Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Vandanda Puntambekar

Drama

3  

Vandanda Puntambekar

Drama

उड़ान

उड़ान

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 माधव पिता की मौत की खबर सुन बेचैन हो उठा। अनमने मन से एक जोड़ी कपड़े बेग में डाल स्टेशन की ओर रवाना हो गया। आँखों से आंसुओं को समंदर बह निकला जल्दबाजी में जूतों के लेस बाँधना भी भूल गया। मन मे उठते अंतर्द्वंद्व के सैलाब को समेटते हुए दौड़ा -दौड़ा शहर से गांव की ओर भागा आज उसे अपनी बापू के मौत की खबर अंतर्मन को उद्वेलित कर गई ।

26 बरस के माधव की आंखों से झर -झर आंसू बह रहे थे। बस में चढ़ते वक्त उसे याद आया कि कलाई की घड़ी तो वह पहनना ही भूल गया उस घड़ी से उसकी बहुत सी यादें जुड़ी थी। बस अपनी रफ्तार पकड़ गांव की ओर प्रस्थान कर चुकी थी। उसके मानस पटल पर अपने पिता के गुजारे इतने वर्षों का साथ आज उसके मानस पटल पर बीते दिनों के अतीत का संघर्ष उसका साए की तरह पीछा कर रहे थे। अपने अतीत के यादों के साए में वह कहीं खो सा गया था।

तेज बारिश हो रही थी गांव की कच्ची पगडंडियों पर कीचड़ ही कीचड़ बापू अपने कंधे पर उठाकर उसे बोरी से ढककर स्कूल से घर लाया था। तब बापू के पैरों में चप्पल भी नहीं थी पैर कीचड़ में धसते जा रहे थे। बापू तेज गति से घर की ओर मुझे लेकर भाग रहा था। स्कूल से रोज मुझे लेने आता आज बहुत तेज बारिश हो रही थी। पूरी झोपड़ी पानी से तरबतर हो गई थी बापू ने मुझे गोद से उतारकर जल्दी से झोपड़ी पर पल्ली डाली मेरे भीगे कपड़े उतार कर जल्दी से सूखे कपड़े पहना दिए बापू के पूरे पैर कीचड़ से सने थे। पास की होद से पानी लेकर बापू ने फटी एड़ियों से रिस्ते खून के पैर धोए। बापू ने चूल्हा जलाकर मेरे गीले बालों को पोंछ मुझे चूल्हे के पास बिठाया और चाय बना कर पिलाई। अम्मा को मैंने कभी देखा ही नहीं था बापू कहते थे, कि वह टी.बी की बीमारी में चल बसी। बापू के पास दो बैल थे एक भोला और दूसरा किसन बापू सुबह से उठकर खेत जोतते इस बार तो बारिश भी इतनी तेज थी कि सब सारी फसल गल गई। तब तो गांव में लाइट भी नहीं हुआ करती थी।

उस रोज रात को बैलों के टप्पर में कहीं से सांप घुस आया था। आधी रात को भोला ह्मभार रहा था। उसे सांप ने काट खा लिया था। बापू के तलवों में उस रात बहुत दर्द हो रहा था। चूल्हे पर तेल गर्म कर उन्होंने अपने फ़टे एड़ियों में लगाया था। सारा दिन बापू औरतों की तरह काम करता रहता लेकिन मुझे कभी अम्मा की कमी महसूस ना होने दी। उस रात को उठकर लालटेन लगाकर भोला के पास गया तो देखा 2 फुट का लंबा काला सांप भोला के पैरों में कुंडली मार बैठा था। बापू ने रात को घास फूस जलाकर सांप को भगाया रात को बरसते पानी में अंधरे में जाकर नीम की पत्तियां तोड़ लाया और नीम की पत्तियों को पीसकर भोला के पैरों पर लगा दी। तब मैं यही कोई पाँचवीं कक्षा में पढ़ता था। गांव में मिलो दूर तक इक्का-दुक्का मकान ही बने थे। जुगनू की रोशनी ओर साए-साए की आवाज हमें सोने नहीं देती थी। सुबह तक बापू भोला के पास बैठा रहा भोला बहुत बेचैन हो रहा था। सुबह होते-होते भोला ने अपनी अंतिम सांस ली।

