Dharmesh Solanki

Tragedy

4.3  

Dharmesh Solanki

Tragedy

बे-फ़िक्र शहर

बे-फ़िक्र शहर

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एक दिन मैंने सोचा कि कहीं घूम आऊँ मगर कोविड का डर मुझे भी था। शायद पूरे दो महीने हो चुके थे मैं घर से बाहर भी नहीं निकला था चूँकि डर था। और उस दिन मैं निकला। मुझे लग रहा था कि सड़क पर ज़्यादा लोग नहीं होंगे, सारी दुकानें बंद होगी, और लोगों ने मुँह पर मास्क लगाया हुआ होगा मगर ऐसा कुछ भी नहीं था। मैं सब देख कर हैरान हो गया। मुझे लगा कि ये न्यूज वाले झूठे है सब गलत दिखाते है यहाँ तो सब ठीक ठाक है पहले की तरह। जैसे जैसे मैं आगे बढ़ता गया और देखता गया कि लोग मुझे देखे जा रहे थे क्योंकि मैंने मास्क लगाया था।


फिर एक दुकान आई जो कि वहाँ अक्सर मैं जाया करता था। वहाँ पहुंचा तो दुकान के मालिक ने हाल चाल पूछा और हँसने लगा। मैंने कहा, "भई हँसने की क्या बात है?" तो बोला कि, "कोरोना तुम्हें ही होगा क्या? जो मास्क लगाए घूम रहे हो!" मैंने उसकी बात का कोई जवाब न दिया क्योंकि मेरी इक बुरी आदत है मैं जैसे तैसे सवालों के जवाब नहीं देता। फिर मैं वहाँ से कुछ खाने-पीने की चीज़े ख़रीद के निकल गया।


ज़्यादातर गुजरात में और ख़ास कर के मेरे शहर जामनगर में ऐसे ही बे-ख़ौफ़ लोग रहते है जो किसी चीज़ से डरते नहीं। जब तक उनके सामने शेर न जाए तब तक वो नहीं मानते कि शेर नाम का जानवर भी होता है जो इंसानों को मार कर खा भी सकता है।


फिर मैं ऐसे चलते चलते बाज़ार की ओर आ पहुंचा जहाँ थोड़ी बहुत दुकानें है‌। वहाँ भीड़ थी। लोग बिना किसी डर के घूम रहे थे, ‌वैसे घूम तो मैं भी रहा था पर मैं सिर्फ देखने गया था कि माहौल क्या है! हो क्या रहा है! कहीं लोग चीज़े ख़रीद रहे थे। कहीं पान-मसाले की दुकान पर कुछ आदमी खड़े हो कर पान, गुटखा, तंबाकू चबा रहे थे तो कहीं गांठीया, भुजिया, घुघरा, पकौड़े बिक रहे थे और लोग वही खड़े हो कर खा रहे थे। शायद वो यही सोच कर खा रहे होंगे कि ऐसे खाने से कुछ नहीं होता। और थोड़े आगे जा कर देखा कि दस-बारह लड़कों का झुंड था जो सड़क के किनारे गाड़ीयों पर बैठा था, तब मुझे मेरे दोस्त याद आ गए और मन में कहने लगा कि वो साले कितने डरपोक है घर में पड़े रहते है सारा दिन और ये देखो हिम्मत वाले इन आवारा अनपढ़ो को! किसी बात का डर नहीं है इन्हें। तभी वहाँ से कुछ बुटलेगर निकले जो बोतलें बेचते है अंग्रेजी की। वो जैसे ही सड़क से निकले धक धक धक धक आवाज़ें निकली उनकी रॉयल एनफील्ड बुलेट से और सब लोग उन्हें देखने लगे। उन्हें लग रहा था कि हम एंट्री मार रहे है। रॉयल एनफील्ड की बड़ी बोलबाला है यहाँ। वो जिनके पास होती है वो ख़ुद को बड़ा समझते है। चलाने वाला इस ढंग से चलाता है कि जैसे वो बादशाह हो! और हाँ इन रॉयल एनफील्ड के साथ फ़ोटो खिंचवाने की भी बड़ी बोलबाला है। फिर मैं वहाँ से चला गया।


आगे कुछ पुलिसवाले खड़े थे जो कुछ सब्ज़ी वालों को बाज़ार से निकलने को कह रहे थे पर वहाँ ज़्यादा भीड़ नहीं थी। फिर वहाँ से चलते चलते मैं घर की ओर लौटा और बीच में शहर की फेमस जगह आई "रणमल लेक" वहाँ ज़्यादातर लोग घूमने आते है और तब भी घूम ही रहे थे पर मुझे हैरानी नहीं हुई वो देख कर क्योंकि मैं आगे बहुत कुछ देख कर लौट रहा था। फिर अपने घर के पास की ही गलियों में आ पहुंचा जहाँ बाहर औरतें बैठी हुई थी जो यहाँ वहाँ की बातें कर रही थी मगर ज़्यादा ज़ोर कोविड पर था और उनमें से एक औरत बोल उठी, "हवे आवा तो केटला कोरोना आईवा ने ग्या छे!" मैं तो दंग ही रह गया और सीधा घर में घुस गया।


फिर पंद्रह दिन के बाद ख़बर आई कि उस दुकान वाले का कोरोना पॉजिटिव आया और अस्पताल में एडमिट कर दिया गया है। मुझे यक़ीन नहीं हो रहा था मगर ये भी सच था कि ये होना ही था। क्योंकि उसे ये सब मज़ाक लग रहा था। उनकी दुकान पर काफ़ी लोग आते जाते थे फिर भी उसने कोई सलामती रखनी न चाही। दो दिन बाद मैंने उनकी तबियत जानने उसे फ़ोन किया जिसने मुझे उनकी ख़बर दी थी। तो उसने बताया कि, "वो तो चल बसे आज!"



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