Akshat Garhwal

Romance Fantasy Thriller

4.5  

Akshat Garhwal

Romance Fantasy Thriller

The 13th अध्याय18 (it's date!)

The 13th अध्याय18 (it's date!)

19 mins
494


एक बार फिर रविवार आ गया पर इस बार का रविवार बहुत ही अलग होने वाला था....क्योंकि इस रविवार सृजल जाने वाला है ‘डेट’ पर, वो भी अलका के साथ! ‘वैसे इंडियन कल्चर के अंदर डेट वगैरह जैसी कोई चीज़ नहीं होती’ जो भी लोग ऐसा सोचते है वो सभी असल में काफी गलत है। ‘डेट’ नाम तो पश्चिमी देशों का कारनामा है पर भारत में डेटिंग नहीं होती थी ये तो बहुत ही अजीब बात है,नहीं? अरे यार डेटिंग में क्या होता है?....एक दूसरे को चाहने वाले अपनी छुट्टी का दिन या किसी भी खाली समय में साथ में वक्त बिताया करते है। फिल्म देखने जाना, साथ में किसी रेस्टोरेंट में खाना, एक खूबसूरत से पार्क में घूमना और फिर एक अच्छी सी रोमांटिक जगह ढूंढना जहां पर एक दूसरे का दीदार किया जा सके। (ऊपर दी गयी जानकारी केवल प्यार करने वालों या एक दूसरे को जानने वालों के लिए ही है जिसमें दोस्त भी शामिल है.........कृपया ‘ओयो’ वाले इस जानकारी को गलत न समझे।

इस सब को ही पश्चिमी देशों ने ‘डेट’ का नाम दे रखा है जबकि अगर भारत के सुनहरे पलों की पुरानी फिल्मों को भी उठा कर देखे तो ये तो हमेशा से ही चला आ रहा है और फिल्मों को भी क्या ही देखना जिन लोगों तक डेटिंग का नाम भी नहीं पहुंचा था वो भी तभी से डेटिंग करे जा रहे थे और नाम इसे ‘घूमने-फिरने’ या कभी-कभी ‘पिकनिक’ भी कहते थे। खैर वर्तमान में अब हर जगह पर डेटिंग देखने को मिल जाएगी तो इन बातों में समय जाया नहीं करते है और असल कहानी पर ध्यान देते है।

रविवार की सुबह के करीब 8 बजे हुए थे, सिवाय सृजल के अभी तक घर में कोई भी नहीं जगा था। आनंद का भी आज रूबी के साथ कोई प्लान था पर इतनी जल्दी नहीं जितना कि सृजल और अलका का था। जब से बच्चे,ईव और जैन घर में रह रहे थे तभी से सृजल आनंद के कमरे में ही सो रहा था और अब क्योंकि उसे सुबह ही जाना था तो वो नहा-धोकर जल्दी से 8 बजे अपने कमरे में गया और जाकर कपड़े बदल लिए। ब्लैक टाइट पेंट जिस पर एक कपड़े का ब्राउन बेल्ट लिपटा हुआ था और एक सफेद टी शर्ट के ऊपर ब्राउन स्टाइलिश जैकेट! सृजल पर वो कपड़े जंच रहे थे ये कहना तो गलत होगा बल्कि कपड़ों पर सृजल जंच रहा था ये बात एकदम सही बैठ रही थी। उसने आराम से सर में हल्का सा तेल डालकर एक घुमावदार कंघी की और उसके मीडियम से कटे हुए बाल एकदम सेट हो गए। खुद को एक बार आईने में देख कर वो जल्दी से बच्चों को उठाने के लिए आगे बढ़ा ताकि जाने से पहले उन्हें बता दे कि वो आज घर शायद रात तक आएगा पर जब उसकी नजर उनके नींद में खोय हुए चेहरों पर पड़ी तो उसने उन्हें उठाना ठीक नहीं समझा। पास रखे टेबल की दराज से एक पेज निकाला और उसमें लिख दिया कि ‘मैं आज देरी से घर आऊंगा, या तो खाना आर्डर कर लेना या फिर घर में जो पैकेट वाला बंद खाना है वो बना कर खा लेना....और अपना ख्याल रखना’!

