Akshat Garhwal

Action Crime Thriller

4  

Akshat Garhwal

Action Crime Thriller

Twilight Killer Chapter-40

Twilight Killer Chapter-40

17 mins
362


उस रात बहुत कुछ ऐसा हुआ जिसकी किसी को भी उम्मीद नहीं थी। पुलिस के जवानों के परिवार जिन्हें आतंकवादियों ने बंधक बना रखा था उन्हें अन्डरवर्ल्ड के लोगों ने छुड़ाया, शुक्र था कि इस सब के दौरान राजन ने प्रेस को फोन करके सीबीआई के दफ्तर पर बुला लिया था जिस से बहुत बड़ी न्यूज बनने से बच गई और पुलिस के जवानों की यह मजबूरी वाली बात वहीं दब गई। जिनके परिवार को अन्डरवर्ल्ड ने बचाया था उन लोगों ने अपने साथी पुलिस वालों से माफी मांगी और शैली, उसके साथियों का बहुत-बहुत धन्यवाद किया। जिन आतंकवादियों ने पुलिस वालों के परिवार को बंधक बना रखा था वो सभी मामूली से आतंकवादी थे जिनका ‘वू’ से कोई संबंध नहीं था, उन्होंने पैसों के लिए यह सब किया था और वो लोग जिहादी थे जो ‘वू’ के बहकावे में आ गए थे। उनमे से कुछ को तो मौके पर मारना पड़ा क्योंकि वो बहुत आक्रामक थे पर उनमे कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने सरेन्डर कर दिया था। इस तरह से पुलिस और अन्डरवर्ल्ड के बीच एक अजीब सा रिश्ता जुड़ गया था। 


उधर बंदरगाह पर घाटी हुई सारी घटनाओ को आँखों देखा अतुल ने कॉमिश्नर को बताया दिया, कॉमिश्नर भी पनडुब्बी की बात को लेकर काफी हैरान हुए क्योंकि मरीन रडार में इस तरह की कोई भी गतिविधियों की जानकारी नहीं थी। फिर भी इस बारे में उन्होंने मुंबई वॉटर्ज़ सिक्युरिटी की नेवी को कॉल लगाई और इस बात को कॉन्फर्म किया कि ‘क्या मुंबई बंदरगाह पर किसी पनडुब्बी की मौजूदगी की उन्हे जानकारी थी? जिस पर वहाँ से साफ जवाब आया कि कोई भी पुनडुब्बी मुंबई बंदरगाह क्या? मुंबई के पानी में पिछले 6 महीने से उतरी ही नहीं थी। उन्होंने भी ठीक वहीं कहा जो कि कमिश्नर राव सोच रहे थे... ‘अगर कोई भी पनडुब्बी पानी में आती तो रडार से उन्हें पता चल ही जाता और अगर ऐसा नहीं होता तो भी पानी में हुई हलचल या फिर बंदरगाहों की चेकिंग के दौरान भी उन्हें कुछ पता चलता पर ऐसा तो कुछ भी नहीं हुआ’ उनका यह जवाब था जिस पर कमिश्नर राव ने बहस करना ठीक नहीं समझा। उन्हे अपने पुलिस वालों पर भरोसा था, अतुल पर थोड़ा ज्यादा ही था! इसलिए उन्होंने इस मुद्दे को सीधे कोट में सुलझाने की बात सोची। एक दुश्मन को दिखाई नहीं देता वो दिखाई देने वाले बड़े से बड़े दुश्मन से कहीं ज्यादा खतरनाक है। वैसे भी शैली के जरिए कमिश्नर राव को भी यह जानकारी थी कि ये ‘वू’ नाम के आतंकवादी संगठन के लोगों का काम है जो कि बहुत ज्यादा खतरनाक है। कमिश्नर ने भी अपनी तरफ से इस बात की पुष्टि की कि कहीं कोई आतांकवादी वाली जगह बच तो नहीं गई और इस बात की पुष्टि होते ही उन्होंने कुछ ही देर बाद सभी पुलिस वालों को उनके पुलिस स्टेशन में वापसी की इजाजत दे दी।  


