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Sanjay Aswal

Tragedy

4.6  

Sanjay Aswal

Tragedy

त्रासदी

त्रासदी

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मैं,घुत्तू यही कोई २८-२९ साल का हूंगा,यहां गांव के लोग प्यार से मुझे इसी नाम से बुलाते हैं,उन्हें मेरा असली नाम पता है भी या नहीं मैं नहीं जानता,मुझे खुद भी नहीं मालूम कि क्या यही मेरा असली नाम है या कुछ और,खैर मैं रोजमर्रा के समान लेने गांव से ६ किलोमीटर नीचे बसे छोटे से बाजार जा रहा हूं,गांव के लोग रोज मुझे अपने दैनिक जीवन में काम आने वाली वस्तुओं की सूची और पैसे पकड़ा कर मुझे बाजार भेज देते हैं और मैं खुशी खुशी रोज ६ किलोमीटर नीचे और फिर सामान ले कर गांव के लिए चढ़ाई लग जाता हूं,ऐसे ही मेरे दिन कट रहे हैं,पर जब भी बाजार जाता हूं मुझे देख कर अक्सर ही लोग कानाफूसी शुरू कर देते हैं,शायद मैं उन जैसा नहीं दिखता या कुछ और बात है पता नहीं पर हमेशा ही मेरे साथ ऐसा होता है।

गांव का बाजार छोटा है तो सभी मुझे जानते हैं कि मैं पंथया दादा के यहां रहता हूं,वो और उनकी पत्नी काफी बुजुर्ग हैं और इकलौते बेटा जो कारगिल के युद्ध में शहीद हो गया था उसके बाद से गांव में अकेले रहते हैं उन्हीं के यहां एक छोटे से कमरे में मेरा संसार बसा है, रोज उनकी गाय भैंस बकरियों को चारा पानी देना,गोबर निकालना,दूध निकालना,घास लेने या जानवरों को चराने जंगल जाना यही मेरी दिनचर्या है,बदले में पंथया दादा मुझे दाल रोटी देते हैं और मैं खुशी खुशी उसी में गुजर बसर कर लेता हूं। पंथया दादा बड़े नेक दिल इंसान हैं,बेटे के शहीद होने के गम में दोनों बुड्ढे बुढ़िया खोए खोए रहते हैं पर मेरा बहुत ख्याल रखते हैं, मैं जब भी बीमार पड़ जाता हूं तो दादी ( पंथया दादा की औरत) मेरी बड़ी सेवा करती है, दवा दारू का इंतेजाम पंथया दादा ही करते हैं, वो मुझे अपने बेटे जैसा ही मानते हैं अक्सर जब रात में हम छत पर सोते हैं तो वो मुझसे पूछते हैं घुत्तू तू कहां से आया है रे? कहां का रहने वाला है? तेरे घर में कौन कौन हैं? और मैं उन्हें देख कर उनकी बातों को सुनकर बस मुस्करा देता हूं तो वो प्यार से कहते हैं कि तू तो लाटा(पागल) है रे।

मै खुद नहीं जानता मैं कौन हूं? कहां से आया हूं? लोग मुझे लाटा(पागल) समझते हैं,बस लोगो के मुंह से ही सुना कि जून २०१३ के केदारनाथ त्रासदी के बाद मैं पागलों की तरह यहां वहां घूमता रहता था,फटे हाल गंदा, लोग मुझे दुत्कारते, मैं कहीं भी सो जाता,लोग कुछ रोटी के टुकड़े मेरी ओर फेंक देते उसी को खाकर मैं जिंदा था।

फिर एक दिन पंथया दादा की मुझ पर नजर पड़ी और वो मुझे अपने साथ गांव ले आए,लोगो ने बहुत कुछ कहा कि क्यों इस लाटे को ले आए पर उन्होंने किसी की नहीं सुनी,बस उसी दिन से मैं उनके यहां रहता हूं,उन्होंने मुझे नहलाया, धुलाया,अच्छे कपडे दिए ,खाना दिया,रहने को छोटा सा एक कमरा,सच कहूं बेटे जैसा प्यार दिया।