ये नोट छोड़ कर वो जल्दी से नीचे आया, उसने आनंद को जगाया और नींद में उबासी ले रहे आनंद को कहा

“मैं जा रहा हूँ तू बच्चों को संभाल लेना”

“साला इसकी शादी नहीं हुई है तब भी इसके बच्चों को संभालने की जिम्मेदारी मेरे ऊपर है....तब तो जब शादी हो जाएगी तो CA की जॉब छोड़ कर इसके बच्चों के बेबीसिटर बनना पड़ेगा” नींद से उठकर बिस्तर पर ही बैठे हुए आनंद ने कहा, पर तब तक तो सृजल दरवाजे के बाहर हो चुका था।

“चलों भाई चलकर जरा फ़्रेश हुआ जाए, फिर कुछ नाश्ता बनाते है” आनंद ने अंगड़ाई ली और बाथरूम की ओर रवाना हुआ...........

उधर सृजल ने अपनी कार निकाली और अलका के घर के पते पर जा पहुंचा। गाड़ी से निकलने से पहले ही उसकी नजर जैसे ही घर पर पड़ी उसके मन में पहली बात ये आयी ‘नर्स की जॉब में भी अलका ने सही तरक्की कर ली है यार!’ अलका का भी घर सृजल के घर की तरह ही सारी चकाचोंध से दूर मडगांव के छोर पर था जहां पर अभी तक शहरीकरण का कुछ खास ऐसा नहीं पड़ा था हालांकि उसका घर सृजल के घर से बिल्कुल ही अलग था। वैसे तो वो भी 2 मंजिल ही था पर नीचे जो फ्लोर था वो ऊपर वाले से इतना बडा था कि अलग ही दिख रहा था, ये नीचे वाला फ्लोर ऊपर से देखने में एक आधे गोले से दिखता जिसका लकड़ी जैसा रंग और नक़्क़ाशी किसी को भी सोचने को मजबूर कर दे कि ये घर लकड़ी का बना है या किसी और चीज़ का! ऊपर का फ्लोर चोंकोर था और नीचे वाले से आधा था और वो भी उसके बीच में बना हुआ था जिस से बाकी बची हुई जगह पर स्टील के रोड की बॉउंड्री बनाई गयी थी और उसी बॉउंड्री से लगे हुए थे फूलों के पौधे जो उस घर की शोभा बढ़ा रहे थे

सृजल आगे बढ़ा और दरवाजे के पास लगी बेल के पास अपना हाथ ले गया

“वूssssss!” अचानक हुई आवाज से सृजल चोंक गया क्योंकि उसका पूरा ध्यान आज के शेड्यूल पर था और उसका ये हाल किया था अलका ने जिसने उसे देख लिया था और उसके पास आते ही उस पर डराने का ये बहुत ही पुराना तरीका आजमाया

“हा.. हाssssss..हा हा हा! तुम्हारा चेहरा हाsssssह” सृजल से अभी कुछ कहते हुए भी उसकी हंसी रुकी ही नहीं थी “तुम्हारा चेहरा देखना चाहिए था... ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने तुम्हारे मुँह से आइस क्रीम छीन ली हो और तुम सकते में आ गए”