प्रेस को बुला करके राजन ने उन सभी को खबर दी कि वो अपने साथियों के साथ मिलकर Twilight Killer का पीछा करते हुए टीटीसी एरिया की केमिकल फैक्ट्री में गया था जहां पर आतंकवादियों का बड़ा गुट तैनात था और उनके बीच हाथा-पाई में काफी सारे सीबीआई के काफी सारे ऑफिसर की जान गई।.......और इसी बीच उन्हें twilight killer तो नहीं मिला पर जय अग्निहोत्री मिला जिसके साथ आतंकवादियों ने अमानवीय व्यवहार किया था और इसका कारण यह था कि जय, मशहूर रिसर्चर नवल सरकार का दोस्त था जिस से उनके ड्रुग के बारे में जानकारी उगलवाने के मकसद से जय को कैद कर रखा था। राजन ने प्रेस के सामने ही अपनी लापरवाही पर माफी जाहिर की और जय अग्निहोत्री को भी एक कातिल के रूप में बता कर उसकी जो बेइज्जती की थी और उसके खिलाफ जो शूट एट साइट का ऑर्डर निकाला था उसे वापस ले लिया गया। जब राजन से पूछा गया कि उसने पहले ऐसा क्यों कहा था कि उसने जय को Twilight Killer के रूप में देखा था? जिसके जवाब में राजन ने सीधे यह बात बताई कि ‘Twilight Killer’ की शक्ल जय अग्निहोत्री की शक्ल से मिलती जुलती है इसलिए वो दूर से देख कर पहचान नहीं कर पाए थे......... और इसके आगे राजन ने केवल एक ही बात का और जवाब दिया कि इस वक्त ‘जय’ कहाँ पर है?/ 

पर राजन की प्रेस मीटिंग में ना पहुँच कर एक न्यूज चैनल ऐसा भी था जो सीधे मुंबई ब्रिज के पार रूबी फार्मा के हॉस्पिटल में पहुंचा था और यह न्यूज चैनल था.......’इंडिपेंडेस इंडिया’........और रेपोर्टर मिस ऋचा शर्मा!


रूबी फार्मास्युटिकल का नाम पूरा भारत बहुत अच्छे से जानता था और उसने अभी कुछ समय पहले ही पुणे के बाद अपना दूसरा सबसे बड़ा अस्पताल पुरानी मुंबई में खोला था, ब्रिज के दूसरी ओर। जो की एक बहुत बड़ी 25 फ्लोर की होटल जैसी इमारत थी और साथ ही उसका परिसर किसी मॉल से कम नहीं था। तरह-तरह की दुकाने वो भी अन्डर् ग्राउन्ड पार्किंग के साथ, नीचे ही। रूबी फार्मा के अस्पताल में जितनी सुविधाएं थी वो दुनिया के बहुत कम अस्पतालों में उपलब्ध थी और आज इसी अस्पताल में जय का इलाज चल रहा था। आसुना फर्स्ट फ्लोर के बरामदे में बहुत देर से काँपते शरीर के साथ जय के लिए प्रार्थना करते हुए मुट्ठी के ऊपर हाथ जोड़े घूम रही थी, वो भी बहुत तेज जैसे उसके पैरों में भौरी लगा दी हो। जब वो जय को लेकर आई थी तो ऑपरेशन रूम में जय को एक पल भी छोड़ने को तैयार नहीं थी, जब डॉक्टर ने उसे समझाने की कोशिश की तो वो डॉक्टर पर भड़क गई। बड़ी मुश्किल से रूबी ने उसे ऑपरेशन रूम से बाहर लाई थी, वो खुद भी घायल थी तो रूबी ने उसे आराम करने को कहा जिस पर वो परेशान होते हुए बोली 

“जब जय इतनी बुरी हालत में लड़ रहा था तब मैं कुछ भी नहीं कर पाई, मैं एक नंबर की बेवकूफ हूँ! मुझे जय को वहाँ पर लड़ने नहीं देना था, उसकी यह हालत मेरे वजह से हुई है....कम से कम मैं उसका इंतजार तो इस जगह के बाहर कर सकती हूँ ना” 


