वृद्धाश्रम
वृद्धाश्रम
रोज की तरह शाम में जब मैं अपने पति के साथ सैर पर निकली तो रास्ते में द्विवेदी जी से मुलाकात हो गई। हल्की मुस्कान के साथ अभिवादन हुआ। उनके साथ उनकी पत्नी भी थी। अक्सर शाम की सैर के समय ये दंपति हमें मिलते थे। शुरूआत में परिचय तो सिर्फ मुस्कान से हुई पर धीरे-धीरे बातें आपस में बातें भी शुरू हो गई। वह पास वाली सोसाइटी में ही रहते थे। उनके दो बेटे और एक बेटी है। आज दोनों काफी खुश लग रहे थे। नए कपड़े पहने थे और हाथों में मिठाई का डब्बा था। हमारी तरफ मिठाई का डब्बा बढ़ाते हुए उन्होंने मिठाई लेने का आग्रह किया। मैंने पूछा _"आज किस खुशी में मिठाई बांटी जा रही है ।"
उनकी पत्नी ने कहा _"आज मेरी सास का जन्मदिन है।"
अरे वाह बहुत-बहुत बधाई हो।
"कहां है आपकी सास "?
बस अभी-अभी हम उनसे मिलकर ही आ रहे हैं।
" तो क्या वह आपके साथ नहीं रहती"? नहीं पास ही एक वृद्धाश्रम रहती है।
" और आपकी सास मेरा मतलब है आपके सास ससुर कहां रहते हैं"?
मेरे पति ने कहा _वो दोनों हम लोगों को अपने साथ ही रखते हैं। आइए आप लोग कभी हमारे घर। आपसे मिलकर वो बहुत खुश होंगे।
बनावटी हंसी और आने की हामी भरते हुए वे चले गए।
उनके जाने के बाद मेरे मन में बड़ी हलचल मची थी। क्यों आखिर क्यों यह वृद्धाश्रम बनाए जाते हैं। न ये बनते न अपनों को एक ही शहर में अलग रहना पड़ता।
पर कहते हैं न हर चीज के दो पहलू होते हैं।
बड़े मंथन के बाद मुझे लगा कि वृद्धाश्रम बनाना भी एक नेक काम ही है। जिन वृद्धों का अपना कहलाने वाला कोई न हो उनके लिए तो यह उनके अपने घर और भरा पूरा परिवार जैसा है। अगर यह वृद्धाश्रम न होता तो अकेले जिंदगी काटना उनके लिए बड़ा मुश्किल होता।