Ranjeet Jha

Abstract

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Ranjeet Jha

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स्याह उजाले-6

स्याह उजाले-6

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पिताजी बाहर रहते थेI मेरे घर पर दादी, माँ, मेरा एक छोटा भाई और एक सबसे छोटी बहन रहती थीI एक दिन छोटी बहन ने कुछ खाने का जिद कियाI माँ के पास खुले पैसे नहीं थेI मैं अपने बक्से में कुछ खुले पैसे भी फेंककर रखता थाI माता को लगा कि बक्से में पैसे होंगे ये सोंचकर वो उसमे पैसे दूँढ़ने लगीI उसने जैसे ही ढक्कन खोला मेरा माथा ठनका, मेरे दिमाग में बोतल कौंधी मैं लपककर गया “दे रहा हूँ ढूंढ़कर दे रहा हूँ तुम हटो”

लेकिन तबतक उसे भभक लग चुकी थीI गंध का पीछा करते हुए उसने बोतल निकाला “ये क्या है?”

मुझे कुछ जबाव नहीं सुझा मैंने अपना सर नीचे कर लियाI तबतक मेरे दोनों भाई बहन भी उत्सुकतावश वहाँ इकट्ठे हो गयेI दादी भी आ गयीI माता ने गुस्से से बोतल को सिलवट्टे पर पटक दियाI बोतल का शीशा और शराब की गंध पूरे आँगन में फ़ैल गईI धुलाई से मैं थोड़ा ऊपर उठ चुका था इसलिये धुलाई नहीं हुई लेकिन धुलाई के अलावा सबकुछ हुआI मेरे सर में तेज़ झनझनाहट हुआ, लगा कि हिरोशिमा और नागाशाकी पर बम ऐसे ही गिरा होगाI आते जाते पनका को भी मालूम हुआ मेरे बक्से से बोतल बरामद हुआ और माता ने तोड़ दियाI उसने अपना पल्ला झाड़ लिया “नहीं हमको नही मालूम कहाँ से लाया कौन दिया?”

उल्टा माता के सामने वो मेरे से ही पूछने लगा- “कौन दिया तुमको?”



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