पर रूबी ने देख लिया था कि आसुना अपनी पसलियों को कस के दबाए हुए थी और उसके शरीर पर भी कुछ चोटों के निशान थे। वो तो रूबी की बात नहीं मानने वाली थी इसलिए रूबी ने वहीं पर डॉक्टर को बुलाया और बाहर लगी कुर्सी पर उसे बिठाल कर उसका इलाज करवाया। मोशन X रे मशीन से उसकी जांच की जिस से पता चला कि उसकी हड्डियों में कोई तोड़-फोड़ नहीं हुई है बस पसलियों के पास की, पीठ की और दाँय कंधे की मांसपेशियाँ दब गईं थी जिसके कारण उसे तकलीफ हो रही थी। उसे दवाई और इन्जेक्शन दिया गया पर उसके बाद भी वो उस बरामदे में जैसे ड्रिल कर रही थी।

हर फ्लोर पर लिफ्ट से आवाजाही की व्यवस्था थी इसलिए ज्यादातर लोग सीढ़ियों का इस्तेमाल नहीं करते थे। रूबी भी इस वक्त आसुना के पास ही थी, वो उसे कई बार बैठने के लिए बोली थी पर आसुना ने उसकी एक भी नहीं सुनी थी। तभी सीढ़ियों पर किसी के दौड़ने की आवाज तेजी से आने लगी और वो आवाज बहुत जल्दी-जल्दी पास आ गईं......दीवाल के पास से एक मोड को पार करके बरामदा शुरू होता था। इसलिए हिमांशु अचानक से उस दीवार के पास से निकलता हुआ सामने आ गया और उसके पीछे कुछ ही देर में पुनीत और टीना भी आ गये। 


“आसुना?.....” पर आसुना को इतनी तेजी से आगे-पीछे घूमते हिमांशु थोड़ा रुक गया “तुम ठीक तो हो ना? और जय कहाँ पर है?”


आसुना ने जैसे उसकी बात सुनी ही नहीं, वो उसी तरह इधर से उधर घूमती रही। यह देख कर हिमांशु ने पास में लगी स्टील की कुर्सी पर बैठे हुए रूबी बोली 


“वो अभी कुछ ज्यादा ही टेंशन में है, इसलिए तुम उस से बात ना ही करों तो अच्छा रहे गा!”


“अब जय कैसा है?” हिमांशु के इस सवाल पर रूबी ने उसे एक बार के लिए घूर कर देखा 


“अभी टाइम ही कितना हुआ है जो तुम इस तरह का सवाल कर रहे हो?” रूबी बोली “अभी उसका ऑपरेशन चल रहा है इसलिए तो आसुना के पैर इतनी तेज चल रहे है!”


“हाँ, सही कहा तुमने.....फूssssss...........” हिमांशु ने राहत की सांस ली, असल में वह भी इस लड़ाई में काफी थक गया था और उसे भी जय की चिंता हो रही थी। 


हिमांशु ने भी रूबी के सामने वाली जुड़ी हुई तीन कुर्सियों में से एक में अपनी जगह बनाई। हिमांशु के पीछे-पीछे टीना और पुनीत भी उन्हीं कुर्सियों पर जाकर बैठ गए। माहौल बहुत ही टेन्स था, टीना और पुनीत ने भी उस जगह पर कोई सवाल नहीं किये और शांति बनाई रखी। आसुना के लिए जैसे एक एक पल घंटों समान बीत रहा था। वह जल्द से जल्द जय को वापस अपने पैरों पर खड़े देखना चाहती थी। उस शांत माहौल में एक फोन की घंटी ने दस्तक दी जो कि रूबी के फोन पर आई थी। 


(हाँ....क्या हुआ?) रूबी ने ऐसे कहा जैसे किसी इंफोरमर ने उसे कॉल किया था 


(ठीक है उन्हें नीचे ही रुकने के लिए बोलना और बाकी किसी को हॉस्पिटल के अंदर मत आने देना........ ठीक है, उनसे कह दो कि अभी इंतजार करें)


इतना कह कर रूबी ने काल रख दिया पर इस मौके को देखते हुए हिमांशु को भी कुछ याद आ गया और उसने अपना फोन निकाल कर निहारिका को कॉल किया और उस बरामदे से निकल कर उस दीवार के मोड के दूसरी तरफ जाकर खड़ा हो गया, सीढ़ियों के पास!


(हैलो, निहारिका!)