सृजल का चेहरा अभी भी चोंका हुआ ही था और अलका उसे देख कर हंस रही थी, अभी वो उस से कुछ कहने ही वाला था कि उसकी नजर एक पल के लिए अलका के ऊपर ठहर गयी। सफेद रंग की बढ़ी सी फ्रॉक जिस पर रंगीन तितलियां सजी हुई थी जिसका निचला हिस्सा घुटनो से सिर्फ थोड़ा सा नीचे था और उसके ऊपर से एक आसमानी रंग का सादा सा कोट जो देखने बहुत ही चिकना और नरम लग रहा था। ना कोई झुमका ना कोई हार और ना ही कान की बालियां, सिर्फ उसका वो खिला सा मुस्कुराता चेहरा और वो खुले हुए बाल.............कमाल है! उसे देख कर सृजल को ऐसा लग रहा था जी उसके पास का समय अभी थम चुका है और उसे पहली बार ये अहसास हो रहा था कि मुस्कुराहट से अच्छा कोई भी आभूषण नहीं है, उसके आगे तो सारे मेक-उप बेकार है। वो खिलखिलाती हुई मुस्कुराहट उस खिले हुए फूल सी थी जो डोर से ही भंवरे को खींच कर अपने पास ले आती है और फिर वो भंवरा किसी मदहोशी में खुद को खो देता है......................

“सृजल........!” सृजल को कोई खबर ही नहीं थी

“सृजलssss....!” की वो अलका में इस कदर खो गया था “सृजलSSSS!” कि उसे अलका की आवाज ही सुनाई नहीं दी

“सृजल!” अलका ने अब उसे झंकझोर कर बाहर निकाला, होश में आते ही उसे समझ में आ गया कि वो किसी बेवकूफ की तरह अलका को घूरें जा रहा था। खुद की इस हालत और अलका का चेहरा देख कर उसे भी थोड़ी शर्म आ गयी,

“कहाँ खो गए थे?........” सब कुछ जानते हुए भी अलका ने सृजल को खींझने के लिए उस से पूछा, आंखों में मस्ती और गालों में लाल लिए

“वो.....मैं.......अम.......!” सृजल ने अपने सर को खुजलाया क्योंकि उसे खुद समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर उसे हो क्या गया था?

“खैर वो सब छोड़ो और अब यहां से निकलते है वरना मूवी मिस हो जाएगी.......चलो,चलों!” वैसे तो उसका मन सृजल को और रिझाने का था पर फिर उसने सोचा कि आज का तो पूरा दिन उसके पास है.....सृजल कहीं भागा थोड़े ही जा रहा है

अलका जा कर कार मे बैठ गयी, सृजल भी जल्दी से अंदर आया और ड्राइविंग सीट पर बैठ गया

“मैं कैसी लग रही हूँ? ऐसी ड्रेस पहली बार पहनी है...कहीं में अजीब तो नहीं लग रही?” अलका ने बड़ी ही मासूमियत से ये पूछा, अब सृजल के हाव-भाव तो ऐसे थे कि वो बस कहने ही वाला था कि किसी परी सी सुंदर लग रही हो पर...खुद पर काबू रखते हुए सृजल ने अपना चेहरा उसके करीब किया और उसकी आँखोँ में देखते हुए बोला

“अगर मैं तुम्हारी तारीफ में घंटों भी बिताऊं तो शायद वह भी कम पड़ जाए.....तुम इतनी अच्छी लग रही हो” सृजल की बात सुनकर अलका को पता ही नहीं चला कि उसका चेहरा सुर्ख लाल हो गया था वो जल्दी ने सृजल से दूर होकर अपनी सीट पर टिक गई

“थैंक्स.....” अलका ने धीमी सी आवाज में जवाब दिया जैसे शर्म के मारे उसकी धड़कन कानों तक बजने लगी हो

अब सृजल ने देरी नहीं कि इससे पहले कि माहौल गर्म हो जाता उसने अपनी कार को जो भगाया की सीधे जाकर ‘सिनेप्लेक्स’ के सामने। उस सिनिएप्लेक्स के सामने ही पहले सृजल को मूवी का पोस्टर दिख गया...और उसी पोस्टर के ऊपर एक डिजिटल बोर्ड था जिस पर वहीं पोस्टर चल रहा था...... जिस पर लिखा हुआ था “ए. आई.- ए लव स्टोरी बियॉन्ड दिस वर्ल्ड”(A.I.- A Love Story Beyond This World)! सृजल उस पोस्टर को तो नहीं पर उस फिल्म के नाम को पहचानता था। 6-7 महीन पहले ही उसने इसी नाम से एक नॉवेल पढ़ी थी जिसके राइटर का पेन नेम था ‘ड्रीम वॉकर’(Dream Walker), ये नॉवेल उसे उसकी गर्लफ्रैंड ने भेजी थी.......स्टोरी का बेस सृजल और उसकी गर्लफ्रैंड की कहानी जैसा ही था.....लॉन्ग डिस्टेंस लव(Long Distance Love)

