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Ranjeet Jha

Abstract Children Stories

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Ranjeet Jha

Abstract Children Stories

स्याह उजाले-3

स्याह उजाले-3

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हमारी दिनचर्या नीयत थीI सुबह स्कूल, फिर ट्युशन इसके बाद हम क्रिकेट में लग जातेI शाम को खेलकर आने के बाद एकाध घंटा किताब, टहलाते फिर हम खा पीके सो जातेI नौवीं में हमें एक चस्का और लगा थाI हमारे गाँव के एक दो लोगों का आर्मी में सलेक्शन हुआ इसके बाद हमारे भी ख्वाब जगे और सुबह में हमने दौड़ने की तैयारी शुरू कीI इसके लिए हम तीन-चार दोस्त सुबह मुँह अँधेरे एक दूसरे को जगाते थेI दौड़ने के लिए हम गाँव को शहर से जोड़नेवाली सड़क का इस्तेमाल करते थेI हमारे दिनचर्या में ये एक नया काम जुड़ गया थाI

सरस्वती पूजा के मौके पर हमारा हुड़दंग चालू होताI चंदा काटने का ट्रेनिंग तो हमें दुर्गा पूजा में ही मिल चुका थाI हमारे ग्रुप में कॉम्पीटीसन था कौन कितना देता हैI क्रिकेट के बाद आधा एक घंटा हम चंदा काटने में लगातेI गाँव के प्रवेश मार्ग पर शाम के समय थोड़ा सन्नाटा होता थाI दूसरे गाँव के दुकानदार जो फल और सब्जी बेच कर वापस आ रहे होते हम उनसे ही पाँच दस रूपये इकट्ठा करके शाम को दुर्गा पूजा समिति में जमा करवा देते थेI कभी कभी पाँच दस का हम लोग उसी में से चाय समोसा कर लेतेI एक बार किसी ने थाने में कम्प्लेन कर दिया और चंदा काटते समय दरोगा मोटरसाइकिल धरधराते हुए आ गयाI हमें पता नहीं वो दरोगा है रसीद पर नाम लिखने के लिए हम बड़े तमीज से आगे बढ़े-“सर आपका नाम क्या है?”

“रुक जा तुझे मैं नाम बताता हूँI” वो जैसे ही मोटरसाइकिल से उतरा हम रफू हुएI कोई पूरब भागा, कोई पश्चिम भागा कोई उत्तर कोई दक्षिणI वो हमारे पीछे भागा लेकिन हम अलग-अलग दिशा में भागे इसीलिए वो किसी को पकड़ नहीं पायाI खेत नाला कूदते फांदते हम घर पहुँचे उस दिन हमने पार्टी की चाय समोसे वाली और कान पकड़ाI वो दिन और आज का दिन इसके बाद हमने कभी चंदा नहीं काटाI


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