उलझन - खालीपन - सुकून
उलझन - खालीपन - सुकून
कभी कभी सोचता हूं कि मैंने क्या क्या नहीं किया । मैं भी मानता हूं कि रिया ने बहुत कुछ सहा है, उसने भी पूरी कोशिश की थी कि एक नए मेहमान की एंट्री हो घर में ।
फिर इतनी लापरवाही क्यों ? चीजें खराब भी हो जाती है तो फिर उनसे सबक क्यों नहीं। फिर मुझे लगता है कि जो कोशिशें और सहना वाले वाक्य मैं प्रयोग कर रहा हूं कही वो एक दिखावा तो नहीं।
मुझे सोचना तो नहीं चाहिए लेकिन अनायास ही ऐसा दिमाग में आ जाता है।
जिस प्रोसेस से रिया गुजरी वो वैसे ही दर्द भरी थी और काफी महंगी भी थी। डॉक्टर पहले ही कह चुके थे कि इस प्रोसेस में बिल्कुल भी स्ट्रेस नहीं लेना है । स्ट्रेस नए मेहमान के लिए काफी रिस्की हो सकता है और रिया को पहले से ही high blood pressure की समस्या थी।
जब ईटी हुआ तब भी डॉक्टर ने बेड रेस्ट और किसी भी प्रकार के स्ट्रेस से दूर रहने के लिए बोला था ।
लेकिन कहते है ना कि जो चीज किस्मत में नहीं होती है तो कायनात भी उस चीज को छीनने के लिए हमारे पीछे पड़ जाती है। और फिर ऐसा ही हुआ।
ईटी के बाद तो जैसे कुछ समस्याएं हमारा ही इंतजार कर रही थी।
रिया के भाई का ट्रांसप्लांट का इश्यू चल रहा था । रिया की मायके की फैमिली में तीन भाई और चार बहिनें है। जहां भाइयों को अपने छोटे भाई का ट्रांसप्लांट का इश्यू देखना था उसकी जगह हर छोटे छोटे इश्यू रिया से डिस्कशन किए जा रहे थे। ट्रांसप्लांट के लिए पैसों का एडजस्टमेंट करना। उसके लिए हर छोटे छोटे कॉल भी रिया को किए जा रहे थे । सामने वाली पार्टी कुछ प्रॉपर्टी के बदले इतने पैसे देगी, किस भाई को कितना पैसा मिलेगा, कोई भाभी नाराज है तो उसको मानना। रिश्तेदारों के कॉल अटेंड करना।
क्या क्या चल रहा था जो कि चलना नहीं चाहिए था ।
ट्रांसप्लांट के लिए किसे तैयार करना , फिर उसको कितने पैसे देना । ट्रांसप्लांट के बाद रहने के लिए घर फिर उसके खाने की समस्या । इस बीच कोई भाभी, बहन या भाई नाराज हो जाए तो उनको मनाना।
छोटे भाई जिसका ट्रांसप्लांट होना है उसको घर में क्या क्या खाने को दिया जा रहा है। फिर बहनों के बीच चर्चा का विषय कि खाने में ये क्यों नहीं दिया भाभियों ने । फिर भाभियों का रूठ के छोटे भाई को ही डांट डपट करना या मायके चले जाना।
इन सबके के बीच बीच वाले भाई के इश्यू भी सॉल्व करना , कभी अनॉथराइजेड लाइट बिल के लिए किसी आफिसर्स को बात करके पेनल्टी माफ करवाना। कभी पुलिस के इश्यू भी सॉल्व करना ।
इन सबके बीच भतीजी के अफेयर का पता चलने पर घंटों बात करके उनकी पर्सनल लाइफ में इंटरफेयर करना । भतीजी को उसके पापा के द्वारा पीटे जाने पर पापा के खिलाफ ही पुलिस को कॉल करना । फिर किसी पुलिस अफसर को कॉल करके इस इश्यू को सुलझाना।
इसी बीच जमीन के हक त्याग वाला इश्यू आ जाना । जिस वक्त जरूरत थी घर पर रेस्ट करने की उस वक्त हक त्याग के लिए कभी जेडीए के चक्कर लगाना या फिर मायके के चक्कर लगाना ।
और वहीं मैं सब देख कर मूकदर्शक बना रहा । काफी समझाया लेकिन रिया को समझ नहीं आया । मम्मी को गांव किसी तरह रोके रहा ताकि ईटी प्रॉसेस गुप्त तरीके से हो जाए । रिया को कभी घर पर बात करने की नौबत नहीं आने दी पता नहीं कौनसी बात को ये इश्यू बना ले और स्ट्रेस ले ।
रोज ऑफिस से लंच में घर आकर दवा और इंजेक्शन देना, खाने का अरेंजमेंट करना । हर जगह ये कह के रिया को बैक पैन है कहकर किसी भी प्रोग्राम में नहीं जाने के लिए बचाव करना । रिया को नहलाना, उसके कपड़े धोना सब करने लग गया।
" लेकिन अंत में हमें क्या मिला :- फिर से मिस अबॉर्ट "
समझ में नहीं आया कि किसने क्या खोया और किसने क्या पाया । शादी के सात साल में दोनों ने एक बच्चे की उम्मीद खो दी। पहले से थोड़ा कर्ज था फिर से एक महंगे इलाज में काफी पैसा खो दिया । माता पिता का दादा दादी बनने का ख्वाब खो दिया ।
वहीं दूसरी तरफ देखा जाए तो रिया के मायके वाली फैमिली ने सब कुछ पा लिया । हक त्याग करके जमीन अपने नाम करवा ली । भतीजी जो कि पहले वाली पत्नी से थी अब वो उसकी बुआ के घर रहने लग गई तो सौतेली माँ और पापा ने उससे छुटकारा पा लिया। पुलिस वाले इश्यू रिया के इंटरफेयर से टाइम टू टाइम सुझलने लग गए।
रिया अब उन सबकी नजर में हीरो बन गई और दो दिन के मिस अबॉर्ट के शौक के बाद फिर से वह भाइयों के पुलिस इश्यू को सुलझाने लग गई। अब फिर से वही बाते होने लग गई कि आज किस भाभी ने किस भाई ने क्या कहा। घर की बीमारियां, उनके दुख सुख में क्या क्या समाधान किए जाए।
अब मुझे दूसरी शादी करने का ताना भी मारने लग गई जबकि उसको सबसे ज्यादा जरूरत मेरी होनी चाहिए थी।
फिर से मेरे समझाने पर मैं ही अब बुरा दिखने लग गया। अब मैने भी सोच लिया कि मूक बनने में ही भलाई है।
उलझने इंसान को खामोश कर देती है। ओर खामोशी इंसान को खालीपन का अहसास देता है और यही खालीपन एक दिन उसे एकांत का रास्ता दिखा देता है जहां एक सुकून है , जहां वह खुद को खोज लेता है। जहां उम्मीद नहीं है, उम्मीद नहीं तो वहां फिर दुःख भी नहीं है।
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