“क्या तुमने ये नॉवेल पढ़ी है?” सृजल कार में ही बैठा हुआ जब अपनी कुछ यादों में खोया हुआ था तभी अलका ने पूछा

“हाँ... काफी अच्छी कहानी है” सृजल ने सिर्फ जवाब में इतना ही कहा और पार्किंग के लिए अपनी कार को ले गया। उस सिनेप्लेक्स के ठीक बाहर ही एक बड़ी सी पार्किंग थी जहां पर इस वक्त 5-6 कर ही खड़ी हुई थी। कार को पार्क कर दोनों बाहर निकले और सीधे सिनेप्लेक्स के अंदर! सृजल वहाँ पर पहली ही बार आया था, वो जगह दिखने में अंदर से मॉल जैसी ही थी सिवाय इतना ही फर्क था कि वहां पर सब कुछ फ़िल्म से जुड़ा हुआ ही था। सामने अंदर पहले ही एक बड़ा सा फव्वारा लगा हुआ था और उससे ठीक आगे एलिवेटर और किनारों में लिफ्ट दिख रही थी, चारों तरफ फिल्मों से जुड़ी हुई मर्चेंडाइस की ही दुकान थी। कपड़ों की, पोस्टर्स की,खिलौनों की और खाने-पीने की दुकानों की तो कोई कमी ही नहीं थी। इस सिनेप्लेक्स में 3 फ्लोर्स थे और हर फ्लोर पर 3 सिनेमाघर थे यानी पूरे 9!

अंदर आते ही अलका ने सृजल का हाथ थाम लिया, सृजल ने भी नरमी के साथ उसका हाथ थाम लिया। वो दोनों मुस्कुराते हुए अंदर घूमने लगे

“अभी फ़िल्म शुरू होने में कितनी देर है?” सृजल ने अपनी बाजू को पकड़ी हुई अलका को पास से देखते हुए पूछा, अंदर आने से पहले अलका ने एक बड़ी सी गोल टोपी पहने रखी थी जो उस पर बहुत फब रही थी।

“अम.......30 मिनट, क्यों?” अलका ने अपने आस पास लोगों को देखते हुए बोली क्योंकि सभी उन दोनों को एकटक से देखे जा रहे थे

“चलो चल कर आइस-क्रीम खाते है, वैसे तुम्हे को से फ्लेवर पसंद है?”

“बेल्जियम चोको-चिप्स” अलका की बात सुनते ही सृजल ने उसे ऐसे देखा जैसे कह रहा हो ‘सच में?’

“वाओ(Wow) ये तो मेरी भी फेवरेट(Favorite) है” सृजल चहकते हुए बोला जिसे सुनकर अलका रुक गयी

“रुको,रुको,रुको! कहीँ मेरे चक्कर में तो तुम यह सब नहीं कह रहे.....ताकि मुझे बुरा न लगे”

“ना...मैं इतना सब कुछ नहीं सोचता! लगता है तो लगने दो! पर जो सच वो है....आउच.. आहsssss” सृजल की बात सुनते ही वो आइस क्रीम पार्लर वाला लड़का हंस पड़ा जिसे देख कर अलका ने मुस्कुराते हुए सृजल की बाजूं में चिमटी खोल दी........! उसके बाद वो तीनों ही खिलखिलाक़े हंस पड़े।

