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Ganesh Chandra kestwal

Inspirational

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Ganesh Chandra kestwal

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पंडित जी अब बूढ़े हो गए

पंडित जी अब बूढ़े हो गए

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"वासवानंदात्मजं वंदे,ज्योतिःशास्त्र विशारदम् ।

स्वकीयेन ज्ञानदीपेन,खलु अन्येषां प्रज्वालितम् ।।"

सायंकाल गोधूलि वेला से प्रातः सूर्य के गगन आरोहण की वेला तक गुलाबी ठंड अपना प्रभाव दिखाने लगी थी। किसानों की गोठें अभी खेतों में ही थीं । गोठ में बँधे पशु भी ठंड से प्रातः उठने में अलसाने लगे थे । वितृण किए गए खेतों पर तीन बार जुताई करने और दो बार पाटा चलाने से उनका सौंदर्य इतना अधिक निखर गया था जितना कि किसी सुंदरी का सौंदर्य, सौंदर्य-वर्धक लेपों से भी नहीं निखरता । मिट्टी के रंग अत्यंत ही मोहक लगने लगे थे। बग्वाळ पुष्प की डालियाँ नारंगी रंग के पुष्पों से लद गई थीं ।बग्वाळ पर्व मात्र एक रात्रि की दूरी पर था। गेंहूँ और जौ की बुआई थोड़ी ही शेष थी। मवेशियों और किसानों की खेतों में प्रवास की अवधि का अवसान सन्निकट था। सिमलना गाँव का एक व्यक्ति गोठ से पशुओं को पशुशाला(छन्नी) में बाँधने का मुहुर्त जानने के लिए निकटस्थ खुंडरा गाँव के निवसी, माँ वागीश्वरी के उपासक पं. वासवानंद के आत्मज, ज्योतिर्विद पं. जोगेश्वर प्रसाद दुदपुड़ी जी के पास गया। पंडित जी अपने जीवन के अंतिम वर्षों का भोग कर रहे थे।

उस व्यक्ति ने पंडित जी को प्रणाम कर आशीर्वाद ग्रहण करने के पश्चात् उनसे पशुशाला में पशुओं को बाँधने का मुहुर्त बताने का आग्रह किया। पंडित जी ने कहा- "परसों बाँध लेना ।" सुनकर उसके मस्तिष्क पर मानो बिजली का तेज झटका लग गया हो। पर वह कुछ नहीं बोल पाया और पंडित जी को प्रणाम कर विचारमग्न अपने घर के ढलवाँ रास्ते पर चल पड़ा । वह सोचता पंडित जी अब बूढ़े हो गए हैं, उनकी निर्णय क्षमता समाप्तप्राय हो चुकी है, उन्होने अमावस पर्व पशुओं को पशुशाला में बाँधने का मुहुर्त बतलाया है । इसी उधेड़-बुन में वह अपने गाँव सिमलना पहुँचा । सारे गाँव में चर्चा दावानल की तरह फैल गई कि पंडित जी अब बूढ़े हो गए हैं, उन्होने अमावस पर्व पशु-प्रवेश मुहुर्त बतलाया है । अगले दिन की बग्वाळ पर्व की रात्रि बीतने के पश्चात् उदय वेला में भगवान भास्कर प्राची दिशा में ज्यों ही उदय हुए, पश्चिमोत्तर दिशा में एक बादल का टुकड़ा उभरा, देखते ही देखते वह बढ़कर पूरे गगन-मंडल पर छा गया।

बादलों से जलबूँदें धरती पर गिरने लगीं । संध्या समय होते-होते जीव-जगत शीत से कंपायमान होने लगा । मजबूर होकर सभी किसान अपने पशुओं को पशुशाला में बाँधकर अपने-अपने घर में आ गए। केवल सिमलना गाँव में ही नहीं बल्कि सभी गाँवों की यही स्थिति बनी । घर पहुँचने के बाद गाँववासियों के बीच एक और नई चर्चा उभरी कि ऐसे दूरदर्शी गणितज्ञ पंडित के बारे में हमने व्यर्थ ही कहा कि "पंडित जी अब बूढ़े हो गए हैं ।" और शीत भरे मौसम में भी पश्चाताप की अग्नि में तपकर गर्मी का अनुभव करने लगे। 


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