(हैलो, क्या तुम ठीक हो? जय कहाँ पर है उस से बात कराओ मेरी......?) निहारिका बहुत जल्दबाजी में थी 


इस सवाल पर हिमांशु ने कोई सीधा जवाब नहीं दिया बल्कि उसे पूरी बात बताई कि वहाँ पर क्या हुआ था? किस तरह से उन्होंने राजन की और उसके कुछ साथियों की जान बचाई, उन आतंकवादियों से लड़ाई की और किस तरह से उन आतंकवादियों ने जय के साथ बदसलूकी की और किस तरह से जय ने उन आतंकवादियों में से एक की हालत खराब कर दी थी। वहाँ से लेकर अस्पताल में भर्ती तक की पूरी बात उसने निहारिका को बताया दी। 


(तो तुम वहाँ अकेले क्यों हो? मुझे लेने क्यों नहीं आए.....मुझे भी वहाँ पर आना है!) निहारिका फोन पर चिल्लाई


(तुम थोड़ा इंतजार करों, अभी अतुल को मैं बोलता हूँ कि वो तुम्हें लेने आ जाए.....ठीक है! पर पहले उस अड्वान्स सिक्युरिटी सिस्टम को स्टैन्ड्बाइ पर रख दो वरना अतुल का भुना मुर्गा बन जाएगा) हिमांशु ने मजाक करते हुए कहा, वह जनता था कि निहारिका को भी बहुत टेंशन होने लगी है इसलिए उसने निहारिका को हँसाने की कोशिश की। 

निहारिका जय की यह तरकीब समझ गई और उसका मन रखने को मुस्कुराई,


(अच्छा ठीक है मैं ध्यान से कर दूँगी) तभी निहारिका के मन में एक सवाल आया (क्या नित्या वहाँ पर है? वह ठीक है न....मेरी उस से बात करा दो जरा!)


कसं से उस वक्त नित्या का नाम सुनते ही हिमांशु की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई, वो लड़ाई में इतना खो गया था कि उसे केवल जय और आसुना का ही ध्यान रहा जबकि असली वजह तो नित्या थी। पर पूरी जगह पर नित्या का कोई नामोनिशान नहीं था! हिमांशु के मन में एक सवाल उठा....’क्या नित्या वहाँ पर थी ही नहीं? क्या जय को वहाँ पर धोखे से बुला लिया था?.....नहीं,नहीं...जय इस तरह से नहीं फंस सकता था, जरूर नित्या वहाँ पर थी तो फिर वो कहाँ चली गई?......अब इसका जवाब तो जय ही दे सकता था!


(हैलोsss…..क्या हुआ तुम कोई जवाब क्यों नहीं दे रहे हो?) निहारिका की आवाज सुनते ही हिमांशु जैसे अपनी सोच से बाहर आया


(वो... वो नित्या के बारे में तो केवल जय ही बता सकता है)

(क्या!sssssss) निहारिका की आवाज में बहुत हैरानी थी


(वो जब हम वहाँ पर पहुंचे थे तो वहाँ पर हमे नित्या का कोई भी नामोनिशान नहीं मिला था और माहौल ऐसा था कि जय से पूछ भी नहीं सकते थे कि वो कहाँ पर है?.....) हिमांशु ने अपनी तरफ बात बताई (हो सकता नित्या को जय ने वहाँ से भगा दिया हो.....इसलिए तो वो हमें नहीं मिली! वरना उसे भी वहाँ होना चाहिए था)


निहारिका हिमांशु की बात सुनकर चुप हो गई, उसे भी समझ नहीं आया कि वो क्या बोले? और क्या ही बोल सकती थी! उस माहौल में हिमांशु खुद लड़ाई में घुसा हुआ था, ढूँढने का कोई टाइम मिला ही नहीं होगा? और फी जब जय उठेगा तो वो तो बताया ही देगा न?........इंतजार ही कर लेते है


(ठीक है तुम अतुल को लेने के लिए भेजो, जरा रेशमा को भी राहत मिल जाएगी....) निहारिका बोली 


(अच्छा ठीक है, बाय। लव यू) हिमांशु पता नहीं कैसे अचानक चकते हुए बोला 


(लव यू टूssss) निहारिका ने जवाब दिया


और इसी के साथ कल खत्म हुई पर अब अतुल को कॉल करने की बारी थी। हिमांशु ने तुरंत ही उसे भी कॉल किया। पहली ही घंटी अभी पूरी नहीं हुई थी कि अतुल ने तुरंत ही कॉल उठा लिया। 


