Archana Tiwary

Tragedy

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Archana Tiwary

Tragedy

स्वार्थी माँ

स्वार्थी माँ

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 श्वेता आज भी क्लास में लेट आयी।मैंने अटेंडेंस रजिस्टर से नज़रे हटा उसकी तरफ देखा और डांटते हुए अंदर आने को कहा।।   अक्सर श्वेता लेट आती और कुछ न कुछ बहाने बनाती।मैंने उस समय उससे कुछ भी कहना उचित न समझा ।वह अपनी सीट पर जाकर बैठ गई। सिर झुकाए मेरी नजरों से बचते हुए अपने पास बैठी दोस्त रेखा को कुछ कहा, फिर दोनों की नजरें मेरी तरफ उठी ।उन्हें देख मुझे पता चल गया था आज कुछ हुआ नया बहाना बना रही है।

  मैंने पढ़ाना शुरू कर दिया। बीच-बीच में जब भी मेरी नजरें श्वेता से टकराती तो वह सिर झुका लेती। क्लास खत्म होते हैं वह भागती हुई मेरे पास आई और कहा -"मैडम, मुझे आपको कुछ बताना है"। 

मैंने कहा- अभी नहीं, अभी मैं दूसरी क्लास लेने जा रही हूं। जब फ्री हो जाऊंगी तो मैं तुम्हें बुला लूंगी। उस दिन तो क्लास लेने में और पेपर बनाने में ऐसी उलझी रही कि श्वेता को बुलाने की बात भूल ही गई ।घर आकर मुझे श्वेता का ख्याल आया। मैंने सोचा कल उससे बात जरूर करूंगी ।

  दूसरे दिन फिर वह लेट आई उसकी 

आखों में प्रश्न साफ नजर आ रहा था। शायद कल वाली बात वह फिर आज पूछना चाहती थी ।मैंने आंखों के इशारे से उसे बाद में मिलने की बात कह पढ़ाना शुरू कर दिया।

 हम सब शिक्षक आँखों की भाषा का इस्तेमाल ऐसी घड़ी में बहुत अच्छे से करते हैं। बच्चों पर गुस्सा उतारने, प्यार जताने, नाराज़गी दिखाने में बखूबी इसका इस्तेमाल जानते हैं ।

मैंने जब उसकी तरफ देखा उसकी आंखों में आत्मविश्वास की झलक दिखी। क्लास खत्म करके मैं अभी बैठी ही थी कि श्वेता मेरे पास आकर खड़ी हो गई ।मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा -हां बोलो श्वेता ,आज क्या बहाना है? उसने झेंपते हुए कहा- मैडम, मैं कोई बहाना नहीं बना रही हूं। मैं काफी दिनों से एक कशमकश में हूं कि ये बात आपको बताऊं या नहीं। मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा -देखो ,जब मन में किसी बात के कारण बेचैनी हो तो उसे बता देना ही सही है। इससे मन हल्का हो जाता है। अगर तुम नहीं बताओगी तो तुम्हारा मन पूरे दिन किसी काम में न लगेगा उसने अचानक मेरा हाथ पकड़ कर कहा -मैम आप को अकेले में कुछ बताना चाहती हूं यहाँ नही।मुझे उसकी बात की गंभीरता का अंदाज कुछ कुछ होने लगा था। 

मैं बाहर कोरीडोर में रखें एक बेंच की तरफ इशारे से चलने को कहा। अक्सर यहां रखे बेंच पर उन बच्चों को बिठाया जाता है जिन्होंने होमवर्क पूरा नहीं किया हो।

  मैं उस बेंच पर बैठकर पास में उसे बिठा कर उसकी तरफ देखा। अभी तक जो उसकी आंखों में आत्मविश्वास था वह न जाने कहां गुम हो गया। बात करते हुए वह घबराने लगी ।उसके हाथ कांप रहे थे। मैंने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा -क्या बात है, तुम इतनी नर्वस क्यों हो ?उसने कहा बात ही कुछ ऐसी है जिसे सुन कर आप भी असमंजस में पड़ जाएंगी।

  जब मैं पांचवी कक्षा में थी तभी मेरे पापा ने आत्महत्या कर ली थी और उसकी वजह मेरी मां है। मां को फिजूलखर्ची की आदत है। उसे बाहर घूमना, शॉपिंग करना, मूवी देखना बहुत पसंद है ।मेरे पापा की सरकारी नौकरी थी ।तनख्वाह बहुत ज्यादा नहीं थी। घर खर्चे को लेकर अक्सर उन लोगों में झगड़ा होता था। मैं और मेरा भाई उस समय बहुत डर जाते थे ।मेरा भाई मुझे कमरे में ले जाता था। हम छुप- छुप देखते थे। मेरे भाई को भी आप जानती हो मैडम। वो भी इसी स्कूल में पढ़ा है। उसने मुझे आपके बारे में बताया था। "अच्छा, क्या नाम है उसका"? उसका नाम सौरव है ।दो वर्ष पहले ही दसवीं पास किया है और तब शायद आप ही उसकी क्लास टीचर थी।

 हां- हां ,मुझे याद है वह सौरभ। बहुत शैतान था। तब तो पढ़ाई में उसकी बिल्कुल दिलचस्पी न थी ।

अब क्या कर रहा है? 