बापू की दिन-रात की मेहनत को देख मैंने ठान लिया था बापू के पसीने का मौल में पानी नहीं जाने दूंगा। उस रोज बाबू खूब फूट-फूट कर रोया था। भोला के जाने से उसका एक हाथ कट चुका था। अकेला कितना काम करता बापू ने एक खेत का टुकड़ा सरपंच के पास गिरवी रखकर मंडी से एक बैल और खरीद लाया। बापू को मंडी के दलालों ने झूठ बोलकर बीमार बेल पकड़ा दिया था। वह खाना भी कम खाता हल लगते ही लड़खड़ाने लगता बापू को उसकी बहुत दया आती एक बार तो वह खेत में ही लड़खड़ाकर गिर पड़ा। उस दिन बाबू पूरा दिन उसे उठाने की कोशिश करता रहा पर वह उठने का नाम ही नहीं ले रहा था। दो-चार लोगों की मदद से उसे उठाया और टप्पर में लाकर बांध दिया। खेत को गिरवी रखकर सारा पैसा बैल पर लगा दिया। अब खेत में कैसे हल जोते तो फिर बाबू ने किराए पर बैल लाकर खेत जोता इस बार बापू ने सोयाबीन बोया सोचा की फसल अच्छी होगी तो गिरवी रखा खेत भी छूट जाएगा और किराए का बैल के पैसे भी चुकता हो जाएंगे। सुबह उठकर बापू रोटी सेककर मुझे कपड़े में बांध कर देता साथ में हरी मिर्ची और प्याज फिर मुझे अपने कंधे पर बिठाकर अपनी फटी एड़ियों से उबड़-खाबड़ पगडंडियों पर भागते हुए मुझे स्कूल छोड़ने जाता। आते समय उस दिन बापू के पैर में कांच घुस गया था। उसकी वजह से बापू को गहरा जख्म हो गया था। बापू की जेब खाली थी ऊपर से गरीबी अब तो किसन की देखभाल भी नहीं कर पाता। उसका जख्म गहरा होता जा रहा था। सरपंच से फिर पैसे उधार लेकर अपना इलाज कराया लेकिन फिर भी जख्म भरने का नाम नहीं ले रहा था। उसकी दशा देख मुझे रोना आता था। समय अपनी रफ्तार से भाग रहा था। इस साल तो बारिश नाम मात्र भी नहीं हुई सारी फसल सूख गई अपना दुखड़ा किससे कहें वह एक रात लालटेन जला के कोने में बैठा रो रहा था। मैं उठकर उसके पास गया पूछा- "बाबू काहे रोत हो ? गमछे से आंसू पूछते हुए मुस्कुराने की कोशिश कर बोला-" बेटा गांव के साहूकार ने बहुत सा सूद लगा दिया है, अब तो बस यह थोड़ा सा टुकड़ा बचा है, इस बार बारिश नहीं हुई तो क्या खाऊंगा और तुझे क्या खिलाऊंगा ऊपर से सूद अलग देना है। किसन को खाने के वास्ते भूसे की भी जुगाड़ करनी है। उसकी बात सुन मैं बोला-"बापू रो मत सब ठीक हो जाएगा, और मैं भी बापू के कंधे पर सर रखकर रोने लगा। उस रात गर्मी ओर उमस से नींद नहीं आ रही थी नीम के पत्ते भी आधे झड़ चुके थे। खाट भी टूट चुकी थी करवट बदलते ही चरमरा रही थी। बापू दूसरे के खेत में मजदूरी कर मुझे पढ़ा रहा था। एक वक्त की रोटी खाकर हमने गुजारा किया समय बुरा होता है तो कटता नहीं है। तब गांव में स्कूल आठवीं तक की हुआ करते थे। बापू ने मुझे मजदूरी कर शहर के स्कूल में पढ़ाया मैं हमेशा स्कूल में अव्वल आता था। उस दिन जब बापू मुझे शहर छोड़ने आया था। तो स्टेशन पे घड़ी की दुकान देख मुझे एक घड़ी दिलवाई ओर कहने लगा-"बिटवा समय बहुत अनमोल होत है, इसकी बखत कीजो। बापू के अनुभव भरे शब्दों की पोटली लेकर मैं शहर आकर नौकरी कर रहा था। बाबू को भी शहर लाना चाहता था। पर उन्हें शहर रास नहीं आया। बापू ठहरा गांव का किसान कीचड़ माटी में पला उसे शहर कहा अच्छा लगता। मैंने बापू के सारे गिरवी रखे खेत छुटा लिए थे। सूद देकर सारा कर्ज भी चुका दिया था। बापू को पक्का कमरा भी बनवा दिया था। बापू बहुत खुश था। मेरी शादी की बात भी पक्की कर दी थी। अपनी बहू को देखने से पहले ही चल बसा।

अचानक बस के हार्न से माधव की निंद्रा भंग हुई। वह अपने गांव की ओर चल पड़ा। पक्की सड़कें सरकारी स्कूल गांव की बदलती तस्वीर को देख वह घर की ओर चल पड़ा। अपने गांव की चौपाल पर कुछ लोग बैठे थे। ताश का खेल चल रहा था। घर पहुँचा तो बापू की अंतिम विदाई में गाँव वाले खड़े मेरा इंतजार कर रहे थे। मैं बापू को देख फफककर रो पड़ा। उसके संघर्ष की यात्रा मेरे मनस पटल पर आ जा रही थी। मैंने बापू की अंतिम विदाई खूब धूमधाम से निकाली। उसके संघर्ष भरे दिनों ने ही मुझे हौसलों की उड़ान दी। मेरे पास आज जो कुछ था। वह मुझे मेरे बापू ने मुझे दिया था। वह था आत्मविश्वास कठिन परिस्थितियों में बिना हिम्मत हारे संघर्ष करना। और मुझे फक्र है की मैं इस देश के किसान का बेटा हूं। जो कभी हारता नहीं हैं। और हर दिन जीत का नया सवेरा देखता है। मेरे जीवन की इस उड़ान में बापू के उम्मीदों के पंख ही मेरे हौसले की उड़ान हैं।

    


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