क्या बताउं तुम कैसी हो (भाग 1)
क्या बताउं तुम कैसी हो (भाग 1)
प्रिय याशी
आज अहमदाबाद का मौसम कातिलाना हो रहा है। हल्की हल्की बारिश की फुहारों के बीच बहती शीतल हवा से लोगों को आक्रोशित सूरज के प्रकोप से राहत मिली है। हल्के गहरे कपासी बादलों के बीच जब सूरज आँख मिचौली खेल रहा है तो ऐसा लग रहा है जैसे तुम मेरी यादों में आकर लूका छिपी खेल रही हो।
अपनी शादी को हुए 6 महीने बीत चुके है। पर कभी लगा नहीं की हम तुम कुछ ही दिनों पहले मिले थे। ऐसा लगता है जैसे कि आप मेरी बचपन की यादें हो। खेतों की मेड़ पर कभी साथ साथ चली हो या फिर 2 किमी दूर तक हाथों में हाथ डाले मेरे साथ पैदल ही स्कूल गई हो।
पता नहीं मुझे ऐसा क्यों लगता है कि आप मुझसे दिल्ली में किसी मोड़ पर ज़रूर टकराई होगी। मुखर्जी नगर के बत्रा सिनेमा के पास उस जूस की दुकान पर नयन भी दो चार हुए होंगे। या कभी कभी ऐसा भी लगता है कि अग्रवाल स्वीट की दुकान के पीछे वाले गार्डन में हर सुबह जब मैं दौड़ने आया करता था, आप गार्डन के सामने वाले मकान की बालकोनी से हाथ में चाय लेकर मुझे ही देखा करती होगी। मैं जानता हूं कि ये सब मेरा वहम है लेकिन मन तो आखिर मन है जो कुछ भी सोच सकता है।
29 जनवरी 2018 ही वह तारीख है जब मैंने आपकी आवाज़ पहली बार सुनी थी। उस दिन भी मुझे ऐसा लगा जैसे बचपन के किसी दोस्त ने मुझे कॉल किया हो। उसके बाद आपसे मैंने कितनी बार कहा कि मुझसे मिलने दौड़ी चले आओ लेकिन आप ठहरी याशी। याशी मतलब एक जिद्दी लड़की। आपकी भी ज़िद थी कि एक बार मेरे घर आओ फिर मैं आपके साथ कहीं भी चली जाऊंगी।
आपको याद है, मैं जब चाचा जी के साथ पहली बार आपके घर आया था तो आपको देखता ही रह गया। मुझे ऐसा लग रहा था कि हिमालय की गोद से सफेद बादलों को अपने में समेटे कोई अप्सरा मुझसे मिलने आ रही है। उससे पहले मैंने सिर्फ आपको फोटो में या यादों में देखा था लेकिन जब साक्षात देखा तो एक बार मन में शंका ज़रूर हुई कि ये कही दूसरी लड़की से मेरी मुलाकात तो नहीं करवा रहे है। एक लड़की जिससे मैं लगातार 2 महीने से सिर्फ
बजट और आर्थिक समीक्षा के मुद्दों पर बातचीत करता रहा वह यही लड़की होगी -- नहीं नहीं, विश्वास नहीं होता। वो तो एक साधारण सी लड़की थी, उसको तो कपड़े पहनना भी ढंग से नहीं आता होगा। २ महीने तक बजट और आर्थिक समीक्षा पर दोनों ने नोट्स बना बना कर एक दूसरे को काफी शेयर भी किये थे। पर सच तो यही था कि ये सब तो एक दूसरे को जानने का बहाना था।
उस दिन चाचा जी मुझे पूरे रास्ते समझाते जा रहे थे कि हमको इससे अच्छी लड़की नहीं मिल सकती, अब और किसी लड़की को देखना भी नहीं बस यही रिश्ता फाइनल है अपना। मैं मंद मंद मुस्कराते हुए सोच रहा था कि आपको कैसे बताउं चाचा जी, मेरा तो ख़्वाब भी यही है और जान भी यही बसी हैं। पूरा का पूरा बजट साथ साथ पढ़ा हुआ है हमारा, यह बात अलग है कि कितना मन से पढ़ा और कितना भेजे में घुसा।
खैर छोड़ो, ये सब बातें तो कभी खत्म नहीं होगी। जितना भी याद करूँ तो लगता है कुछ दिनों की मुलाकात नहीं थी बल्कि सदियों के हमराही रहे है हम।
माइ स्वीट बेबी, हमारी शादी को हुए 6 महीने हो चुके है लेकिन कभी लगा ही नहीं की आप मेरी बीवी हो। पता नहीं क्यों आज भी ऐसा लगता है जैसे मेरी बेस्ट फ्रैंड हो आप। सच कहूं तो परीक्षा में यह पूछा जाए कि कोहिनूर वर्तमान में कहा है तो मैं उत्तर के चारों विकल्प को क्रॉस करके उस पर लिखूंगा कि मेरी याशी ही मेरे लिए दुनिया का एकमात्र कोहिनूर है। अब इस पत्र को पढ़कर आप मन ही मन मुस्करा रही होगी। एक बार फिर देखो अपने चेहरे को - - कैसे खिल खिला रहा है। लेकिन ये सच है कि जब आप मेरे साथ किसी शादी या प्रोग्राम में जाती हो तो ही मैं अपने आप को सम्पूर्ण महसूस करता हूं। शायद आप फिर से मुस्कराई होगी, लेकिन अभी रुको अब बंद करो मुस्कुराना। कुछ कमियाँ है जिनको की सबसे पहले गिनानी चाहिए उनको मैं अब बताता हूं।
लेकिन मैं भी एक पुरुष हूं और हर पुरुष जानता है कि अपने पार्टनर की बुराई करना मतलब भयंकर सिर दर्द होते हुए भी तपते हुए रेगिस्तान में चलना है।
( शेष अगले भाग में)