थप्पड़ की गुंज
थप्पड़ की गुंज


"नीलु अरे ओ नीलु, चाय लाओ तो जरा", रमेश चिल्लाया!
" अभी लायी जी", नीलु बोली!
"ओहो कितना चायपत्ती डाला है, तुमको सिर्फ बर्बादी आती है, मायके से लायी हो क्या, जाकर कमाओ फिर पता चलेगा आटे दाल का भाव", रमेश झिडका!
" ओहो हाथ ही तो है कितना गुस्साते हो, कम ज्यादा हो जाता है इंसान ही तो हुं", नीलु बोली!
नीलु का कोमल मन रमेश के प्यार के अंतर और रमेश के मन में उसके प्रति आने वाले बदलाव को समझ नहीं पा रहा था!
"क्या आ के खडी़ हो गयी जैसे सब समझ जाओगी, माँ- बाप ने पढाया भी तो नहीं है तुमहे", रमेश अपने आफिस के लैपटॉप में देखता हुआ बोला!
" अरे पढी़ नहीं हूँ पर सब समझती हुं और अपना चेहरा पोछो इतना पसीना हुआ है", नीलु कहते हुये आंचल से पसीना पोछती है रमेश का!
ऐसा लगता था जैसे रमेश अपने आफिस की सारी भडा़स नीलु पर निकालता था!
"मेरे कपड़े निकालो पार्टी में जाना है", रमेश चिल्लाया!
मैं भी चलूं जी रेखा ने मुझे भी बुलाया है", नीलु ने पुछा!
"तुम्हें ले जाकर मुझे अपना मजाक उड़वाना है क्या, शक्ल देखी है, लगता है अभी चार बच्चों कि माँ बन गयी हो, और रहने का ढंग तो जैसे माँ- बाप ने सिखाया ही ना हो", रमेश मुंह ऐठता हुआ बोला!
" आप सब बात में मेरे माँ-पापा को क्यों ले आते हो", पहली बार नील विद्रोही लहजे में बोली!
"तो क्या करु, शुक्र करो मैने शादी कर ली, वरना ऐसे ही रह जाती उम्र भर", रमेश बोला!
" किसी कि लडकी बैठी नहीं रहती, सबका जोडी़ बन के आया रहता है ऊपर से", नीलु बुरे लगने वाले लहजे में बोली!
"हा तो इतना आराम कहां मिलता सारे दिन बैठ के खाती हो और मैं कमाता हूँ", रमेश बोला!
नीलु ने बात ना बढा़ने और चुप रहने में ही भलाई समझी!
रमेश के जाने के बाद नीलु सोचने लगी क्या ये वोही रमेश है जो कभी उसके तारीफों के कसीदे पढता था! क्या सारी शादीशुदा महिलाओं को रोज बेईज्ज़त होकर जीना पड़ता है, क्या औरत का कोई अस्तित्व नहीं होता, जिंदगी में पहली बार उसे लगा वो पढी़ क्यो नहीं जो अपने माँ पापा के रहते उसे कभी नहीं लगा था!
अचानक एक दिन रमेश पी कर आया और नीलु से उलझ गया, नीलु भी सह-सह कर थक चुकी थी आखिर अकेली वो कितना प्यार दिखाये और कितना अपनी नजरों में रोज गिरे!
बाता-बाती बढी़ और अचानक हाॅल गुंज उठा!
"चटाक.... क.. क"!
ये आ
वाज जो चारदीवारी में रह गया पर इसने नीलु को बहुत गहरा जख्म दिया अंदर तक!
अगले दीन रमेश उठा और चिल्लाया, " नीलु चाय ला एक कप"!
उधर से कोई आवाज़ ना आई! उठ कर देखा तो नीलु घर छोड़ कर जा चुकी थी!
"हुहं, घर में भाभी का राज है, कितने दिन मायके रहेगी, फिर एक दिन यही आयेगी", रमेश खुद में ऐंठा!
चाय बनाने गया पहली बार खुद से ये क्या चायपत्ती ज्यादा गिर गयी, उसको नीलु कि बातें जेहन में घूम गयी कैसै वो नीलु को ताने देता था चायपत्ती के लिये!
रमेश को खाना बनाने कुछ आता नहीं था ना घर संभालने, थककर एक बुजुर्ग अम्मा को रखा!
"ये क्या अम्मा सब्जी में तेल बहुत है और चावल में कंकड़ पडे है", रमेश बोला!
" अब जो बना रही हूँ वो खालो बेटा बीवी थोडे़ हुं जो पकवान खिलाऊं", बुढिया झिड़की!
रमेश को फिर याद आया कैसे एक कंकड़ निकलने से उसने सारा चावल फेक दिया था सींक में और चिल्लाया था नीलु पर !
एक दिन लाॅपटाप पर काम करते वक्त पसीना होता है तो रमेश के मुंह से अनायास ही निकल जाता है ", नीलु पंखा औन करना"!
फिर याद आता है वो तो है ही नहीं फिर खुद ऊठ के पंखा चलाता है और याद करता है नीलु कैसे आंचल से उसका पसीना पोछती थी!
"अरे ये क्या रमेश साब इतने बड़े ओहदे पर हो और पार्टी में बिना प्रेस किये कपड़े ले कर जा रहे हो", बुड्ढी अम्मा बोली!
" क्या करूं अम्मा धोबी को कपड़े देने में लेट हो गये थे, वक्त पर मिला ही नहीं ", रमेश ने कहा!
रमेश रुम में जाकर नीलु को याद करके रोने लगता है!
अब उसे पता चला नीलु क्या करती थी सारा दिन!
बुड्ढी अम्मा आयी और बोली, " मैं तेरे से उम्र में बड़ी हूँ बेटा, जाकर अपनी लुगाई को ले आ, पति-पत्नी में लड़ाईयां तो होते रहती है"!
पर रमेश अम्मा को कैसै समझाये कि उसने नीलु पर हाथ उठा दिया था और जानवरों सा व्यवहार किया था!
आखिर एक दिन रमेश ने मैसेज किया नीलु को कि वापस आ जाओ! कुछ दिनों बाद उधर से जवाब आया, "साॅरी लेट से रिप्लाई के लिये पर मैं एक महिला आयोग ज्वाइन कर चुकी हुं और अब मेरा पीछे मुड़ना मुश्किल है, इन लोगो ने मुझे तब सहारा दिया जब मेरे पास कोई नहीं था, मैं इनको धोखा नहीं दे सकती वरना तुम्हारे और मेरे में अंतर क्या बचेगा!
अलविदा!
पीछे राजेश खन्ना के गाने कि आवाज आयी, जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मुकाम वो फिर नहीं आते!