(हाँ बोल भाई, सब ठीक है न वहाँ पर) अचानक से फोन से अतुल की आवाज आई जिसमे कोई भी टेंशन नहीं थी उल्टा जैसे वो हिमांशु के कॉल का ही इंतजार कर रहा था


(अबे टावर पर ही बैठा था क्या?) हिमांशु के मुंह से खुद-ब-खुद यह निकल गया 


(अरे नहीं, वो मैं वापस वाशी के पुलिस स्टेशन पर आ गया था न? तो बस थोड़ा काम पूरा करके तुझे ही कॉल लगाने की सोच रहा था) अतुल ने यूं ही हल्की हंसी के साथ कहा 


(अच्छा ठीक है, वो सब छोड़ और निहारिका को बेस से लेकर रूबी फार्मा अस्पताल, मुंबई ब्रिज के पार आ जा!) 


(अस्पताल!) अतुल थोड़ा चौंक गया (सब ठीक तो हैं न भाई?) 


अतुल की इस बात पर हिमांशु ने एक बार और पूरी की पूरी बात फिर से अतुल को बताई जो कि अभी कुछ देर पहले उसने निहारिका को बताई थी। अतुल ने ध्यान से सब कुछ सुना और बोला


(ओह तो ऐसी बात थी!.....जय के अलावा आसुना ठीक है क्या? और तुम लोगों को ज्यादा चोटें तो नहीं आई?)


(आसुना का इलाज कर दिया है और हम सब ठीक ही है। हमें कोई खास चोट नहीं लगी, बस अब जय का ऑपरेशन खत्म होने का इंतजार कर रहे है)


(ठीक है मैं जाकर निहारिका को लेकर आता हूँ) अतुल ने कहा 


(ठीक है, यहीं पर मिलेंगे)


इतना कह कर उसने कॉल रख दी और वापस जाकर अपनी कुर्सी पर बैठ गया। सभी के चेहरे पर 12 बजे हुए थे और आसुना की तो पूरी बैंड बजी हुई थी। 3 घंटे बाद करीब साढ़े 12 बजे ऑपरेशन रूम से डॉक्टर बाहर निकले, उन्होंने अपना मास्क हटाया, 


(डॉक्टर! जय अब कैसा है? मुझे उस से मिलना है) वह बहुत हड़बड़ाहट में बोल रही थी और उसके बोलने के तुरंत बाद ही वो ऑपरेशन रूम में जाने को मचलने लगी थी, डॉक्टर ने पहले उसे रोका इतने में रूबी भी डॉक्टर के पास आ गई और उसके पीछे-पीछे हिमांशु, टीना और पुनीत भी आ गए और उन्होंने डॉक्टर को घेर लिया


“क्या हुआ डॉक्टर? जय ठीक तो है न......” रूबी ने पूछा 


“आपको बहुत टाइम लग गया, अब जय कैसा है?” हिमांशु ने भी पूछ लिया


रूबी ने आसुना के कंधों को पकड़ कर उसे शांत रहने का इशारा किया, वह शांत तो नहीं हुई पर डॉक्टर की बात सुन ने को वहीं पर खड़ी रही। 


“देखिए जय की हालत बहुत क्रिटिकल है!” डॉक्टर की बात सुनते ही सभी को झटका लगा, उन्हें किसी अनहोनी का अंदेशा होने लगा। आसुना की आँखें भर आई “बाहर और अंदर दोनों तरफ से जय ने बहुत ज्यादा डैमिज लिया है जिस से इन्टर्नल ब्लीडिंग भी हुई है”


डॉक्टर की बात सुनते ही आसुना के आँखों से 2 आँसू टपक पड़े पर अगले ही पल उसने खुद पर काबू पाया और हाथ से उन आँसुओ को पोंछते हुए वो ठीक से डॉक्टर की बात सुन ने को तैयार हो गई। डॉक्टर ने भी आसुना को परेशान देखा तो वो भी बताने में हिचकिचा रहे थे पर उसे संभलते देख उन्होंने आगे कहना जारी रखा। 


