Ranjeet Jha

Abstract Children Stories

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Ranjeet Jha

Abstract Children Stories

स्याह उजाले-7

स्याह उजाले-7

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खैर बात आई गई हो गईI बोतल वाले कांड से पहले तक मेरी छवि अगर अच्छी नहीं तो बुरी भी नहीं थी, लेकिन उसके बाद सब मुझे अलग नज़र से देखने लगे मानो मेरे अन्दर कुछ अलग ढूंढ़ने की कोशिश कर रहे होI गली मोहल्ले में अलग-अलग तरह की बाते होने लगी कोई बोले- “दिखने में तो अच्छा दिखता है” किसी ने कहा- “सब संगत का असर है अभी तो मेट्रिक का परीक्षा बाकी है देखो क्या करता है” मेरे ऊपर कुछ बंदिशें लगी दो चार दिन तक मैं घर में बंद रहा दोस्तों से मिलना-जुलना कम हो गयाI उसके बाद फिर हम धीरे-धीरे अपने रूटीन पर वापस आ गयेI स्कूल में भी मैं थोड़ा शांत रहने लगाI 

होली आई और हमारा हुड़दंग सुबह से चालूI सुबह अँधेरे का फायदा उठाकर हमने कइयों के मचान, फाटक के गेट होलिका दहन में जला दियेI इसके बाद खेतों में लगे चने भी भुन डालेI 

इस बीच में हमने एक नयी चीज़ देखा जिन लड़कियों के बचपन में नाक बहती थी और हम उनके तरफ देखते भी नहीं थेI हमारे दोस्त उनके तरफ आकर्षित हो रहे थेI हम एक दूसरे की तुलना कर रहे थेI कौन कैसी है और कौन किससे ज्यादा अच्छी दिखती है? अगर कोई गुस्से से भी हमें एक नज़र देख ले तो हम अपने मन में पता नहीं क्या-क्या सपने संजोने लगते थे? हमने अपने एक दोस्त को चिंता में डूबते हुए भी देखा हैI


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