Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Dharmesh Solanki

Drama

4.5  

Dharmesh Solanki

Drama

असंतुष्ट

असंतुष्ट

2 mins
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मेम साहब बड़े प्यार से साहब के माथे पर हाथों से कंघी करते बोली, "कोई नया तरीका आजमाओ ना।" साहब ने भी बड़े प्यार से बोल दिया, "इनमें कोई तरीके नहीं होते।" तो मेम साहब ने कहाँ, "होते है। आप विदेशी फिल्में कहाँ देखते हो।" साहब ने कहाँ, "अच्छा... ऐसी घटिया चीज़ें कब से देखने लगी हो ?"

साहब ने बोल तो दिया पर कुछ वक़्त मेम साहब घूरती रही फिर बोली, "कुछ घटिया नहीं होता समझें । मालूम होता है सब नया नया, ज़माना तो कहाँ से कहाँ पहुँच जाएगा पर आप तो बाबा आदम के ज़माने में ही रहोगे।" साहब गुस्से में आ गए और बोले, "और तू। घटिया चीज़ें देख-देख के ज़माने के साथ आगे निकल जाएगी क्या। साली।" झट से पलंग से उठ गई मेम साहब और बोली, "गाली मत देना।" साहब घूरते रहे कुछ बोले नहीं।

फिर कुछ वक़्त बाद खड़े हो कर जाने लगे। मेम साहब ने टोका, "कहाँ जा रहे हो ?" साहब ने कहाँ, "बाहर जा रहा हूँ।" मेम साहब अपनी चोली ऊपर सरकाते मुँह बनाते हुए बोली,

"हा जाओ जाओ बाहर, और कुछ होता तो है नहीं।" साहब चले गए। वापस दो घंटे बाद आए। नीचे कोई नहीं था तो उन्हों ने नौकर को आवाज लगाई पर जवाब न आया। वो ऊपर कमरे की ओर गए। दरवाजे के पास खड़े रह गए क्योंकि अंदर से आवाज आ रही थी। उन्हों ने ध्यान से सुना तो, फट-फट फट-फट आवाज आ रही थी। फिर अचानक दरवाजा खोला तो मेम साहब पलंग पर नंगी उलटी हो कर लेटी हुई थी, उनके ऊपर नौकर लेता हुआ था और पूरा पलंग हिल रहा था।


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