“मुझे समझ नहीं आया कि क्या हुआ पर उसके हार्ट पर बहुत प्रेशर था जिस कारण बॉडी में कुछ ब्लड वेसेल्स रप्चर हो गई है। बाहर से भी काफी सारी जगहों पर माँस फटने के घाव थे और भारी मात्रा में उसके शरीर में बुलेट एंट का जहर मिला है.......इस हालत में कोई भी इंसान जिंदा नहीं रह पाता है!” डॉक्टर की बात ने सभी का दिल भारी कर दिया, उनकी साँसे जैसे अटक गई “पर जय के मामले में ऐसा कुछ नहीं होगा, ही इज क्वाइट स्ट्रॉंग! ऑपरेशन सफल रहा और सही से मेडीकैशन चला कर जय को 3 महीने में एकदम स्वस्थ किया जा सकता है पर वो अभी होश में नहीं आया है”


“उसे होश कर तक आएगा डॉक्टर?” हिमांशु ने पूछा 


“देखिए मुझे लगता है कम से कम 24 घंटे लग जाएंगे...एक तरह से अच्छी बात यह हुई कि उसके शरीर में बुलेट एंट का जहर काफी मात्रा में था जिसने उसे सर्जिकल और ब्लड वेसल रप्चर होने वाले पैन से बचा लिया और जब जहर का असर पूरी तरह से खत्म हो जाएगा तो कम से कम 1 महीने तक जय की बॉडी में adrinalin का सर्ज रहेगा जिस से उसे ऐसा लगेगा ही नहीं कि वह बुरी तरह से घायल है.........और इस दौरान हमें उसका ज्यादा ख्याल रखना होगा”

इतना कह कर डॉक्टर जाने ही लगे थे कि आसुना ने उन्हे रोका,


“डॉक्टर रुकिए!” आसुना की बात सुनकर डॉक्टर रुक गए और पलटे “क्या मैं जय को देख सकती हूँ, प्लीज डॉक्टर!”

आसुना ने उनसे भरी आँखों से याचना की तो वो भी मना नहीं कर पाए,


“ठीक है जाकर देख लो उसे, पर 10 मिनट!”


इतना कह कर डॉक्टर वहाँ से चले गए। उनके जाते ही आसुना दौड़ कर दरवाजे से टकराती हुई अंदर चली गई जहां पर जय का ऑपरेशन हुआ था, उसके पीछे-पीछे सभी लोग दौड़ पड़े और उस कमरे में एक आसमानी नीले परदे के पीछे जय का बिस्तर था, उसे खोल कर आसुना अंदर चली गई। सभी की नजरें जैसे ही जय पर गईं तो वे सभी थोड़ा निश्चिंत हुए। जय के मुंह पर आक्सिजन मास्क लगा हुआ था, शरीर पर कई जगह स्टिच लगी हुई थी जो देखने में पतले से टेप की तरह लग रहीं थी। सीने पर दाईं ओर भारी पट्टी की हुई थी और एक गोल मेटालिक मशीन जय की छाती पर रखी हुई थी जो उसके हार्ट रेट को मानिटर व कंट्रोल कर रही थी ताकि जय कहीं हाइपर ना हो जाए वरना जिन ब्लड वेसेल्स को अभी ठीक किया गया था वो फिर से डैमिज हो जाती। नीचे से भी पट्टियाँ दिख रही थी जो उसकी पीठ पर लगी हुई थी, हाथों की एक एक उंगली पर क्लिप जैसा उपकरण लगा हुआ था और पेट से नीचे सफेद चादर ढँकी हुई थी। जय को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे अपना होश खोए वो आराम से सो रहा था, जैसे इस सब से फुरसत होकर वो आराम कर रहा था। अब ना कोई लड़ाई थी और ना ही कोई गोलियों की आवाज.........


