Dharmesh Solanki

Tragedy

5.0  

Dharmesh Solanki

Tragedy

मजबूरी

मजबूरी

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कस्टमर पर कस्टमर आ रहे थे हर रोज

मंहगाई बढ़ रही थी तो वो भाव भी बढ़ा रहे थे

लड़कियों को भी ख़ासा पैसा मिल रहा था

शहर में एक यहीं धंधा था जो अच्छा ख़ासा चल रहा था।

मुकेश रोज का कस्टमर था आज भी आया

पर मालकिन ने कहा, भाव बढ़ गए हैं !

मुकेश बोला, घंटा भाव बढ़ाए विदेशी माल लाए हो का (क्या) ?

मालकिन बोली, पैसे पूरे देने हो तो ही जा अंदर वरना फूट ले 

मुकेश ने कहा, हाँ, हाँ पैसे तो दूँगा ही पर इक बात सुन लो

ऊपर से लेकर नीचे तक का पूरा बदन निचोड़ के रख दूँगा

पैसे सारे वसूल कर के रहूँगा !

मालकिन बोली, अब जा जा आया बड़ा

फिर मुकेश ने कहा, वो यूँ है कि मालकिन जी ! अभी थोड़ी

पैसों की खींचतान चल रही हैं काम भी ठीक से चल नहीं रहा।

यहाँ आने के भी बचाने पड़ते हैं ना !

तो कुछ दिनों से घर पर भी नहीं दे रहा

और कल ही देखो मेरी बहन रेशमा कह रही थी

कि कॉलेज की फीस भरनी हैं पैसे दो !

मैंने कहा नहीं हैं पैसे‌

अब क्या करूँ ? तो दोनों माँ बेटी मुंह लटकाए बैठी रही।

और मैं तो निकल गया खाना खा कर बाहर टहलने !

अच्छा अच्छा ! यहाँ तो लाए हो ना ? मालकिन बोली,

हाँ ,हाँ लाया हूँ ! मुकेश ने कहा,

फिर चलता हुआ अंदर रूम की ओर

दरवाजे को धक्का दिया और खोला 

अंदर देखा तो पलंग में रेशमा बैठी हुई थी।

रेशमा को देख के मुकेश के होश-ओ-हवास उड़ गए

सर से लेकर पाँव तक शर्म से पानी पानी हो गया

फिर रेशमा की आँख से आँसू निकल पड़े ।



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