अन्तर्द्वन्द
अन्तर्द्वन्द
आज सुबह मेरी जैसे ही नींद खुली तो मोबाइल चेक किया। ओह! बस एक मिनट बाद अलार्म भी बजने वाला था। अब तो जैसे प्रतिदिन की आदत हो गई है की अलार्म से जस्ट मिनट पहले मैं जग जाता हूँ और अलार्म को बजने से पहले बंद कर देता हूँ। मैंने वॉट्सएप देखा शायद रेहाना का कोई मैसेज आया होगा, लेकिन नहीं आया। हो सकता है वो रात की बात से नाराज़ हो गई हो।
लेकिन मेरा कहने का मतलब गलत नहीं था, उसको मैं ही नहीं कहूँगा तो भला कौन कहेगा, उसको हर अच्छे बुरे के बारे में बताना मेरा ही तो फर्ज़ है। कुछ दिन से वो अपनी पढ़ाई को लेकर काफी परेशान थी, लेकिन पढ़ाई के प्रति गंभीर नहीं हो पा रही थी। हमेशा कुछ ना कुछ काम में उलझी रहती थी। मैंने उसको बोला कि पढ़ाई के लिए एक स्टूडेंट की तरह जीना पड़ेगा। जो भी काम बचा है उसको पेंडिंग छोड़कर पढ़ाई में लग जाओ और वैसे भी रोज़ कोई ना कोई नया काम निकल ही आता है लेकिन वो ऐसा नहीं कर पा रही थी।
पापा से वैसे मेरी कम ही बात हो पाती है, जब एक दिन बात हुई थी तो उन्होंने मुझसे बस इतना कहा था कि जयपुर आओ तो बेटा घर आकर मिल जाना और तेरी मम्मी को लेकर डॉक्टर को भी दिखा देना। आखिर वो भी पिता है उनका भी मन करता है कि अपने बेटे बहू से मिलने का। लेकिन जब रेहाना से मैंने पूछा तो उसने कुछ अनमने मन से जवाब दिया की मम्मी को यही बुला लेते है, और उनको डॉक्टर को दिखा देंगे। मैं भांप गया था कि अभी वह घर जाने में संकोच करती है। उसके घर ना जाने की चाह की वजह से मैंने मामा जी के साथ मम्मी को बुला लिया, लेकिन अफसोस हो रहा था कि पापा ने इतने मन से कहा और मैं उनके पास जा नहीं पाया।
हमारा फ्लैट रेहाना के पीहर के नज़दीक ही था। वह हर दूसरे दिन वहां जाया करती थी जाना अच्छी बात है लेकिन मेरा भी मन करता है कि कभी ये ऐसा भी कहे कि रोहन मम्मी बीमार रहती है क्या मैं इस रविवार उनके पास गांव जा आऊं। मैंने एक बार ज़रूर कहा कि भाई की लड़की खत्म हो गई है तो एक दिन के लिए गांव जा आ
ना, मम्मी भी याद कर रही है उनसे मिलना भी हो जाएगा। पहले तो उसने मना किया फिर वही कहा की उनकी तबियत ठीक नहीं है। और थोड़ी देर बाद उनको पेट दर्द हो गया, अस्पताल से दवाई भी आ गई। इससे पहले भी जब बड़े भैया की लड़की का जन्मदिन था तो भैया ने रेहाना को लेने के लिए गाड़ी भी भेजी थी लेकिन रेहाना ने अपनी खराब तबियत का हवाला देकर गाड़ी को वापिस भेज दिया जबकि खुद के भाई के लड़के के जन्मदिन के लिए २० दिन पहले ही गिफ्ट ख़रीद लिए थे।
उसी दिन मैंने शाम को कॉल करके मम्मी को बताया कि रेहाना नहीं आ पाएगी उसकी तबीयत खराब हो रखी है। एक मां को जब पता चला कि उसकी बहू बीमार है तो वह अपना दर्द भूल गई और रेहाना को घर आने के लिए मना कर दिया कि वो पहले डॉक्टर को दिखाए। मुझे काफी बुरा भी लगता था कि वो ऐसा क्यों कर रही है। मानता हूं कि एडजस्ट होने में टाइम लगता है लेकिन उसके लिए कोशिश भी तो करनी चाहिए। घर वाले भी चाहते है कि रेहाना अच्छे से पढ़ाई करे, वो सक्षम है अपने आप को संभालने के लिए, लेकिन जब रेहाना पढ़ाई पर भी ध्यान नहीं दे पा रही है तो उसे कम से कम आगे से पहल करनी चाहिए कि वो घर जाकर मम्मी पापा को संभाल आएगी। फिर भी उसका मन रखने के लिए सभी ने बोला कि गांव जाना कोई जरूरी नहीं है वैसे भी छोटी बच्ची की ही तो मौत हुई है।
मैं मानता हूं कि मेरे मन में जो द्वंद चल रहा होता है सामने वाले को बता देना चाहिए शायद कोई हल मिल सके और पिछली रात जब रात के 11 बजे वो अपने गुरु जी के घर से आई थी तो मैंने उसको ये सब बता दिया। जिसका परिणाम यह था कि आज सुबह के 9:30 हो रहे है लेकिन ना उसका कोई मैसेज या ना ही कोई कॉल आया। और मैं एकटक होकर फोन को देखता रहा कि कब स्क्रीन पर उजाला हो और टन से मैसेज आए। मैं अब पूरी तरह समझ चुका था कि अन्तर्द्वन्द में हमेशा मन कि नहीं माननी चाहिए कुछ वास्तविकताओं का भी ध्यान रखना जरूरी है । इसी उधेड़बुन में मैं मुंबई स्थित अपने ऑफ़िस से खिड़की को ताकने लग गया।