उन दोनों ने जम्बो(Jumbo) साइज(Size) की आइस क्रीम आर्डर की इसलिए एक ही में काम चल गया। अब भले ही वो दोनों डेट पर आए थे पर अपनी फेवरेट आइस-क्रीम कोई भी नहीं छोड़ना चाहता था...पहले तो दोनों ने एक दूसरे को भी खिलाया और उसके बाद................उसके बाद जैसे जैसे आइस-क्रीम का साइज कम होने लगा दोनों की चम्मच मैं आइस-क्रीम की मात्रा बढ़ने लगी और साथ ही स्पीड भी! उसके बाद जो दोनों ने एक दूसरे से छीन-छीन कर आइस-क्रीम खाई की वो बेचारा पार्लर वाला हंस-हंस कर लोट-पॉट हो गया, कभी सृजल आइस-क्रीम का पूरा बाउल उठा लेता तो कभी अलका उसका कान खींच कर उससे बाउल छीन लेती। जो भी हो दोनों ने अपना एन्जॉयमेंट अभी से ही शुरू कर दिया था। आखिर में दोनों ने एक दूसरे के चेहरे पर लगी हुई आइस-क्रीम को टिश्यू से पोंछा..... और कुछ पल एक दूसरे की आंखों में खोय रहे..वो थे जरूर नहीँ पर फीलिंग्स पूरी लवर्स वाली ही थी।

उसके बाद ही वो दोनों फ़िल्म देखने चले गए। अंदर जाने से पहले ही उन दोनों ने एक बड़ा सा पॉपकॉर्न का टब ले लिया जिसमें 3 तरह के पॉपकॉर्न थे और साथ ही 2 ड्रिंक्स भी, सृजल के लिए स्प्राइट(Sprite) और अलका के लिए कोला (Cola)! वो दोनों थोड़े से लेट हो गए थे, इसलिए जल्दी में कुछ भागते हुए वहां से सीधे सिनेमाहॉल में पहुंचकर अपनी-अपनी सीट पर बैठ गए...........अभी तो फ़िल्म का इंट्रो ही शुरू हुआ था जिसमें कैलिफ़ोर्निया का एक सीन दिखाया जा रहा था जहां पर एक शोर-शराबे से दूर एक घर दिखाया जा रहा था, आस पास काफी हरियाली थी और कुछ दूरी पर वाहन से गुजरने वाली एक सड़क दिख रही थी जिस पर अभी कोई भी वहां नहीं दिख रहा था

“फूsssss ह...अच्छा हुआ हम ज्यादा लेट नही हुए...” अलका ने कुछ गहरी सांसें लेते हुए कहा जिस पर सृजल ने हामी भरी और फिर वो दोनों ही फ़िल्म देखने में मशगूल हो गए.......वो फ़िल्म कोई मामूली सी फ़िल्म नही थी...पूरी साढ़े 3 घंटे की फ़िल्म थी! ऐसे फिल्में मुश्किल ही देखने को मिलती थी और पूरी फिल्म में कहीं पर भी इस नहीं लगा जैसे ऐसा कुछ पहले भी कहीं देखा हो ये बोर हो गए हों....सभी काफी एन्जॉय किया।

अभी 1 बज चुके था, दोनों ने सुबह से अभी तक काफी कुछ खाया था पर फिर भी दोनों ने एक साथ कहा

“अब कुछ खा लिया जाए” जैसे ही दोनों को अहसास हुआ कि उन्होंने ने एक ही बात कही है वो दोनों एक दूसरे के चेहरे को देख इतना हंसे की अपना पेट पकड़ लिया, उन दोनों को देख कर एक बार फिर थिएटर से निकले लोग भी हंसी में रम गए...पूरा का पूरा माहौल खुशनुमा हो गया

दोनों ने डिसाइड किया कि खाना किसी होटल में जाकर ही खाएंगे और वाहन से निकलने से पहले सृजल ने अलका को कार की चाबी दी और कह की वो कर बाहर निकाल कर जरा इंतज़ार कर ले तब तक वो वाशरूम से