जय के बिस्तर के पास लगे हुए एक स्टूल पर जय के हाथ के पास आसुना बैठ गई, जय का शरीर अब भी काफी लाल दिख रहा था। आसुना ने जय का हाथ पकड़ा और उसे आहिस्ते से चूमते हुए बोली,


“जयssss मैं यहीं पर हूँ...... अब सब कुछ ठीक है, बस तुम जल्दी से ठीक हो जाओ” इतना कह कर आसुना ने जय के हाथ को अपने माथे से लगा लिया। यह नजारा दिल को भारी कर देने वाला था, सभी की आँखें नम हो गई। सहसा जय की उँगलियाँ हिली और आसुना के थामे हाथ को आहिस्ते से थाम लिया। यह देख कर आसुना के चेहरे पर एक मुस्कान आ गई, आँखों में अब भी आँसू थे पर जैसे वो खुशी के आँसू में बदल गए थे। 


जय ने काफी कुछ सहा था, काफी चोट लगी थी पर वह अब भी ठीक था जिंदा था। उसके दोस्त के हत्यारे अब भी जिंदा थे पर इस बार वो इस बात को लेकर परेशान नहीं था क्योंकि नवीन ने उसे याद दिला दिया था कि वह कितना भी अकेला क्यों न महसूस करे.....उस से प्यार करने वाले हमेशा उसके पास रहेंगे....... जैसे खुद जय अपनों के पास रहता है!


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आसुना, हिमांशु, रूबी, पुनीत और टीना! सभी जय से मिलकर, उसे ठीक देख कर मुसकुराते हुए नीचे आते है। वो एक दूसरे से कुछ बात ही कर रहे थे कि उनका इंतजार करते हुए कोई नीचे वैटिंग रूम के पास उसका इंतजार कर रहा था। जैसे ही उस वेट करने वाले ने आसुना और रूबी को देखा तो वो दौड़ती हुई उनके सामने आ खड़ी हुई, 25-26 साल की गोरी-चिट्टी सामान्य ऊंचाई वाली लड़की जिसके बाल पीछे बंधे हुए थे, उसने नीचे एक सफेद रंग का सॉफ्ट जींस और सफेद टी-शर्ट के ऊपर क्रीम कलर का कोट........इस लड़की का नाम था ऋचा शर्मा, ‘इंडिपेंडेंस इंडिया’ नेसव चैनल से! उसके पीछे एक चश्मे वाला कैमरामेन भी था........ उसे अपनी ओर आता देख हिमांशु आगे बढ़ कर उसे रोकते हुए बोला


“अरे आप लोग कहाँ आ रहे है? यह वक्त सवाल जवाब का नहीं है क्रपया आप बाद में आयें” 


पर हिमांशु की बात को नजरअंदाज करते हुए ऋचा ने रूबी पर नजर डाली जैसे उसने रूबी को कुछ कहा हो और रूबी बोली,


“उसे आने दो हिमांशु, अच्छी बात है कि ये अकेली ही यहाँ पर है वरना पूरी मीडिया टूट पड़ती!” 


रूबी ने आसुना के कान में कुछ कहा और आसुना ने हामी में सर हिला दिया जिसे देख कर ऋचा बहुत खुश हुई। और रूबी ने उसे अपने पीछे आने के लिए कहा, वो लोग रूबी के ऑफिस रूम में गए जहां पर सामने एक जगह 2 कुर्सियों पर आसुना और ऋचा बैठ गई! इस सेट-अप से सभी समझ गए कि वो एक छोटा स इंटरव्यू लेने आई है। रूबी भी हिमांशु और बाकियों के साथ दूर बैठ कर यह देखने लगी, कैमरा सेट हुआ और ऋचा ने कहा 


“सभी को नमस्कार! आप सभी देख रहे है ‘इंडिपेंडेंस इंडिया’ और इस वक्त मैं जय अग्निहोत्री की पत्नी आसुना के साथ मौजूद हूँ। कुछ देर पहले सीबीआई के राजन द्वारा इस बात का खुलासा किया गया कि जय अग्निहोत्री को आतंकवादियों ने कैद कर रखा था और वह बहुत बुरी हालत में उन्हे टीटीसी एरिया में मिले थे....उनका इलाज इस वक्त ‘रूबी फार्मा अस्पताल’ मुंबई में हो रहा है और हम यहाँ मौजूद है मिसेज आसुना की आपबीती जानने के लिए!.......उनकी कहानी उन से ही जानेंगे”


इतना कह कर उसने माइक आसुना को दे दिया और अब आसुना की बारी थी अपने पति पर बीते हुए दिनों पर हुए उलटे-सीधे दावों के जवाब देने का! और इसी मौके का तो वो इंतजार कर रही थी...............   



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