Ganesh Chandra kestwal

Tragedy Others

4.3  

Ganesh Chandra kestwal

Tragedy Others

गैस सिलेंडर

गैस सिलेंडर

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    बहुत दिनों से चिंता ग्रस्त माधवी ने कल सायं चैन की गहरी साँस ली थी। कई दिनों से खाली सिलेंडर भरवा कर दुगड्डा से मँगवाया था। जिसके लिए सड़क तक का किराया टैक्सी वाले को चार सौ रुपए और सड़क से घर तक पहुँचाने के लिए मजदूर को दो सौ रुपए भुगतान किए तथा सिलेंडर की भरवाई एक हजार पचास अलग। फिर भी संतोष की गहन अनुभूति माधुरी ने की थी।

    प्रातःकाल जैसे ही उसने चूल्हे पर चाय चढ़ाई, लौ घटते-घटते कुछ ही क्षणों में पूर्ण रूप से विलुप्त हो गई। बाहर दालान पर बैठे माधव पहाड़ों की अनुपम सुंदरता को अपलक निहारे जा रहा था। पत्नी की मधुर आवाज कानों पर पड़ी "अजी सुनते हो? गैस खत्म हो गई है। सिलेंडर बदल दो।" चाय की चुस्कियों के लिए व्यग्र माधव तेजी से रसोई में गया और सिलेंडर बदलने लगा। 

"अरे यह क्या?सिलेंडर पर रेगुलेटर फिट ही नहीं हो रहा है।" माधव ने कहा।

"जरा ठीक से तो लगाओ।" माधुरी बोली।

लगभग एक घंटे के प्रयास के बाद भी सिलेंडर पर रेगुलेटर फिट न हो सका। माधुरी फिर से सिलेंडर के लिए चिंतातुर हो गई। साथ ही उसके लिए व्यय धन और अनुभूत असुविधाओं के लिए कभी सिलेंडर को और कभी गैस कंपनी को कोसने लगी।



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