लॉकडाउन : एक मुलाकात-1
लॉकडाउन : एक मुलाकात-1


जैसे ही रात के 8 बजे, माननीय प्रधानमंत्री ने कोरोना नामक महामारी से बचने के लिए 21 दिन के देशव्यापी लॉकडॉउन की घोषणा की तो मैंने राहत की सांस ली। आखिर लेता भी क्यों नहीं, भौतिक सुविधाओं को भोगने के लिए मैंने दिन रात काम करके अपनी ही जिंदगी का भोग लगा रखा था।
आज जब ये संबोधन हो रहा था तो कहीं ना कहीं मेरा मन भी कह रहा था की प्लीज़ कुछ समय के लिए लॉकडॉउन कर ही दिया जाए ताकि मैं कुछ समय खुद के साथ भी बीता सकता हूं। खुद से मुलाकात किए एक अरसा सा बीत गया।
जैसे ही 21 दिन का लॉकडॉउन किया गया मेरे चेहरे पर शुकून की लकीर खींच सी गई, लेकिन अगले ही पल कुछ सोचकर चेहरे की हवाइयां उड़ गई। मैंने तुरंत एक हाथ में अपना पर्श और दूसरे हाथ में कपड़े का बैग लिया और घर से बाहर की तरफ भागा। कुछ ही मिनट बाद मैंने स्वयं को किराने की दुकान पर पाया। यहां देखा की मेरे से आगे पहले से 16 लोग खड़े थे वो भी एक एक मीटर की दूरी के अंतर से। मैं भूल गया की देश के प्रधानमंत्री ने संबोधन के तुरंत बाद एक गाइडलाइन भी जारी की थी जिसके तहत आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति को किसी तरह बाधित नहीं किया जाएगा। लेकिन कहते है ना कि जनाब ये शहर हड़बड़ी में रहता है और शायद इसी आदत का मैं भी शिकार हो गया।
कैसे भी करके मैं अपने 3 सप्ताह के राशन का जुगाड करके घर ले ही आया। जैसे ही घर में घुसा तो दिमाग में तरह तरह के प्रश्न उभर कर सामने आ रहे थे कि क्या सच में 21 दिन तक मैं घर की चार दिवारी में रहूंगा, कहीं यह लंबा खींच गया तो ? हमारे देश का प्रधानमंत्री ऐसे ही कठोर चेतावनी नहीं देता कि 21 दिन घर में नहीं रहे तो 21 साल पीछे देश चला जाएगा, जरूर बहुत कुछ नुकसान हो गया है और यदि समय रहते हम नहीं संभले तो बहुत बड़ा नुकसान हो सकता है।
मैंने धीरे धीरे सभी सामान को एक एक करके अपनी अपनी जगह व्यवस्थित रख दिया। अब एक लम्बी तन्हाई के लिए मैं पूरी तरह तैयार हो चुका था।
आज लाकडाउन का पहला दिन था। डेली की आदत के अनुरूप आज भी मैं सुबह 5:30 पर जाग गया। बाहर खिड़की से झांक कर देखा अंधेरा धीरे धीरे अपने अस्तित्व को खोता जा रहा है और प्रकाश अपनी विजय मुस्कान बिखेरने को आतुर है।
सुबह की वेला में मंद मंद ठंडी हवा चेहरे को छूकर निकल रही थी।कल जिस सड़क पर मॉर्निंग वॉक पर निकलने वाले झुंड को देखता था वहीं आज पहली बार उस सड़क को वीरान होते हुए देख रहा था। आज ही पहली बार मैंने खिड़की से उगते हुए सूरज को इतना नजदीक से देखा। सच में यह आग का गोला सुबह के वक्त इतना मासूम लग रहा था कि मन में आया कि कह दूं कि सूरज चाचू आज क्या कोई विशिष्ट दिन या कोई विशेष कारण जो इतनी शीतलता प्रदान कर रहे हो।
आज मैं इसलिए बिस्तर से जल्दी इसलिए नहीं उठा कि ऑफिस जाना है बल्कि इसलिए उठा की मुझे फिर से सोना है। फिर मैं अंगड़ाई लेते हुए किचन में गया और एक ग्लास गर्म पानी किया, दूसरी केतली पर चाय बनने के लिए चढ़ा दी और गैस को स्लो कर दिया। गर्म पानी को पीने के बाद हाथ में मोबाइल लिए मैं टॉयलेट गया फिर न्यूज ऐप खोलकर देखा कि चारों तरफ केवल कोरॉना वायरस की ही खबरे थी। आज इटली कि मृतक संख्या चाइना से कहीं अधिक हो गई वहीं भारत मे भी धीरे - धीरे इसके संक्रमण का खतरा बढ़ता जा रहा था।
मन में कॉरोना का भय लिए मैं फिर से किचन में गया, एक प्लेट में नमकीन और बिस्कुट तथा दूसरे हाथ में चाय का कप लिए मैं सोफे पर आ गया। आज मैंने कभी किचन में, कभी एक रूम से दूसरे रूम में , कभी टीवी चलाकर तो कभी सोशल मीडिया के जैसे तैसे पूरा दिन निकाला।
अब सूरज का दोपहर वाला प्रचंड शांत हो चुका और संध्याकालीन रूप में हम से आज के दिन अलविदा करने के रूप में आ गया। मैंने भी सूर्यास्त पूर्व वाली चाय बनाई और चाय का कप लिए बालकनी में कुर्सी लगाकर सूरज को विदा करने और कल से फिर मुलाकात करने की कहने के लिए आ गया।
तभी मैंने मेरे घर की सामने वाली फ्लोर की बालकनी में कुछ हलचल होते देखी। मेरी नजर जैसे ठहर सी गई। उसके लंबे लहराते हुए घुंघराले बाल जो की कंधे पर बिखरे हुए, छरछरा और सुडौल बदन, घुटनों तक सफेद स्कर्ट और आसमानी कलर का कुछ मनमोहक उकरे गए फूलों से बना हुआ स्कर्ट, लावण्य यौवन देखकर ऐसे लग रहा था जैसे हिमालय की सफेद बर्फीली चादरों में से कोई परी निकल कर मुझसे मिलने को दौड़ी चली आ रही है।
उसका ये मनभावन रूप तो अब मेरे मन में उतर चुका था, अब सूरज को अंतिम विदाई देने का ख्याल तो दिमाग से पूरी तरह निकल गया था । मैं अभी उसको देखकर अपने खयालातों से पूरी तरह बाहर भी नहीं निकला की वो मेरी आंखों से ओझल हो गई। मैं तुरंत बिना सोचे समझे बालकनी से लिफ्ट की तरफ भागा। लिफ्ट जब तक तीसरी फ्लोर तक पहुंचती तब तक मैं सीढ़ियों के जरिए नीचे पहुंच चुका था।
मैं सामने वाले मकान की तरफ बढ़ ही रहा था की पुलिस की एक गाड़ी आई और लोकडाउन के उल्लंघन की वजह से 3-4 डंडे ऐसे लगाए जैसे बाबू जब अपनी सोना से मिलने जाए और इसकी भनक सोना के भाई को लग जाए फिर आगे आगे बाबू पीछे पीछे सोना का भाई। मैं फिर से अपने घर में आ गया तथा दर्द कम करने के लिए बर्फ के टुकड़े लेने के लिए फ्रिज की तरफ मेरे कदम स्वत ही बढ़ गए। ( लगातार ------------)