टपरी की यादें (भाग १)

टपरी की यादें (भाग १)

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मार्च का महीना वैसे ही काफी खुश नुमा रहता है। इन दिनों जयपुर में सुबह की मीठी सी सर्दी दोपहर होते होते सुनहरी धूप में बदल जाती है। धीरे धीरे बहती मृदुल हवा बदलते मौसम का अहसास दिलाती है। आज नीला आसमान हल्के कपासी बादलों से आच्छादित था, ऐसे लग रहा था जैसे सूरज की बादलों से आँख मिचौली चल रही हो।

रोहन को आज जयपुर आये दूसरा दिन हो गया था। पहले दिन वह अपने लंगोटिया दोस्त की शादी में व्यस्त था और व्यस्त भी क्यों नहीं रहता आखिर स्कूल के सहपाठी 15 वर्ष के बाद जो मिल रहे थे। स्कूल की प्रिंसिपल मैडम भी उसी शादी में आई हुई थी। उस दिन सभी दोस्तों ने खूब मस्ती की। मैडम के साथ ग्रुप में कई फोटो भी ली। कुछ दोस्त तो एक बार देखने में ही पहचान आ गए जो फेसबुक पर अक्सर दिखाई देते थे और कुछ तो बिल्कुल भी पहचान नहीं आ रहे थे। रोहन भी कुछ ऐसा ही सपना संजोए था कि उसका भी दिन आएगा और सभी लोग फिर इसी तरह मिलेंगे।

इसी सपने की कशमश में वह यह सोच रहा था कि रेहाना से कहां और कैसे मिला जाए। रेहाना से रोहन कि पहली बार बात फोन पर तब हुई थी, जब वह एक दिन स्टेशन के ब्रिज पर आग लगने की वजह से वहां गया था, अत्यधिक व्यस्तता होने की वजह से रोहन ने रेहाना को कहा कि फ्री होते ही वह कॉल कर लेगा। वैसे रेहाना आईएएस की तैयारी करनी चाहती थी तथा वह रोहन को अपने किसी दोस्त के जरिए जानती थी।

इसके बाद उनके बीच जो बातें शुरू हुए वो अब एक मुलाकात होने की बात पर आ गई। रोहन के दिमाग में कभी वर्ल्ड ट्रेड पार्क, कभी गौरव टॉवर, कभी कैफे हाऊस तो कभी कभी सरस पार्लर जैसे नाम घूम रहे थे लेकिन कुछ भी तय नहीं हो पा रहा था कि पहली मुलाकात कहां की जाएं। वह इसी उधेड़ेपन में डूबा ही था कि उसके फोन की रिंग अचानक से बज उठी। उसने देखा की रेहाना का कॉल आया है उसने तुरंत फोन पिक किया। दूसरी तरफ से रेहाना की आवाज़ आई " रोहन, यार कोई जगह ही नहीं सूझ रही, मेरी एक फ्रैंड बता रही है कि विधानसभा के पास टपरी नामक एक रेस्टोरेंट है जो काफी अच्छी जगह है वहां मिलना ज्यादा ठीक रहेगा"।

रोहन ने पहली बार इस जगह का नाम सुना था जबकि वह खुद जयपुर से स्नातक और स्नातकोत्तर किया हुआ था और अभी भी अक्सर उसका जयपुर आना जाना लगा रहता है। काफी देर तक विचार विमर्श करने के बाद आखिर उन्होंने अगले दिन सुबह 11 बजे मिलने का प्लान बनाया।

आज सारी रात रोहन को नींद नहीं आई आखिरकार जो उनसे मिलना था। वह पूरी रात रेहाना के बारे में सोचता रहा। उसे आज भी याद आ रहा था कि कैसे रेहाना तक पहुंचने तक का उसका सफर कितना उतार चढ़ाव वाला रहा था। रोहन की रेहाना से फोन पर प्रतिदिन बात ज़रूर होती थी लेकिन दोनों ने कभी शादी के बारे में चर्चा नहीं की थी। परीक्षा के लिए क्या पढ़ना चाहिए क्या नहीं बस यही तक उनकी बातें सिमटी रहती थी। इकोनॉमिक सर्वे तो उन दोनों ने मैसेज भेज भेजकर रट लिया था। डेली करंट अफेयर्स के नोट्स बनाकर एक दूसरे को भेजना उनकी चैटिंग का हिस्सा बन गया था। दोनों एक दूसरे से भली भांति वाक़िफ़ हो चुके थे।

उसकी सुबह के 10 बजे जब सूरज बादलों के साथ आँख मिचौली खेल रहा था, रोहन ने भी टैक्सी की और टपरी में रेहाना के साथ आँख मिचौली खेलने चला गया। रोहन रेहाना से मिलने के लिए जितना ज्यादा उत्सुक था उससे कहीं ज्यादा उसे डर लग रहा था कि कैसे उनसे आमना सामना होगा, पहले कौन बोलेगा, क्या क्या बातें करनी है, कहीं बात ना कर पाया तो। रेहाना पसंद करेगी भी या नहीं, पहली बार देखने पर रेहाना के मस्तिष्क में क्या ख्याल आएगा?

टैक्सी जितनी रफ्तार से चल रहे थी उसका मस्तिष्क भी उतना ही तेज़ सोच रहा था। वह सोच रहा था सबसे पहले नमस्ते करेगा, फिर उनकी शिक्षा, परिवार, करियर, रुचि इत्यादि सभी टॉपिक पर बातें करेगा, फिर सोचने लग गया कि सब बातें तो फोन पर ही हो चुकी है, कोई भी ऐसी बात नहीं बची जिस पर कुछ सोचना पड़े। एक दूसरे के वो दोनो अब बेस्ट फ्रेंड बन चुके थे।

अभी इन्हीं सब विचारों में खोया हुआ ही था कि रेहाना का कॉल आ गया, " कहां हो रोहन, मैं तो पहुंच चुकी हूं"। रोहन ने जवाब दिया कि अभी वह विधानसभा के आगे सेंट्रल पार्क की तरफ पहुंच गया है और 5 मिनट में पहुंच जाएगा"। "

‘’ अरे , ये कहां जा रहे हो, टपरी तो विधानसभा के पास लाल कोठी में है, आप ऐसा करो टैक्सी ड्राइवर को फोन दो। रोहन नें ड्राइवर को फोन दिया, थोड़ी देर तक ड्राइवर ने रेहाना से बात करके फोन काट दिया तथा बोला की ," सॉरी सर, ये रेस्टोरेंट नया खुला है जिसके बारे में उसे पता नहीं था, एक टपरी नाम का रेस्टोरेंट सेंट्रल पार्क के पास भी है, मैं वहीं समझ रहा था।" यह कहते हुए उसने टैक्सी वापिस घूमा ली। अब फिर से टैक्सी विधानसभा के सामने से निकल रही थी। उस दिन शनिवार था इसलिए विधानसभा के सामने बिल्कुल भी चहल पहल नहीं थी। विधानसभा के सामने से ही एक सुंदर सड़क निकल रही थी जिसका बायां रास्ता टपरी की तरफ जाता है।


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