जायेगा................... जितनी देर में सृजल बाहर आया उतनी ही देर में अलका कार लेकर बाहर उसका इंतज़ार कर रही थी। सृजल जल्दी से आकर अंदर बैठ गया और इस बार ड्राइविंग अलका ने की....मानना पड़ेगा,कहाँ सृजल एवरेज स्पीड में संभाल कर गाड़ी चलता था और कहाँ अलका हवा सी रफ्तार में कर को भगा रही थी एक पल के लिए तो सृजल को लगा कि इसके हाथ में कर देकर उस ने सबसे बड़ी गलती की है! उन दोनों ने फिर पास के ही होटल मे खाना खाया। सृजल को तो उस ही दिन पता चल गया था कि अलका बहुत बड़ी भुक्कड़ है,जिस दिन वो और आनंद अलका के साथ ‘गुरुकृपा रेस्टॉरेंट’ गए थे। अलका दिखती बहुत स्लिम थी अगर सृजल और अलका में देखा जाए तो सृजल फिर भी थोड़ा फैट लिए हुए था जबकि अलका की स्किन बहुत ही पतली थी एक दम मॉडल टाइप फिट। दोनों ने इस बार सामान्य थाली ही लगवाई थी, इधर सृजल का खाना भी हो गया और उधर अलका दूसरी बार के आर्डर किये खाने पर हाथ साफ करते हुए यही कह रही थी कि ‘इतनी भी जल्दी क्या है? अभी तो मैंने स्टार्ट किया है’। अलका का खाना होते ही जैसे ही वो दोनों वहां से बाहर निकल कर कर में बैठे सृजल ने जल्दी ड्राइविंग सीट पकड़ ली और अलका के बैठते ही बोला

“ये जो तू इतना खाती है, वो आखिर जाता कहाँ है। जितना तूने अभी खाया ना उतना तो मैं पूरे दिन में खाता हूं” सृजल ये बात इतनी नजाकत से बोला कि उसकी हंसी छिपाए न छिपी और इसी बात पर अलका मुँह फुलाकर बैठ गयी

“हम्मsssss, जाओ अब मै तुमसे बात नहीं करूंगी। एक लड़की का मजाक उड़ाते हुए तुम्हे मजा आ रहा है”

“लड़की!” सृजल तीखी नजरें अलका को गड़ाते हुए बोला “चलती-फिरती खाने की मशीन हो तुम मैडम, अगर तुम्हें किसी गरीब के घर खाने में ले गया तो तुम तो हाहाकार ही मचा दोगी” अब इस बात को कहते ही अलका ने सृजल को पकड़ कर मस्ती में पीटना शुरू कर दिया और बेचारा सृजल ‘सॉरी’ कह-कह कर ही हैरान हो गया था.......काफी देर के बाद दोनों ने एक दूसरे को छोड़ा और फिर अपने आखिरी प्रोग्राम की ओर बढ़ चले...... ‘सनसेट गार्डन’!

गार्डन के बाहर से ही देखने में फूलों की बहार दिख रही थी, कहीं गुलाब तो कहीं पर सुरजमुखी और भी कई सारे ऐसे फूल थे जिनके तो हमें भी नाम पता न हों। दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़ कर अंदर गए जहाँ पर पहले से ही काफी लोग मौजूद थे। अरे आज रविवार था यार, लोग अपने परिवार के साथ भी थे,कुछ दोस्तों के साथ थे तो कुछ लवर्स भी पिकनिक के मूड में किसी पेड़ की छांव में बैठे बातें कर रहे थे।

“क्या तुम पहली बार यहां पर आए हो?” सृजल को यहां-वहां घूरते देख कर अलका ने पूछा,वो और सृजल अभी गेट के पास ही थे

“हाँ, मैं तो पहली बार ही आया हूँ। अभी तक जहाँ-जहाँ पर भी तुम मुझे ले गयी हो उस हर जगह पर मैं पहली बार ही गया हूँ” सृजल और अलका ने इसे ही एक दूसरे का थाम लिया और अंदर बढ़ गए।