पर अक्सर मैं देखता पंथया दादा अखबार के कतरने काट काट के इकठठा करते रहते हैं फिर अपनी पोथी में कुछ लिखते रहते हैं मेरी तो कुछ समझ नहीं आता वो क्या करते हैं इन अखबार से।

आज पंथया दादा सुबह से ही जल्दीबाजी में दिख रहे हैं सुबह नहा धोकर थैला उठा कर बाजार जाने को तैयार हो रहे हैं उन्होंने मुझे बोला ही नहीं कि समान आज वो खुद लाएंगे, दादा को आखिर क्या हो गया कई महीनों से तो मुझे बाजार भेजते थे आखिर आज खुद क्यूं जा रहे हैं,दादी से जल्दी कलेवा ले कर खाया और छड़ी अखबार उठा के बाजार की ओर चल दिए। मैं थोड़ा परेशान जरूर हुआ फिर सोचा कुछ काम होगा खुद का तो मुझे नहीं बोला खैर मैं भी गाय बकरियों को ले कर जंगल चराने चल पड़ा,आज मन नहीं लग रहा था,पंथया दादा को परेशान देख कर दुखी था,यही सोचते सोचते दिन कब ढल गया पता ही नहीं चला,गाय बकरियों को ले कर वापस गांव की ओर चल दिया। जब वापस घर पहुंचा तो देखा दो लोग पंथया दादा के साथ बैठे थे, और दादा उनकी बड़ी आवभगत कर रहे थे,मुझे देखते ही बोले औ!घुत्तू तू भी जरा इधर आ,मेरी मदद कर, मैं दादा के कहने पर कमरे में गया तो पंथया दादा बोले चल बैठ यहां और मैं बैठ गया,सामने जो सज्जन बैठे थे वो मुझे निहार रहे थे,टुकुर टुकुर देखे जा रहे थे और मैं उन्हें बस देखता ही रह गया( या सच कहूं शायद उन्हें पहचान गया)। वो पंथया दादा से मेरे बारे में पूछ रहे थे कि ये लड़का आपको कहां और कब मिला, सारी बात पूछे जा रहे थे और पंथया दादा उन्हें एक एक बात पूरी तफसीद से बता रहे थे। मैं वहीं बैठे बैठे उन लोगों की सारी बात सुन रहा था फिर उनमें से एक सज्जन ने एक फोटो बैग से निकाल कर पंथया दादा के हाथ में रख दी,जिसमे दो बुजुर्ग दंपति के साथ एक युवा दंपति और दो छोटे बच्चे थे। मैंने भी वो फोटो देखी तो मैं अचंभित और भोंचाक्का रह गया।अब वो सज्जन पंथया दादा को बता रहे थे कि ये फोटो उनके भाई भाभी, भतीजे और बहू और उनके बच्चों की है जो बद्री केदारनाथ दर्शन हेतु राजस्थान के छोटे से कस्बे चले थे और इन लोगो से आखिरी बार संपर्क १० जून को हुआ उसके बाद केदारनाथ त्रासदी आ गई और फिर उनके बारे में कुछ पता नहीं चल पाया,बहुत कोशिशों के बाद उन्हें सरकारी सूत्रों से पता चला कि पूरा परिवार महाप्रलय की त्रासदी में अपनी जान गंवा बैठा। मैं सब सुन रहा था, सन्न भी हो गया था,आंखों में आसूं तैर रहे थे बस किसी तरह उन्हें छलकने से संभाला,वो सज्जन मुझे देख के बोले,बेटा बिरजू पहचाना हमें !!!हम तेरे चाचा ताऊ हैं,मैंने उन्हें बहुत आशा भरी नजरों से देखा और फिर वहां से बाहर चला गया, पंथया दादा की आवाज अब भी मेरे कानों में सुनाई पड़ रही थी वो उन सज्जन से कह रहे थे कि घुत्तू की यादाश्त उस त्रासदी से चली गई है उसे अब कुछ भी याद नहीं,

और मैं घुत्तू,...बाहर गायों को चारा ,पानी देने में मशगूल हो गया, यही सोच कर कि अब इस जीवन की त्रासदी का कोई अंत नहीं??????


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