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तिलिस्मी परछाई

तिलिस्मी परछाई

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बनारस घाटों का शहर। बनारसी पान और बनारसी साड़ियों के लिए मशहूर। यहाँ की फिज़ाओ में भगवान शंकर का वास है इसके ह कण कण में भगवान शंकर विराजमान है। सुबह का यहाँ का कुछ अपना अलग ही अंदाज़ है लोग घाटों पर जा क्र स्नान करते है और सूर्य भगवान को अर्घ देते है। कचौड़ी गली में जा कर कचौड़ी और जलेबी के नाश्ते का तो क्या ही कहना वाह। मेरे तो मुँह में अभी ही पानी भर आया है।

सारे घाट बहुत ही सुन्दर और अप्रतिम छटा बिखेरते हैं सुबह की किरणों के साथ। और दिन भर के लिए सभी मस्त हो कर अपना अपना काम करते है अल्हड़ मस्ती में इस अल्हड़ मस्ती में खो जाने का नाम ही बनारस है ।सिर्फ सुबह ही नहीं यहाँ की शाम क भी अपना अलग ह अंदाज़ है शाम की गंगा आरती और उसके बाद चाय की टपरी पर जा कर दोस्तों संग चाय की चुस्की लेने का अपना ही मज़ा है।

पर जैसे जैसे रात गुज़रती है घाटों पर सन्नाटा और गहराता चला जाता है धीरे धीरे वहाँ लोगों की भीड़ कम होती दिखती है, क्योंकि आधी रात के बाद का समय अघोरी लोग अपनी तंत्र साधना करते है। और अपनी तंत्र शक्ति का प्रयोग करते है ।ये अघोरी इस दौरान लाशों के आस पास नाचते भी हैं। और कुछ तो इन लाशों को भी खाते हैं। ये भी बनारस का अपना एक रूप है जो आधी रात के बाद दिखता है प्रायः अघोरियों को भगवान शंकर का गण मानते हैं।

इन सभी चीज़ो में और एक चीज़ है'जो बनारस को और भी रहस्य्मय बनाता है रात में और वो है चेत सिंह घाट पर अवस्थित राजा चेत सिंह का क़िला ।दिन के समय तो ये किला ना जाने कितने विदेशी सैलानियों को अपनी अनूठी वस्तु कला से अपनी ओर आकर्षित करता हैपर रात में ये किला किसी रहस्य में बदल जाता है। एक ऐसा रहस्य जिसके बारे में अभी तक कोई कुछ भी नहीं जानता।

मेरे जन्मदिन पर मेरे कुछ दोस्तों ने ये प्लान बनाया की जन्मदिन की पार्टी घाट पे होगी और पार्टी के बाद हम आज घाट पर ही घूमेंगे ।तो अभी अभी एग्जाम खत्म ही हुए थे सेमेस्टर के तो मैंने भी सोच के चलो पार्टी के साथ थोड़ा घूमना भी हो जायेगा और इतने दिनों के बाद मन भी अच्छा हो जायेगा बहुत दिन के बाद तो मई भी मान गयी उनका प्लान

रात के 8 बजे मेरे सभी दोस्तों ने घाट पे ही केक काट कर मुझे सरप्राइज दिया हमने वहीं घाट के पास क होटल में खाना भी खाया और बिल देने के बाद घाट पे घूमने निकल गए ।घूमते घूमते रात के लगभग 1 बज गए थे और हम सभी चलते हुए चेत सिंह घाट पर पहुँच गए।

सभी ने उस चेत सिंह क़िले को निहारा वो किला रात में भी बहुत सुन्दर दिखता है बाहर से क्योकि क़िले के बाहर की तरफ़ दूधिया रोशनी की गयी है,जिसकी छठा देखने योग्य है। हम सभी तो वही रुक कर बस देखते रह गए उस क़िले की सुंदरता को बाहर से। तभी ना जाने कहाँ से पायलों की आवाज़ आने लगी क़िले के अंदर से और रात के सन्नाटे में वो आवाज़ और भी गूंज रही थी ऐसा लग रहा था मानो कोई पायल पहन कर क़िले में दौड़ रहा है। आवाज़ को सुन कर हम सभी ने ठाना की अंदर चल कर देखेंगे के क्या है, कही ऐसा तो नहीं की कोई हमारे साथ मज़ाक कर रहा है।

हम सब क़िले के अंदर दाख़िल होते हैं धीरे धीरे बिना आवाज़ के पाया की आवाज़ की तरफ़ बढ़ते हैं। चलते चलते हम सभी एक ऊँची छत जैसी जग़ह पर पहुँचते हैं और वहाँ पहुंचते ही पायल की आवाज़ आणि बंद हो जाती है और अचानक से पता नहीं कहाँ से इ ठंडी हवा का झोंका आता है और तभी एक परछाई जो ऊपर से नीचे तक पूरी काली है। इतनी काली की स्याही भी उसके सामने श्वेत प्रतीत होगी। और तभी वो काली परछाई उस ऊँची जगह से छलाँग लगा देती है हमारे देखते ही देखते हम सब तो अवाक् हो कर एक दूसरे को देखते रह जाते हैं। इतना सब कुछ देखने के बाद हम डरे हुए वह से दबे पाँव वह से निकल जाते है डर से काँपते हुएहम नहीं जानते की वो परछाई किस की है। प कुछ स्थानीय लोगो के अनुसार को परछाई राजा चेत सिंह की है जो अपने क़िले की आज भी रक्षा करती है और इस किले को गन्दा करने वालो को दण्डित भी करती है। पर सच क्या है उस पायल की आवाज़ का अउ उस परछाई का, वो आज तक किसी क पता नहीं।


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