Ranjeet Jha

Abstract Children Stories

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Ranjeet Jha

Abstract Children Stories

स्याह उजाले-2

स्याह उजाले-2

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बढ़ई मोहल्ला हमारे स्कूल जाने के रास्ते में आता थाI बढ़ई के कुछ बच्चे स्कूल में पढ़ने आते थेI उनमें से कुछ बच्चे लड़कियों को छेड़ते थेI उनके दिमाग में ये बात रहता था कि स्कूल जायेगा तो हमारे घर होकर हीI वही पर धरकर कुटेंगेI 

एक दिन छुट्टी के समय मैं घर जा रहा थाI वो लोग ग्रुप बनाकर सड़क पर खड़े हो जाती हुई लड़कियों को घुर रहे थेI अचानक से एक लड़का मेरे साइकिल के सामने आ गयाI बचाते-बचाते साइकिल का अगला पहिया उससे छू गयाI बहुत सँभालने के बाद भी साइकिल भी गिरा और मैं भीI बात वहीं पर ख़त्म नहीं हुईI जिस लड़के को साइकिल ने सिर्फ छुआ भर था वो आकर मुझसे गाली-गलोज करने लगाI मैं भी ताव में था मुझे उम्मीद थी कि पीछे से मेरे दोस्त आ रहे होंगे, और मैं उनसे अकेला ही भिड़ गयाI जिससे मैं भिड़ा वो मेरे से ज्यादा हट्टा-कट्टा था, और पीछे से भी मेरा कोई दोस्त नहीं आयाI दो-चार मुक्का खाने के बाद मुझे मेरी गलती का अहसास हुआI फिर किसी तरह बीच-बचाव करके मैं बच-बचा कर भागाI इस तरह के झगड़े में तमाशबीन हमारे स्कूल के लड़के लड़कियां थे और ये घटना दो चार दिनों के लिए हॉट टॉपिक बनाने वाला थाI इस घटना के बाद से वो लड़का स्कूल में और सीना चौड़ा कर चलने लगा थाI

कई बार भूलने के कोशिश के बाद भी मैं इस घटना को भूल नहीं पाया और रह-रह कर मेरे जहन में उसकी शक्ल घूम जातीI एक दिन हम क्रिकेट खेल रहे थे मैंने देखा वही लड़का साइकिल के कैरिएर पर बैट्री को रिचार्ज करवाने के लिए जा रहा है, बस फिर क्या था मैंने स्टंप उखाड़ा और उसे ललकारते हुए बोला - “रुक रे उस दिन तो बहुत शेर बं रहा थाI” वो रुका और उसके रुकते ही दे दनादन दे दनादन पहला स्टंप उसके सर पर लगा और वो वही गिर गयाI फिर मैं भागाI मुझे मेरी गलती का अहसास हुआ लेकिन अब कुछ हो नहीं सकता थाI उस दिन शाम के बजाय मैं रात को घर पहुंचाI पता चला उसके सर में छह टाँके लगेI उन लोगों ने काफी लोगों को इकट्ठा किया और हमारे यहाँ आये थे झगड़ने के लिएI माता ने उन्हें किसी तरह समझा बुझा कर शांत कराया और वापस भेजा इलाज के पैसे दियेI शुक्र ये रहा कि ज्यादा कुछ जान माल का नुकसान नहीं हुआI


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