तुम बिन मैं अधूरा
तुम बिन मैं अधूरा


कहते हैं, वक्त बीतते वक्त नहीं लगता सच ही तो है अभी कुछ वर्षो पहले की ही तो बात है, कैलाश और शीला अक्सर उस पहाड़ी वाले मंदिर पर आया करते थे। शीला जब पहाड़ी चढ़ते चढ़ते थक जाती तो सड़क के किनारे बैठ जाती और छोटे छोटे पत्थरों से घर बनाती सब का मानना था कि जो भी इस मंदिर में आते या जाते घर बनाता हैं, माता रानी उसकी मनोकामना पूरी करती हैं, उसके घर बनाने का सपना पूरा हो जाता है, शीला जब भी उस मंदिर आती। एक घर जरूर बनाती,
किन्तु कैलाश को इन सब बातों पर विश्वास नहीं होता था पर कैलाश ने कभी शीला को घर बनाने से रोका भी नहीं क्युकी वो शीला के विश्वास को ठेस नहीं पहुँचाना चाहता था पर विधाता को कुछ और ही मंजूर था उसे क्या पता था कि उसका और शीला का साथ इतना ही लिखा था कैलाश उसी पत्थर पर बैठा था जहाँ अंतिम बार शीला ने घर बनाया था उस दिन कैलाश ने भी शीला का साथ दिया। कैलाश ने माता रानी के मंदिर में पूजा करते वक़्त ये मनत मांगी कि इस बार मेरी शीला का दिल मत तोड़ना हमारा घर बन जाए इस बार बस यही विनती है,
कहते हैं कि कभी कभी भगवान् भक्तों की बहुत जल्दी सुन लेता है, कैलाश के साथ भी ऐसा ही हुआ। भगवान ने उसकी सुनली और उसके घर का लोन पास हो गया। शीला और कैलाश बहुत खुश थे, आखिरकार उनका सपना जो पूरा हो गया था पर कैलाश को क्या पता था कि उनकी ये खुशी ज्यादा दिनों की नहीं हैं। एक दिन अचानक शीला को चक्कर आता है और वो सीढ़ियों से गिर जाती है, और सिर में चोट लगने से उसकी मौत हो जाती है, कैलाश अब अकेला हो गया था।
कदम कदम पर साथ चलने वाली शीला अब उसे अकेला छोड़ गई थी। जिस के बिना कैलाश एक पल भी नहीं रह सकता था, वो शीला अब उसे बिल्कुल अकेला छोड़ गई। अब कैलाश का घर सिर्फ मकान बन कर रह गया था क्योंकि उस घर को सजाने वाली शीला जो अब उसके साथ नहीं थी।
कैलाश शीला की यादों में खोया हुआ यही सोच रहा था '' काश मैंने उस दिन माता रानी से सदा के लिए तुम्हारा साथ मांग लिया होता तोतुम मेरे साथ होती। "
कैलाश की आँखों से आंसू बह आते हैं और वो शून्य में देखता रहता है।