स्याह उजाले-5
स्याह उजाले-5
क्रिकेट हम शाम को तबतक खेलते थे जबतक हमें बॉल दिखनी बंद ना हो जायI हमारे गाँव को शहर से जोड़नेवाली मुख्य सड़क पर रिक्शावाले सवारियों को ढोते थेI रिक्शावाले कुछ हमारे गाँव के थे कुछ दुसरे गाँव के थेI गाँव के रिक्शावाले हमें पहचानते थे हम भी उनको जानते थेI बाहरवाले से हमें मतलब नहीं होता थाI एक शाम हम खेलकर वापस आ रहे थेI कोई रिक्शावाला सवारी खाली कर मस्ती में गाते गुनगुनाते हुए जा रहा थाI मेरा दोस्त पनका ने उसे रोका “रे रुक उस दिन हमारे दीदी और जीजा को क्यों नहीं छोड़ा।”
वो गिड़गिड़ाते रहा “मालिक कहाँ कहली अहा ?”
लेकिन पनका पर उसके किसी बात का कोई असर नहीं हुआ और उसने उस रिक्शेवाले को स्टंप से जमकर धोयाI हम साइड में खड़े भोंचक से देखते रहेI हमें कुछ पता नहीं था लेकिन ये बात हमें भी बुरी लगी कि एक रिक्शेवाले का ये मजाल कि कहीं जाने से हमें मना कर देI जमकर कूटने के बाद पनका ने उसे जाने दियाI हमें ये बात बाद में पता चला कि पनका को किसीने रिक्शेवाले को कूटने की सुपारी दी थीI सुपारी भी क्या आर्मी ब्रांड दारु की एक बोतल जो दो चार दिन बाद वो मेरे साथ ही लेकर आयाI गाछीवाले रास्ते में हमने उसे हल्का टेस्ट कियाI होली आनेवाला था इसलिये पनका ने उस बोतल को मुझे दे दिया संभालकर रखने के लिए कि होली में पियेंगेI
मैंने भी हामी भरदी क्योंकि मेरे पास एक बक्सा था जिसे निजी तौर पर मैं ही इस्तेमाल करता था, उसमे हम अपना कॉपी किताब रखते थे और घर के किसी सदस्य का उस बक्से से कोई मतलब नहीं थाI मुझे लगा बक्से में वह सुरक्षित रहेगा और किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगाI तौलिये में छुपाकर बोतल को बक्से तक सुरक्षित पहुंचा दिया गयाI दो चार दिन तो बक्से के सुरक्षा में मैं आस पास मंडराते रहा फिर मैं निश्चिंत हो गया अब किसी को कुछ पता नहीं चलेगाI