कुक्कुट से प्रेरणा
कुक्कुट से प्रेरणा
ब्रह्म-मुहुर्त से पहले ही जिसकी बाँग सुनकर पूरा गाँव जागता था, वह सुनहरे पंखों और रक्तवर्ण शिखा वाला चंडी प्रसाद जी का हृष्ट-पुष्ट कुक्कुट था, जो अपनी पत्नी और सात चूजों सहित चंडीप्रसाद जी के आँगन और खेतों में इस प्रकार विचरण करता था मानो कोई शाही परिवार अपने आनंद-कानन में आनंद पूर्वक भ्रमण कर रहा हो| लेकिन सुख और दुःख चक्रवत् जीवन में आते-जाते रहते हैं, कुक्कुट का सुख भी शाश्वत नहीं रहा, उसके जीवन में एक भीषण बज्र-पात हुआ। एक बिल्ली कराल-काल बनकर आई और उसकी पत्नी की गर्दन को अपने जबड़े में दबोचकर अपने उदर-भरण के लिए ले गई। कुक्कुट एक ओर पत्नी-वियोग से दुःखी था तो दूसरी ओर चूजों के रक्षण के लिए चिंतित। अब वह चूजों की रक्षा के प्रति इतना संवेदनशील हो चुका था कि अपने जीवन में मानव का हस्तक्षेप भी उसके लिए असह्य हो गया था। कुक्कुट के पत्नी वियोग और कर्त्तव्य पालन से चंडी प्रसाद जी के तयेरे भाई युवा विष्णुदत्त जी से अधिक परिचित कौन हो सकता था?
उनकी धर्मपरायणा पत्नी सातवीं संतान की प्रसव-वेदना से नवजात सहित परलोक सिधार गई थी। विष्णुदत्त जी के हृदयस्थ पत्नी-वियोग की ज्वाला प्रतिक्षण उन्हें झुलसा रही थी, साथ ही अबोध बच्चों के रक्षण की चिंता भी। परिजनों ने बच्चों की देख-रेख के लिए उन्हें दूसरा विवाह करने के लिए अनेक उदाहरण देकर प्रेरित किया किंतु, परिजनों की प्रेरणा एवं कामवासना पर निःस्वार्थ कर्त्तव्य पालन में रत कुक्कुट की मूक प्रेरणा विजयी हुई| जिसके परिणामस्वरूप अनेकों संघर्षों को झेलते हुए, स्वयं ही बच्चों की माँ और पिता बनकर उनका पालन-पोषण किया| बेटियों को ससमय ससुराल के लिए विदा किया तथा बहुएं लाकर बेटों का घर बसाया। बच्चों के भरपूर परिवारों से संतुष्ट होकर विष्णुदत्त जी प्रसन्नता पूर्वक गोलोक चले गए|
