Ganesh Chandra kestwal

Tragedy Inspirational

4.5  

Ganesh Chandra kestwal

Tragedy Inspirational

स्वार्थी

स्वार्थी

3 mins
420


  प्रतिभा किचन में पकवान बनाने में व्यस्त थी और पल्लव अपने लाडले पुत्र प्रभात को नाना प्रकार के प्रलोभनों से उसे लुभाते हुए नाश्ता करने के लिए प्रेरित कर रहा था। पर क्या मजाल कि प्रभात एक कौर भी मुँह में डाले। उसे तो अभी मोबाइल पर गेम खेलना है, यह कहते हुए वह अपना मुंह पल्लव के हाथ से दूर हटा लेता है। लेकिन पल्लव पुत्र-स्नेह से पुनः पुनः प्रभात को नाश्ता खिलाने का प्रयास कर रहा था। अब तो प्रभात को क्रोध आ गया और बोला- "कहा न पापा, मुझे भूख नहीं है। आप और ममा करलो नाश्ता।" थक-हार कर पल्लव किचन में गया और दो प्लेटों पर कटरोल्स, चटनी और स्नेक्स रखकर दो प्यालो में काफी भरकर उन्हें लेकर डाइनिंग टेबल की ओर बढ़ ही रहा था कि उसका फोन बजने लगा। प्लेटों को टेबल पर रख कर फोन चेक किया, अननोन नंबर देखकर इग्नोर करते हुए फोन रख दिया। वह प्रतिभा को नाश्ते के लिए बुला ही रहा था कि फोन फिर से बज उठा। "चैन से नाश्ता भी नहीं करने देते।" यह बड़बड़ाते हुए उसने फोन रिसीव किया। दूसरी ओर से आवाज आई- "हैलो, आप पल्लव ही बोल रहे हैं ना ?" 

"हाँ हाँ मैं पल्लव ही बोल रहा हूँ। कहिए आप कौन हैं और क्या कहना चाहते हैं?" पल्लव ने कहा।

"मैं इंस्पेक्टर सचिन बोल रहा हूँ। मिस्टर प्रमोद अब नहीं रहे।" दूसरी ओर से आवाज आई। 

"आप क्या कह रहे हैं इंस्पेक्टर?" पल्लव ने घबराते हुए पूछा। 

"हाँ हाँ वही जो तुमने सुना। पिछले 25 दिनों से मिस्टर प्रमोद ने घर का दरवाजा नहीं खोला तो पड़ोसी दरवाजे पर गए। उन्हें दुर्गंध महसूस हुई। दरवाजा खटखटाने पर कोई प्रतिक्रिया न मिलने पर अनहोनी की आशंका से उन्होंने पुलिस को फोन किया। दरवाजा तोड़ने पर वह मृत पाए गए। तुम इनके इकलौते बारिस हो। आगे की कार्यवाही के लिए शीघ्र पहुँचो।" इंस्पेक्टर बोले। जी, इमरजेंसी फ्लाइट से कल सुबह तक पहुँचता हूँ। यह कहते हुए पल्लव ने फोन रख दिया।

  पल्लव अपना आवश्यक सामान लेकर एयरपोर्ट पहुँचा। फ्लाइट 1 घंटे बाद थी। एक-एक पल उसे बहुत लंबे प्रतीत हो रहे थे। वह इन पलों में अपने बचपन की यादों में डूबता चला जा रहा था। बचपन में ही माँ के चले जाने के बाद पिताजी ने माँ के हिस्से का पूरा प्यार भी मुझे दिया। मेरी हर खुशी का हर पल ध्यान रखा। स्वयं कष्ट सहकर भी मुझे आँच न आने देते। मेरी छोटी सी बीमारी में वह कितने बेचैन रहते और मेरी देखभाल करते रहते। कितनी खुशी से मुझे पढ़ाया लिखाया और कितने अरमानों के साथ मेरा ब्याह रचाया? मैं स्वार्थी अपने तथाकथित फैमिली के बीच स्वाभिमानी पिता के लिए छोटी सी जगह न बना सका। धिक्कार है मेरे और मेरी उपलब्धियों के लिए......। इसी बीच फ्लाइट के समय की घोषणा होने लगी।


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