Dharmesh Solanki

Abstract

4.0  

Dharmesh Solanki

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तरक्की वाले चाचा

तरक्की वाले चाचा

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अभी तो बस बैठा ही था अपनी अगली रचना लिखने के लिए और पीछे से पापा की आवाज़ आई की, "चल बेटा, चाचा के वहाँ जाना है।" वैसे मुझे पता ही था कल रात पापा ने बताया था कि, उनके दूर के रिश्तेदार है वहाँ जाना है सुबह उनसे मिलने। फिर मैंने अपनी डायरी बंद की और टेबल पर ही रख दी और निकला बाहर।

कुछ वक़्त में हम उनके घर पहुँच गये। था तो आलीशान बंगला मैं तो देखता ही रहा। फिर मिले उनसे जो पापा के दूर के चाचा थे। मैंने देखा उन चाचा को बड़े अजीब क़िस्म के आदमी थे। छोटी मोटी सरकारी नौकरी हुआ करती थी उन्हें उनके ज़माने में। पर उनका रुआब उनमें आज भी झलक‌ रहा था। ठाठ-बाट से बैठे हुए थे कुर्सी पर हाथ में चाय का कप लिए।

हमारे लिए भी कुर्सीया रखवा दी, हम बैठे फिर चाय आई। चाचा और पापा तो अपनी बातों में लगे थे। मैं चाय पीता पीता उनको सुन रहा था और देख रहा था।

फिर चाचा तरक्की की बातों पर आ गये। कुछ अपने किस्से सुनाए कुछ अपने बेटो के। फिर पापा से पूछा कि, "तुमने क्या किया अपने जीवन में!" पापा तो देखते ही रह गये फिर बोले, "बेटे को पढ़ा रहा हूँ और अभी बड़ी बेटी का ब्याह करवाया।" फिर चाचा बोले, "देख, जीवन में कुछ बेहतर करना चाहिए अपना नाम, रूतबा बनाना चाहिए ‌हमें ही देख कैसे क़ामयाब है! ये बंगला, ये गाड़ियां सब अपने बल पर किया है मेहनत से।" पापा ये सुनकर मुस्कुराएं।

फिर उन चाचा ने मेरे सामने देखकर कहा कि, "तुम क्या करते हो ?" मैंने कहा, "जी! पढ़ता हूँ।" फिर चाचा ने कहा, "कमाते नहीं हो क्या कुछ ?" मैंने कहा, "नहीं अभी पढ़ाई शुरू है फिर कमाना ही है ना।"

फिर चाचा ने पापा से कहा कि,‌ "देख भाई! ये आजकल के लड़के कुछ कमाना नहीं जानते बस उड़ाना जानते है, पढ़ाई ठीक से ना करते हो तो इन्हें काम पर लगा देना चाहिए कुछ पैसे तो बनेंगे! देख, मेरे बड़े बेटे का बेटा, पढ़ाई बंद करवा दी काम पर लगा दिया, महीने के एक हजार लाता है !"

ये सुनकर मैं तो देखता ही रहा और मन ही मन डर के मारे बोला कि, "ये साला बूढ़ा! कहीं मेरी पढ़ाई ना रुकवा दे।"

फिर वहाँ एक छोटा बच्चा आया क़रीबन सात आठ साल का होगा। वो आ कर उन चाचा के पास बैठ गया। फिर चाचा बोले, "देख, ये मेरे छोटे बेटे का बेटा है! अभी हाल ही में स्कूल से एक ख़िताब जीत आया है, कोई स्पर्धा थी उनमें पहला नंबर आया था, फिर तस्वीर भी चिपकी थी अख़बार में।"

फिर चाचा मेरे सामने देखकर कर बोले कि, "तरक्की इसे कहते है बेटे! नाम चिपकना चाहिए हमारा कहीं पर।" फिर उन लड़के का सर चूमते है और हाथ में अख़बार लेते है।

अब मेरे चेहरे में शरारती मुस्कान आ रही थी। वो पन्ने पलट रहे थे और अख़बार देखे जा रहे थे। फिर अचानक से इक पन्ने पर आ कर रुके। आँखों पर जोर दे कर गौर से देखा, फिर नजरें उठा कर मेरे सामने देखा, और वापस अख़बार में देखा, फिर वापस नजरें उठा कर मेरे सामने देखा।

मैं मन ही मन छाती चौड़ी कर के हँस रहा था, क्योंकि मैं जानता था कि उस दिन के अख़बार में मेरी पहली लिखी हुई रचना प्रकाशित होनी वाली थी वो भी मेरी तस्वीर के साथ।


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