निर्णय
निर्णय
खिड़की से आती गर्म खामोश बयार मानो आत्मा को कचोट रही थी. तन्हाई का आलम ऐसा था. की साए- साए की आवाजों से हर कोई भयभीत हो रहा था. सुबह का सन्नाटा मानो दोपहर के दो बजे का एहसास करवा रहा था.सेठ ताराचंद का आलीशान बंगला आज पूरे कॉलोनी में मशहूर था. करोड़पति ताराचंद के यहां अनेक नौकरों की लाइन लगी रहती थी. पोर्च में एक से एक बढ़कर ब्रांडेड गाड़ियां शानो -शौकत के शौकीन सेठ ताराचंद बहुत ही दानी और सामाजिक कार्यकर्ता कहे जाते. द्वार पर कोई आया तो खाली हाथ नहीं लौटता. छुट्टियों में नाती पोतों से भरा घर किसी त्यौहार की तरह प्रतीत होता. बड़े बेटे बहू हर साल छुट्टियां मनाने पूरे महीने के लिए घर आते. उनके आने से हर कमरा चहकता रहता. बच्चों को मॉल में घूमना उनके साथ गेम खेलना. सारा समय सेठ ताराचंद अपने नाती पोतों के साथ अपना बचपन जी लेते. और हर साल इन दिनों का बेसब्री से इंतजार करते.
ताराचंद जब गाँव से शहर में आए थे.तब बस मुट्ठी में चंद रुपये ही साथ लाये थे. पहले उन्होंने छोटी मोटी नौकरियों की फिर उन्होंने बाजार की अति शुष्म जरूरतों पर नजर रखते हुए छोटे मोटे धंधे चालू किए. घर में दो लड़के और एक बेटी.प्रभु को प्रथम प्रधानता देते हुए.ही प्रत्येक कार्य करते.जीवन में खूब वैभव और नाम कमाया बच्चों को विदेशों में पढ़ाया और खूब धूमधाम से शादियां की बेटी की भी बड़े बिजनेसमैन के बेटे के साथ शादी कर दी, सबकी ख्वाहिशों और जरूरतों को पूरा करते-करते कब इस उम्र के पड़ाव पर आकर खड़े हो गए पता ही नहीं चला. अब तो शरीर भी किसी काम में साथ ना देता. उमा भी घर में हमेशा एक कर्तव्यपूर्ण करने वाली भूमिका में ही रही. जिंदगी की इस भाग दौड़ में कभी सेठ ताराचंद उमा को वक्त ही ना दे पाए. उमा तो होकर भी नहीं... ऐसे में जीवन भर बनी रही.क्या पैसे से अपनेपन के पलों को खरीदा जा सकता है. हमेशा घर में महंगी साड़ियों और जेवरों से सजी उमा अंदर कहीं ना कहीं दिल में खालीपन लिए हुए थी. कल रात अचानक तेज बारिश और आंधी ने अपना आतंक मचा दिया था. सुबह जब उमा उठकर लॉन में गई तो देखा महंगे गाड़ियों के कवर उड़ चुके थे. सारे सूखे पत्तों के ढेर बरामदे में फैले हुए थे. आज यह हवेली किसी हॉरर शो के पिक्चर की तरह नजर आ रही थी. ऊपर नजर दौड़ाकर उसने देखा तो हर साल जहां चिड़िया अपना घोंसला बनाया करती थी. वह भी अब उड़ चुकी थी. खाली घोंसले को देखकर उमा की आंखों में नमी आ चुकी थी. तभी दूधवाला पैकेट रखते हुए बोला- "आंटी कल रात तो बड़ी जोरों से आंधी चली है .., देखो कितना कचरा आ गया है..., हां बेटा..., "हम लोग तो ऐ सी में सो रहे थे, तो हमें बाहर का कुछ पता ही नहीं चल...., अभी देखा मैंने कहकर वह पूछ बैठी..,अभी शहर का माहौल कैसा है..? हमें तो लॉकडाउन के चक्कर में बाहर की कोई खबरें ही नहीं मिल पाती, की बाहर क्या हो रहा है. न्यूज़पेपर बच्चों ने कहकर बंद करवा दिया.., टी वी न्यूज़ के जरिए ही पता चलता है..,"आंटी आप तो अभी ज्यादा उम्मीद मत रखो! करते हुए वह आगे बढ़ गया.आज कोरोना वायरस के चलते इस साल इन छुट्टियों में ना बच्चे आ पाए ना नाती,पोती खाली कोठी में पंखों की आवाजों का ही शोर था.सभी अपने-अपने जगह फंसे हुए थे. उमा दूध के पैकेट उठाकर अंदर आई. सेठ सोफे पर बैठे न्यूज़ देख रहे थे.समय काटे कट नहीं रहा था.मौत के आंकड़े और संक्रमित लोगों की संख्या देखकर दिन में दो बार बच्चों से बातें हो जाती थी.
