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Tragedy

4.4  

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मुखौटा : सुंदरता या अभिशाप ?

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स्नेहा अपने 16 साल के बेटे निशांत के साथ अभी अभी दूसरे घर में शिफ्ट हुई थी।पति की मौत के बाद तो वो एकदम टूट सी गयी थी, तब निशांत सिर्फ 2 साल का ही था, एक दिन ऑफिस से लौटते वक़्त स्नेहा के पति का कार एक्सीडेंट हो गया था,डॉक्टर्स ने उन्हें बचाने की कोशिश की पर सर की अंदरूनी चोट की वजह से उनके दिमाग में सूजन बढ़ गयी थी और दौरे आने लगे थे और इलाज के दौरान उनकी मौत हो गयी।पति की मौत की वजह से स्नेहा को गहरा सदमा लगा था पर उसके बेटे ने ही उसे उस सदमे से बाहर निकला।अब वो अपने बी बेटे क लिए जीने लगी, उसने एक एंटीक शॉप में नौकरी कर ली।उसे वहाँ सारे सामान को सजाना होता था और कोई भी ग्राहक आ जाये तो उसको सामान भी वही दिखलाती थी। और वहाँ काम करने से जो भी पैसे उसे मिलते थे वो उन दोनों माँ -बेटे के लिए काफ़ी थे।

वक़्त के साथ साथ, वो दुकान की मैनेजर बन गयी और पैसों से उसने अपना घर भी खरीद लिया जिसमे वो अपने बेटे निशांत के साथ शिफ्ट हुए है।स्नेहा ने अपनी ही दुकान से कुछ एंटीक मुखौटे लिए अपने घर में सजाने के लिए और हाँ।उसने इसके लिए पैसे भी दिए थे ऐसे ही नहीं उठा लायी थी दुकान से।  

कुछ ही देर में योगिता उन मुखोटों को ले कर आने वाली थी।योगिता,स्नेहा की सबसे अच्छी सहेली है और दुकान की मालकिन भी है,योगिता ने ही स्नेहा के बुरे दिनों में उसका साथ दिया था और अब वो बहुत अच्छे दोस्त बन चुके हैं।

स्नेहा के डोर बेल बजी, और उसने दरवाज़ा खोला तो पाया की योगिता एक बड़े से दफ़्ती के बक्से में कुछ ले कर आयी थी।स्नेहा ने सहारा दे कर बक्से को लिविंग रूम में रख दिया क्योंकि वो इस मुखोटों को यहीं सजाना चाहती थी, ताकि जब भी कोई बाहर से आये तो सबसे पहले उसे मुखौटा ही दिखे।दोनों सहेलियों ने मिल कर मुखौटो को उनकी तय जगह पर लगा दिया।और दोनों ने साथ में चाय पि और उसके बाद योगिता,स्नेहा से विदा ले कर अपने घर की ओर निकल गयी।

इस वक़्त स्नेहा अपने घर पर बिलकुल अकेली थी और मुखोटों को निहार रही थी, तभी अचानक उसके कान के पास से एकदम ठंडा हवा का झोंका गुज़रा।उसने तुरंत पीछे मुड़ के देखा,वहाँ कोई नहीं था, तभी डोर बेल बजी और स्नेहा दरवाज़े की तरफ बढ़ी और दरवाज़ा खोला तो निशांत था वहा।कुछ देर तक निशांत और स्नेहा ने बात की और फिर स्नेहा अदिन्नेर बनाने किचन में चली गयी और लगभग 9 बजे दोनों, माँ - बेटे ने साथ में डिनर किया और अपने अपने कमरों में सोने चले गए।

आधी रात का वक़्त रहा होगा,पर स्नेहा अभी भी सोने की बजाय करवट बदल रही थी, आज उसको बेचैनी सी हो रही थी, नींद नहीं आ रही थी उसे, तभी वो उठ कर उसी कमरे में चली गई जहाँ मुखोटे लगे हुए थे,और उनके पास जा कर एकटक उन्हें देख रही थी स्नेहा, उसकी आँखे बिलकुल जम ही गयी हों जैसे। ऐसा लग रहा था की उस पर सम्मोहन किया हो, वो अपने बस में नहीं थी।धीरे से उसने दरवाज़ा खोला और बाहर निकल पड़ी सड़क की ओर, तभी वहाँ से एक गुज़रते ट्रक ने उसको टक्कर मारी और मौके पर ही उसकी मौत हो गयी।

अभी भी निशांत बिस्तर पे ही था,तभी उसने अपनी माँ की आवाज़ सुनी जो उसे नाश्ते के लिए बुला रही थी।निशांत जल्दी से नहा कर नाश्ता करने पहुँचा।नाश्ते के बाद स्नेहा ने उसके माथे को प्यार से चूमा और कहा आज वो निशांत को स्कूल छोड़ने जाएगी, निशांत को ये बड़ा ही अजीब लग रहा था क्योंकि उसकी माँ ने उसको आज तक कभी भी स्कूल नहीं छोड़ा था।पर कार ख़राब होने की वजह से निशांत को अकेले ही जाना पड़ा, अभी वो चौराहे के पास पहुँचा ही था की उसने लोगों की भीड़ देखी और उत्सुकता में वो भी देखने चला गया की भीड़ लगी क्यों है, पर एक ख़ौफ़नाक सच से अनजान निशांत उस लाश के पास पहुँचा जिसके आस पास लोगों ने भीड़ लगा ली थी, किसी ने तभी कहा की देखो ये तो वही है ना जो अभी अभी यहाँ अपने बेटे के साथ रहने आयी थी, ये सुन कर निशांत ने तुरंत उस लाश को पलटा,,,ये तो उसकी माँ स्नेहा की लाश है। उसके मन में आंसुओंके साथ कई सवाल आने लगे की अगर माँ मर चुकी है तो वो कौन है जिसने उसको नाश्ता बना के दिया,जो बिलकुल माँ के जैसे दिख रही थी।वो दौड़ता हुआ घर पहुँचा और जैसे ही दरवाज़ा खोला देख कर स्तब्ध रह गया क्योकि घर बिलकुल खाली था, ऐसा लग रहा था की बरसों से कोई घर में गया ही ना हो।अब निशांत की ज़िदगी बदल चुकी थी न उसकी माँ थी उसके पास ना ही घर।अब वो इस दुनिया में अकेला है और अपनी माँ का इंतज़ार कर रहा है।  पागलख़ाने में।     


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