वह ट्वेल्थ में है पर अब भी पढ़ाई पर ध्यान नहीं देता ।अब तो उसकी मनमानी इतनी बढ़ गई है कि घर में किसी की नहीं सुनता।

 तो क्या, मां की बात भी नहीं मानता। 

बात मानने की तो बात तो दूर। 

मैम, वह तो मां पर अब हाथ उठाता है।

" क्या"?

 हां मैडम, उसे मां से नफरत है और मुझे भी। 

  पापा के आत्महत्या करने के एक साल बाद ही मेरे घर में एक अंकल का आना-जाना शुरू हो गया ।मां ने घर खर्च के लिए नौकरी कर ली थी और यह अंकल उनके ऑफिस में ही उनके साथ काम करते थे। मुझे और मेरे भैया को वो बिल्कुल पसंद नहीं है। जब भी घर पर आते हैं मां उनकी पसंद का खाना बनाती है। दोनों एक साथ बैठकर बातें करते हैं आधी रात के बाद ही वह घर जाते हैं ।

तो क्या, तुम्हारी मां उनसे शादी करना चाहती है ?

नहीं मैम ,उनकी शादी तो हो चुकी है। उनकी पत्नी और दो बच्चे इसी शहर में रहते हैं। उनका इस तरह से मेरे घर में आना जाना मेरे पड़ोसियों को भी अच्छा नहीं लगता। वे हमारा मजाक उड़ाते हैं ।इस वजह से मोहल्ले में हमारी कोई इज़्ज़त नही करता। कभी-कभी तो यह अंकल पूरी रात अपने घर भी नहीं जाते ।

"तो सौरभ क्या कहता है इस बारे में" ?

   वह अपने दोस्तों के साथ बहुत बिजी रहता है ।इसी उम्र में ड्रग्स और शराब पीने लगा है ।कभी-कभी तो अपने दोस्तों के साथ वह पूरी रात बाहर ही रहता है। घर भी नहीं आता। अक्सर मैं स्कूल में लेट इसलिए आती हूं कि हमारे वैन वाले भैया को मां समय पर पैसे नहीं देती। इस बार उसने मुझे लाने से मना कर दिया। अब मैं पैदल चल कर आती हूं इसलिए स्कूल पहुंचने में लेट हो जाती है। घर के सब काम भी मुझे ही करके आना पड़ता है। मेरी मां मेरे स्कूल आने से पहले ही ऑफिस चली जाती है और देर रात वापस आती है ।घर में सब कुछ कैसे चल रहा है इसका भी उन्हें कुछ पता नही रहता। माँ हमें उस अंकल को पापा कहने को कहती है पर मैं अपने पापा की जगह किसी को नहीं दे सकती ।पहले तो वह अंकल मुझे बेटी कह कर पुकारते थे पर पिछले कुछ दिनों से मुझे उनसे डर लगने लगा है। 

क्यों ?

इसमें डरने की क्या बात है ?

मैडम, वह मुझे बहुत गलत ढंग से छूते हैं और कहते हैं तुम तो अपनी मां से भी सुंदर हो ।मेरे पास आकर बैठो मुझसे बातें करो ।मुझे उनकी बातें सुनकर बहुत डर लगने लगा है। मैं क्या करूं?

  मां उनके खिलाफ कुछ सुनना नहीं चाहती। भैया से भी ऐसी बात करने में शर्म आती है और उसने तो घर में आना ही बंद कर दिया है। शायद वह मेरी बात समझ न पाएगा ।

 उसकी बातें सुनकर मुझे लगा यह सब बातें तो हम सीरियल और सिनेमा में देखते आए हैं पर हकीकत में ऐसी घटनाएं हमारे आसपास भी हो रही है इसका तो हमें अहसास ही नही होता ।

  मैंने उसे बीच में टोकते हुए कहा-" तो क्या तुम्हारे कोई रिश्तेदार नहीं है इस शहर में"? मेरा मतलब चाचा बुआ या फिर मामा ।उसने कहा- मेरे पापा के जाने के बाद मेरे दादाजी ने हमसे संबंध तोड़ दिया क्योंकि उन्हें भी मालूम था कि पापा के आत्महत्या के पीछे मेरी माँ ही जिम्मेदार है। मेरे मामा दूसरे शहर में रहते हैं। हां नाते रिश्तेदारों में बस एक मामा की लड़की रीना है जिससे मैं मन की बातें कह सकती हूं ।वह मुझ से एक साल बड़ी है।

  शिवानी के साथ भविष्य में कुछ अनर्थ होने की आशंका ने मुझे घेर लिया। मैंने तुरंत कहा -तुम रीना को अपने साथ होने वाली ये सारी बातें बता दो और संभव हो तो शीघ्र ही उनके पास चली जाओ ।उसने हामी भरते हुए सिर हिला दिया।

 मैं अपराधबोध से घिर गई ।ये हमारे बच्चे इतनी छोटी उम्र में न जाने कैसे-कैसे परिस्थितियों से गुजरते हैं और हम उनकी बात सुने बिना न जाने क्या-क्या कह जाते हैं। रिश्तों के ताने-बाने कितने उलझते जा रहे हैं ।पुत्र कुपुत्र होता है पर माता कुमाता न होती यह उक्ति भी अब तो झूठी साबित होने लगी है। शिवानी की बातें सुनकर मन में थोड़ी बेचैनी होने लगी क्या ऐसी स्वार्थी माँ हमारे आसपास ही है जो अपने बच्चों के साथ ही....।


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