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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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तुम मनुष्य हो

तुम मनुष्य हो

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एक तो अंधेरी रात थी, उपर से मूसलाधार बारिश हो रही थी, तेज हवाओं के हाहाकारी शोर के अतिरिक्त वातावरण बिल्कुल शांत था। आसमान में निःशब्द चमकती बिजली के प्रकाश में कभी कभी आस पास कुछ दिख जाता था। इस रौशनी में अपने को एक छोटे से पेड़ के नीचे पाता था। एक लगभग दस फिट ऊंचा पेड़ और लगभग इतने ही ब्यास में फैली हुयी उसकी डलियां, हरी हरी पत्तियां और सफेद फूलों से लदा हुआ महकता बृक्ष। हवायें चलतीं तो पानी की तरह फूल झरते थे। फूलों के झरने का सिलसिला बन्द नहीं हो रहा था।

फूलों की महक से अजीब सा नशा होने लगा था मुझे। यह नशा इतना तो था ही कि मैं पानी मे भींगना महसूस नहीं कर पा रहा था। तेज हवाओं के थपेडों का मुझपर कोई असर नहीं पड़ रहा था। घनघोर बारिश और हवा के तेज थपेड़ों से बेखबर सा हो गया था मैं। मुझे इस बात का खयाल नहींं था कि मेरे कपडे भींगे हुये हैं और मैं रास्ता भटक कर किसी जंगल मे फंसा हुआ हूँ और उसी जंगल मे मौसम अचानक इतना बदला कि घनघोर बारिश होने लगी थी। यह स्थिति मैं भूल चुका था, मैं फूलों की महक के नशे में था और अपने ऊपर झरते हुये फुलों का अनुभव कर रहा था। जब बिजली की चमक से रोशनी होती थी तो फूलों की बारिश का दृश्य दिखायी पड़ने लगता था। पेड़ के नीचे फूलों का ढेर लगा हुआ था और फूलों की बारिश हो रही थी। सफेद नन्हे नन्हे महकते हुये फूल।

इस बार बिजली चमकी तो मुझे लगा पेड़ पर कोई बैठा हुआ है। बैठने वाली महिला थी। सफेद साड़ी में दमकता हुआ सौंदर्य एक पल दिखा फिर लुप्त हो गया। मैं सोचने लगा यह मेरा भ्रम होगा, यहां इस सुनसान अंधेरी रात में पेड़ पर महिला कहाँ से आएगी। तबतक फिर आकाश में बिजली चमकी और मैंने फिर देखा एक महिला पेड़ की शाखा पर बैठी हुयी थी। । मुझे याद नहीं है कि बारिश कितनी देर से रुकी हुई है मैं हल्के हल्के नशे में उस औरत के बारे में सोच रहा था। धीरे धीरे रात गुजर गयी। सूरज आसमान में अपने आने की सूचना दे रहा था तारे एक एक करके आकाश से बिलुप्त हो रहे थे। उजाला होने की उम्मीद पूरी हुयी और अब आस पास का दृश्य धुंधला धुंधला सा दिखाई पड़ने लगा। मैंने देखा अभी भी बारिश का पानी छोटी छोटी नालियां में से बह रहा था। पेड़ खामोश थे। हवा का चलना बन्द हो चुका था। मेरे ऊपर पेड़ पर स्त्री अभी भी बैठी हुई थी। मेरी नजर अब सामने फैले फूलों के ढेर पर पड़ी, मैंने देखा मेरे पीछे एक शेर खड़ा था उसका खूंखार मुंह मेरी अंगुलियों को स्पर्श कर रहा था। एक मिनिट के लिए मेरे होश उड़ गये औऱ मैं वहीं लुढक गया। मेरा शरीर निष्क्रिय हो गया था लेकिन मैं सुन सकता था, सोच सकता था और देख सकता था।

मैंने देखा वो स्त्री आराम से पेड़ से उतरी उतर कर मेरे पास बैठे शेर के पास आयी, शेर जो मेरी अंगुलियों को चाट रहा था, उन्होंने शेर की पीठ थपथपायी और शेर तुरन्त उठकर खड़ा हो गया और पालतू जानवर की तरह अपनी दुम हिलाने लगा। महिला उसकी पीठ पर बैठने से पहले मेरे पास आयी , बोलीं तुम मनुष्य हो। मैं उन्हें देख रहा था, सुन रहा था किंतु उत्तर देने की स्थिति में नहीं था। मैंने देखा वो शेर की पीठ पर सवार होकर आगे घने जंगल मे मेरे आंख के सामने अदृश्य हो गईं। फिर भी उनके वे शब्द तुम मनुष्य हो मेरे कानों में गूंज रहे थे।

आज भी जब मुझे उस लम्हे की याद आती है मैं रोमांचित हो उठता हूँ और मेरे कानों में वही शब्द खनकने लगते हैं तुम मनुष्य हो।


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