट ज़ोह रही हु।बेटा अंदर गया गोमती भी उसके पीछे हो ली।बहूँ बेटे ने आपस मे कुछ बाते की।गोमती वापस आने लगी। तो कमली ने 50 का नोट हाथ मे देते हुए कहा,अम्माँ अभी इसी से गुजरा कर लो,बाद में देखती हु।कहकर दरवाजा हेड दिया।गोमती ने उन दोनों की बाते सुनी, कमली कह रही थी..,'ये सारे रुपये तुम शहर की बैंक में जाम कर दो,अम्माँ को पता चला तो आये दिन मांगने चली आयेगी।ओर हॉ तुम अपने काम के ओर पैसे बढ़ा लो,ललन के वास्ते एक कमरा ऊपर बनवा लेगे,जब काम होता है, तब मुआ घर ही नही होता।ये सारी बाते सुन गोमती उस 50 के नोट को गौर से देखते ही उसका कलेजा मुँह को आ रहा था।आज उसकी औकात एक नोकर से भी कम थी। सर्दी से उसके बदन पर एक सरसरी फेल रही थी।बहूँ बेटा पैसे की गर्मी से खुले बदन घूम रहे थे।वह दुकान से जरूरी सामान ले घर पहुँची।देखा तो मदन के खाट की चरमराहट बंद हो चुकी थी।वह हमेशा के लिए यह दुनियॉ छोड़ चुका था।बेटे के पैसे से खरीदा सामान गोमती के हाथ से छूटकर गिर गया। वही पड़े कम्बल के टुकड़े से उसको ढ़कने की कोशिश करने लगी।देखा तो ठंड उसे लील चुकी थी।वह दहाड़े मार,मार कर रोने लगी। भूखी आंतों ने भी अब उनका साथ देने से मना कर दिया।वह भी निस्तेज हो चुकीथी। शहर की बयार ने अब गाँव की ओर अपना रुख कर लिया था।