नींद का पिटारा
नींद का पिटारा
बिपाशा अपना सारा काम निपटा कर सोने के लिए बिस्तर पर लेटी, परंतु आँखों की नींद न जाने कहाँ खो गई थी। एकाकी वह शनैः-शनैः स्मृतियों की सीढ़ियों से उतरकर बचपन में जा पहुँची। बचपन में वह हर साल गर्मियों की छुट्टी में अपनी माँ के साथ उत्साह पूर्वक नानी के घर जाती थी। वहाँ दिन भर की मस्ती और मनचाहा खाने-पीने के बाद सोने के लिए चुपचाप नानी के बिस्तर में घुस जाती थी। एक रात उसकी आँखों की नींद न जाने कहाँ गायब हो गई थी। बहुत देर बाद उसने नानी से पूछ ही लिया, "नानी ! नानी ! मुझे नींद क्यों नहीं आ रही है ?"
नानी ने उसे छाती से लगाकर बड़े प्यार से कहा- "बेटी निंदिया रानी का नींद का पिटारा अभी नहीं पहुँचा। " निंदिया रानी के विषय में उसकी जिज्ञासा प्रबल हो उठी और नानी से बोली- "नानी! कौन निंदिया रानी ?" नानी बोली- "बहुत दूर एक सुंदर देश है, जिसकी रानी निंदिया है। वह बहुत ही खूबसूरत है, जिसके लंबे-लंबे काले बाल हैं। जब वह सिर हिलाकर अपने लंबे काले बालों को पलटती है तो एक छोटा सा जादुई पिटारा प्रकट हो जाता है और वह पिटारा स्वयं ही मनमोहक खुशबू बिखेरते हुए हवा में उड़ कर घर-घर में जाता है और अपनी जादुई खुशबू से बच्चों को चुपके चुपके सुला कर चला जाता है। बच्चे सोते ही निंदिया रानी के देश की सैर करने लगते हैं और उस देश की सुंदरता से अत्यधिक आनंदित होते हैं। बिपाशा उस अनुपम देश की सुंदर कल्पनाओं में उलझ कर नींद के आगोश में चली जाती है।
