एक खत अधूरी मोहब्बत के नाम

एक खत अधूरी मोहब्बत के नाम

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मेरी प्यारी हाफ मोहब्बत,

वैसे तो मन था कि पूरी जिंदगी गुज़र जाए लेकिन तेरा नाम मेरे लबों पर कभी नहीं आएगा। लेकिन कहते है ना कि जिनसे कभी बहुत प्यार होता है तो उतनी ही बेपनाह उनसे दुश्मनी होती है। मन तो करता है की खत से निकलकर बहुत मार लगाऊं। लेकिन पता नहीं क्यों दया सी आ जाती है।

तुमने मुझसे वादा किया था कि जब अपने होने वाले बच्चे बड़े बड़े हो जाएंगे तब आप चुनाव लड़कर संसद को सुशोभित करोगी। फिर देश हित, जन हित में आप मन लगाकर कार्य करोगी ताकि देश आगे बढ़ सके और हम विकसित राष्ट्रों की अग्रिम पंक्ति में शामिल हो जाए। लेकिन अब क्या ? आपने तो मेरी ही संसद को छोड़ दिया। इतने सपने संजोए की मेरी इस संसद की रसोई में हम दोनों मिलकर खाना पकाएंगे लेकिन पता नहीं क्यों आपको मेरी संसद अच्छी नहीं लगी और स्वदेशी तो त्यागकर विदेशी अपना लिया। यही था क्या आपका देश प्रेम। पता नहीं किस जन के हित को आप पूरा कर रही हो।

 

ये बादल जो देख रही हो कितने घनघोर और काले काले है। ऐसी ही रातों में तुमने डरकर मेरे सीने से लगाकर वादा किया कि जिंदगी भर इसी छाती पर मूंग दलोगी। लेकिन क्या हुआ। जो छाती लोगों के बीच तुम्हारा नाम लेकर ५६ इंच की हो जाती थी वह छाती अब आपकी यादों और मेरी तन्हाइयों को देखकर भर आती है। देखो तो ज़रा आप, ५६ इंच वालों ने अपनी सरकार दोबारा बना ली और दूसरी तरफ मेरी ही सरकार बीच में दल बदलू हो गईं और मेरा सीना जो ५६ इंच का होने वाला था वह ३२ इंच की कमर जैसा हो गया है।

तुम्हें शायद पता भी नहीं होगा कि तुम्हारी जुल्फों में जब मैं मेंहदी लगाता था और धीरे धीरे शैतानी हरकतों से पूरे चेहरे पर मेंहदी के छीटें मार देता था तब ऐसा लगता था कि किसी दिन आपके हाथों में भी मेरे नाम की मेंहदी होगी। और इसी उम्मीद के लालच में मेंहदी के कई पैकेट ख़रीद कर रख लिए। लेकिन ये क्या ? आज ये मेंहदी मुझसे एक ही सवाल पूछ रही है कि जब उसको तुमसे प्यार ही नहीं था तो हमारा रंग कैसे निखरता। हमारी तो पूरी इज़्ज़त ही मिट्टी में मिल जाती। फिर कौन भला हमे हीना कहता।

वो पार्क का कॉर्नर याद है ना जहां में और तुम बेंच पर बैठकर आइसक्रीम खाते हुए उन दौड़ते हुए लड़कों को परेशान करते थे। बेचारे हमे फिर से देखने के लिए उस पार्क में चक्कर पर चक्कर लगाते रहते थे। लेकिन मुझे क्या पता था कि आपकी आइसक्रीम किसी और के लिए इतनी जल्दी पिघल जाएगी। कम से कम उस बेंच का तो ख्याल किया होता। उसको तेरी बेवफ़ाई का पता चलेगा तो उसपर क्या गुजरेगी कभी ये सोचा है। वो निर्जीव वस्तु भी सजीव लोगों से ज्यादा शर्मिंदा होगी कि मेरी पनाह भी बेवफ़ा निकलेगी।

 कौन सा दिन नहीं जाता जब मैं आपकी फेसबुक प्रोफ़ाइल को नहीं देखता। यही उम्मीद रहती है कि आज शायद तुम्हारी नई फोटो देखने को मिलेगी लेकिन एक अरसा गुज़र गया। अभी भी वही फोटो मुझे चिढ़ा रही है। इसके दो अर्थ हो सकते है। पहला, तुम पूरी तरह बदल गई हो जिसको सोशल मीडिया से कोई मतलब नहीं है , जिससे भी शादी हुई हो उसने जल्दी से अपनी फैमिली पूरी कर ली हो और तुम उसमे व्यस्त हो गई हो। लेकिन इस पर मुझे ९९% विश्वास नहीं होता। यूं कहूं कि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं होगा।

वहीं दूसरा मन जो कह रहा है वह दिल को ही दहला देता है। ऐसा नहीं हो कि तुम हो ही नहीं। अब इस धरा पर आपका अस्तित्व ही नहीं हो। लेकिन ऐसा भी नहीं हो सकता। कहीं ना कहीं से ऐसी खबर मिल ही जाती। मतलब तुम हो लेकिन कहां हो और किस हाल में हो इसका पता मुझे वक्त ज़रूर बता देगा।

खैर छोड़ो...अब इन बेसुरा रागों को अलापने से क्या फायदा है। कुछ ख़्वाब होंगें आपके जो मेरे बिन पूरे हो जाएंगे। चलो मैं भी उन आशिकों की जमात में शामिल हो जाता हूं जो सोचते है कि मेरी लाइफ जहां भी रहे खुश रहे और उनकी खुशी में ही मेरी खुशी छुपी है। हम लिखना बंद करते है वरना आशिकी का ये घिसापिटा भूत बाहर निकल जाएगा और फिर सच्चे मन से आपके लिए जो दुआ निकलेगी ना उनके कारण आपकी रूह भी आपके साथ रहना छोड़ देगी।



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