अभी 3 बज रहा था और शाम होने में काफी समय था पर फिर दोनों ने निश्चय किया कि वो अब ज्यादा इधर से उधर नहीं जायेंगे किसी एक अच्छी सी जगह ढूंढ कर शांति में बैठेंगे और बातें करेंगे। यह विचार काफी अच्छा था, जब वे अंदर घूमने लगे तब उन्हें पता चला कि ये गार्डन बहुत बड़ा है। सामने से तो वो इस दिखता था जैसे कि बस सामने जो है वहीं है पर वाहन पर अंदर आते ही जब थोड़ा अंदर जाने लगते है तभी जगह-जगह पर बोर्ड दिखते है जो और अंदर किस तरह के फूल और जगह है इसके बारे में जानकारी देते है। बाहर से वो गार्डन भरा हुआ था पर अंदर ज्यादा लोग नहीं थे। ऊपर से वो जगह काफी ऊंची-नीची थी जो वाकई में बेहद सुंदर लग रही थी। सृजल और अलका वहीं पर एक पेड़ के नीचे जाकर बैठ गय जिसके पास में एक बड़ा सा पत्थर रखा हुआ था और आस-पास फूलों की क्यारियाँ थी जिनके रंग-बिरंगे फूल मन को प्रसन्न कर रहे थे। दोनों पेड़ से टिक एक दूसरे से सट कर बैठ गए, अलका ने अपनी टोपी उतार कर अपनी जांघों पर रख ली और सृजल ने अपनी जैकेट उतार कर अपने पैरों पर।

“तो..कैसा लगा आज का दिन...मेरे साथ? वैसे मुझे तो बहुत ही मजा आया” आसमान में अपने नैन टिकाये वो वहीं कुछ ढूंढती सी बोली

“आज का दिन अब तक का सबसे बेस्ट दिन था, इतना मजा मुझे अभी तक कहीं पर भी जाकर नहीं आया था। यार....काश तुम मुझे पहले मिली होती तो अब तक न जाने कितना अच्छा समय गुजरता” सृजल की खुशी एकदम असली थी, उसकी छिपी हुई और दिख रही मुस्कान ये दिख रही थी

सृजल की बात सुनकर मुस्कुराती अलका का चेहरा पहली बार पूरे दिन में कुछ उदास हो गया

“काssssश.....मैं तुमसे कुछ साल पहले मिल गयी होती.......” उसकी उस धीमी आवाज में एक अफसोस था जो मानों उसके दिल को चीर कर अभी ही उस खाली से माहौल में गम हो गया था

“क्या? मैंने सुना नहीं..कुछ कहा क्या तुमने?” सृजल ने उनकी बात को सुन नहीं पाया था

“नहीं मैं तो खुद से ही कह रही थी” एक बार फिर से उसके चेहरे का गम तोड़ते हुए मुस्कान छा गयी “वैसे क्या हम इसी तरह डेट पर जाना जारी रख सकते है? आई मीन(I Mean)........ ये तुम्हारे साथ बीत वक्त बहुत ही शानदार था.....मुझे अच्छा भी लगा और मैं बहुत खुश भी हूँ”

“हाँ जरूर! अगर अगली बार हम सिर्फ एक जगह बैठ कर बातें कर सके तोsssss” सृजल नर उसे मुस्कुरा कर देखा जिस पर इस बार अलका की मुस्कान पहले से की गुना ज्यादा थी। वहीं अहसास सृजल को एक बार फिर हो रहा था जैसा आज सुबह हुआ था। वहीं गर्माहट का भाव, वहीं नशा और वहीं खुशी......अलका ने फिर उसे देखते हुए अपनी गोद की तरफ इशारा किया पर सृजल को समझ नहीं आया, उसने 2-3 बार इशारा किया और फिर

“अरेsssss ये क्या...क... र...र..ही हो तुम........!” अलका ने सृजल को झुंझला कर अपनी गोद की तरफ खींच कर उसका सर गोद में रख लिया और सृजल के शब्द उस कोमल अहसास में इस कदर खो गए कि वो टूट से गए। सृजल को ऐसा लग रहा था जैसे कि उसकी सारी की सारी परेशानियां उस से दूर जा रही थी और सिर्फ शान्ति ही शांति थी