आज सुबह से ही सेठ ताराचंद को बेचैनी का अनुभव हो रहा था.अकेले रह-रह कर नकारात्मकता के विचार उन पर हावी हो रहे थे.इस साजो सामान से सजा घर देखकर सोच रहे थे.कि सारी जिंदगी इन भौतिक वस्तुओं के पीछे और रुतबे को कमाने के लिए भाग रहे थे वह.. सारी वस्तुयें उन्हें जहरीले नाग की तरह डसती हुई नजर आ रही थी. सेठ ताराचंद आज अपने आप को अंदर तक बहुत ही खाली-खाली महसूस कर रहे थे. तभी चाय का कप देते हुए उमा बोली- "पता नहीं अभी और कितने दिन घर ही में रहना पड़ेगा.., चाय की प्याली हाथ में लेकर बोले- इस बार तो गर्मी की छुट्टियों बच्चों के बिना अधूरी सी लग रही हैं,तभी उमा ने कहा- "मैं तो आपसे हमेशा ही कहती रही कि बच्चों को अपने पास ही रहने दो.., देखो सामने छोटे से घर में वर्मा जी अपने दोनों बच्चों के साथ इस संकट समय में कितने आनंद और प्रेम से रह रहे हैं, घर से खेलने और हंसी मजाक की आवाजें गूंज रही है, यही तो सुख है आज सभी को संयुक्त परिवार मैं रहने का और रिश्तो को समझने का ऊपर वाले ने अवसर दिया है. देखो वर्मा जी के परिवारों में आज सभी साथ रह रहे हैं. उनमें एक हिम्मत है और ताकत भी... यह पैसे से ज्यादा जरूरी है.और आप अपने रुतबे की खातिर बच्चों को विदेश में पढ़ाकर उन्हें वही रहने दिया..., क्या हमारे पास पैसे की कमी है.यहां रहकर भी कुछ बिजनेस कर ही लेते इतने सालों बाद आज उमा इतनी निर्णायक बात कहने की हिम्मत कर पाई थी. अब आपका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता...,आप को कुछ हो गया तो... मेरा क्या होगा", कहते हुए उमा की आंखें नम हो गई. ताराचंद ने अतीत के दर्पण में अपने आप को झांककर देखने लगे.. पहली बार काफी देर तक खामोश बैठे रहे. कुछ पलों के बाद नजरें उठाकर उमा की ओर देखते हुए बोले- "इस तरह संकट की घड़ी में हम दोनों अकेले हैं, पर तुमने हमेशा मेरा साथ दिया..". कहते हुए उन्होंने पहली बार नजरें उठाकर उमा के चेहरे को आत्मीयता से देखने लगे. आज उमा को पहली बार अपने पति का भावनात्मक स्पर्श महसूस हुआ. आज अचानक ढलती काया में स्फूर्ति का अनुभव महसूस हुआ.सेठ ताराचंद उसके करीब आकर चाय का कप पकड़ते हुए बोले- चलो अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है. मैं बच्चों से बात करूंगा.दोनों में से कोई तो मान ही जाएगा, मैं तो सोच रहा हूं कि हम जिस छोटे से शहर से चले थे. फिर वही जाकर बस जाए तो कैसा रहेगा.. कम-से-कम शेष बची जिंदगी अपने बचपन के दोस्तों और अपने करीबी रिश्तेदारों के साथ गुजार लेंगे. पुराने संबंधों में एक अथाह अपनापन होता है."आज पहली बार सेठ ताराचंद के निर्णय को सुन उमा के चेहरे पर खुशी की चमक दिखाई दी.और साथ में सेठ ताराचंद ने जो उन्हें तवज्जो दी. उसे पाकर उसे लॉकडाउन में घर में कैद होने पर भीआशा की एक किरण उमा के चेहरे को चमका गई.. महानगरों की भीड़ से अपनी संस्कृति अपने छोटे गाँव को और लौटने का निर्णय ही उसे सुखद अनुभूति से भर रहा था.पहली बार ताराचंद की नजरों में नजर डालकर उमा पनीली आँखों से उनकी और देख आशा से मुस्कुरा उठी।