प्रेम, नफरत और समाज
प्रेम, नफरत और समाज


वो भागती हुई आई और अपने प्रेमी से बोली, "हम कभी एक नहीं हो सकते, तुम भूल जाओ मुझे।" वो बोला, "ऐसा क्यूँ ?" उसने लंबी साँस ली और शांत हो कर बोली, "मेरा जन्म ऐसे समाज में हुआ हैं जो बहुत गिरा हुआ हैं, पढ़े लिखे लोग बहुत हैं, नफरत को अपना सकते हैं लेकिन प्रेम तो बिलकुल भी नहीं,
मेरे पिता को बहुत अपमानित किया हैं इन समाज ने! मेरी बड़ी बहन भाग गई थी अपने प्रेमी के साथ और शादी भी कर ली थी, लेकिन मेरे पिता उनकी वजह से आज तक समाज के किसी भी व्यक्ति के सामने सर उठा कर देख नहीं पाये हैं, वो अंदर से टूट चुके हैं, मेरे पिता के फूफा का लड़का उसने बहुत मज़ाक उड़ाया था।
उनका सभी के सामने, और वो वहीं लड़का है जिसने कुछ साल पहले अपने छोटे भाई को दिन दहाड़े मार डाला था उनकी पत्नी के लिए! कुछ साल जेल में सड़ा फिर वापस आ गया और समाज में ठेर सारी इज्जत मिलने लगी, समाज के लगते सभी छोटे बड़े काम वहीं संभालता हैं, खैर उनकी बात छोड़ो मैं यह कह रही हूँ कि, हमें समाज वैसे भी अपनायेगा नहीं, शादी भी नहीं कर सकते, और मेरी बहन की तरह मैं कर नहीं सकती,
अगर ऐसा कर भी दिया तो मेरे पापा अब अंदर से टूटेंगे नहीं सीधा मर जाएंंगे, और मैं ऐसा नहीं चाहती, प्लीज़ माफ कर दो मुझे।" उनके प्रेमी ने सब सुनकर इतना ही कहा, "कोई बात नहीं जो तुम्हारा दिल कहे वो करो, ये मोहब्बत ऐसी चीज़ है जो नफरत के सामने तो जीत सकती हैं लेकिन समाज के सामने नहीं, ऐसी कई मोहब्बतें हैं जो समाज के सामने हमेशा हारती हैं, समाज इनका बिना रहम किए क़त्ल करता हैं जैसे बलि के बकरे का।