“कुछ देर ऐसे ही ठहर जाओ, मुझे भी थोड़ा सुकून मिल जाएगा” अलका ने सृजल के सर पर हाथ फेरते हुए कहा

उसके बाद काफी समय निकल गया किसी पेड़ की छांव में, वो मंद-मंद सी हवा ने उन दोनों को ही नींद से घेर लिया था पर सृजल से काफी पहले अलका जग गयी थी और सृजल को ऐसे निहार रही थी जसे ये पल फिर कभी लौट कर नहीं आएगा और शायद यहीं सच था। सृजल अब किसी और का हो चुका था पर प्यार तो अलका को भी सृजल से ही था, अपने प्यार को किसी और के साथ देखना ही कितना खलता है दिल को वो वहीं जनता है जिसने कभी प्यार किया है। उसे भी समय की इस कमी और दिल की उन दर्द भरी चीख ने अब कुछ पल के लिए तोड़ दिया था। उसके दिल का बोझ अब उसकी पलकों से बर्दाश्त नहीं हुआ और वो आंखे जो सिर्फ सृजल को देखना चाहती थी उसकी चाहत की एक बूंद उसके गालों से होते हुए सृजल की आँखों को छू गयी

अपनी आंखों को नम देख जैसे ही उसकी नींद खुली,अलका की आंखों की नमी देख वो झट से उठ गया

“क्या हुआ अलका?” उसकी आँखों में देखते हुए उसे उसके जवाब की जरूरत नहीं पड़ी, आखिर सृजल की भावनाए भी तो अलका के लिए वैसी ही थी जैसी उसकी ‘लवर’ के लिए थी

“प्लीज अलका, रो मत यार, वरना मैं भी टूट जाऊंगा”

सृजल ने जल्दी से अलका के आंसू अपने रुमाल में छुपा लिए और उसे सीने से लगा लिया, सृजल को बेचैन देख अलका ने भी अपने आंसू रोक लिए और उसे कस के अपनी बाहों में भर लिया। वो दोनों की हालत एक जैसी ही थी पर फर्क इतना था कि सृजल किसी और से प्यार करता था जो कि सृजल से भी उतना ही प्यार करती थी पर अलका! वो सिर्फ सृजल से ही प्यार करती थी। अलका ने धीरे से उसे खुद से थोड़ा दूर किया और फिर उसे गालों से पकड़ते हुए अपने करीब ले लायी, सृजल को पता ही नहीं चल की आखिर क्या होने वाला है? और उसके कांपते हुए होंट सृजल के होंटो से मिल गए। सृजल ने उसे रोकने की कोशिश नहीं कि पर आगे बढ़ने की भी कोई कोशिश नहीं की......कुछ पल वहीं थम गए, जैसे समय खुद उन्हें उस मौक़े में देख कर खुश हो रहा था और अब जाकर उन दोनों के दिल में लगी आग कुछ शांत हो गयी थी.......... अलका ने सृजल से खुद को अलग किया, सूरज ढल चुका था दोनों खड़े हुए और उस थोड़े से बचे सूरज को देखने लगे जो कुछ ही पल में ओझल होने वाला था। अलका से सृजल कुछ कहने ही वाला था कि उसके फ़ोन की घंटी बजी और वो देखा कि आनंद का फ़ोन था

[हाँ आनंद...क्या बोल रहा है?]

[जल्दी से घर आ जा!] आनंद की आवाज में न सिर्फ घबराहट थी बल्कि वो बहुत ही ज्यादा डरा हुआ भी लग रहा था

[क्या हुआ भाई?! तू ठीक तो है ना?] सृजल हड़बड़ाहट में बोला

[बस तू घर आ जा! बस जल्दी आ जा...]

सृजल की आंखों के सामने अब वो सूरज ढल चुका था.........


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