Archana Tiwary

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दिवाली मां वाली

दिवाली मां वाली

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छोटी थी नासमझ थी पर जैसे ही होश संभाला दिवाली से कई दिनों पहले से ही घर में मां को साफ सफाई करते देखती।घर में रंगाई पुताई का काम भी ऐसे करवाई जाती कि दिवाली के एक हफ्ते पहले खत्म हो जाए।मैं सोचती रोज ही तो घर की सफाई होती है तो फिर ये दिवाली पर ये विशेष सफाई क्यों?मां घर के हर कोने कोने के साथ आलमीरा, खिड़की,दरवाजे,पंखे की सफाई बड़ी ही कुशलता से करती और साथ में हम भाई बहनों से भी करवाती।मैने तो गुस्से में यहां तक कह दिया कि कौन से विशेष लोग आनेवाले हैं और आए भी तो क्या वो हमारी आलमीरा को खोल कर देखने वाले हैं ?मां कहती ये साफ सफाई हम दूसरों के लिए नही अपने लिए करते हैं।

तब बाजार से मिठाइयां ज्यादा न आती थी।मां को तो घर की मिठाइयां पसंद थी।तरह तरह की मिठाई नमकीन बनाती।सब काम बड़े ही सुनियोजित तरीके से समय पर खत्म करने की अद्भुत क्षमता थी उनमें। उनकी कही कई बातें तब पल्ले नहीं पड़ती थी।वक्त गुजरता गया शादी के बाद ससुराल में आकर मां की तरह ही सासू मां को भी दिवाली की विशेष सफाई करते देखा।उनके साथ मैं भी काम में उनका हाथ बटाती थी। यहां तो गुस्सा भी नही कर सकती थी।

 पति के साथ जब अलग अलग शहरों में नौकरी के लिए रहना पड़ा तब दिवाली आनेवाली होती तो मैं भी मां की तरह विशेष सफाई में लग जाती।कब और कैसे ये हुआ इसकी तो मुझे भनक भी न लगी।घर में मिठाइयां भी बनाने लगी।पति और बेटा कहता _"छोड़ दो न बाजार से मिठाइयां ले आऊंगा"।


अब कैसे उन्हें समझाऊं_यही तो वो समय है जब मैं बचपन के उन पलों को फिर से जीती हूं।मां जैसी बन जाती हूं या बनने की कोशिश करती हूं।अब उनकी कही बातें समझने लगी हूं। 

हां,ये दिवाली त्योहार ही ऐसा हैं जो यादों की गलियारे की सैर करा फिर उसी रोमांच से भर देती हैं।ये साफ सफाई मिठाइयां, तोहफे एक अनमोल अनुभूति हैं जिसमे समय के साथ साथ बदलाव दिखने लगे हैं पर ये हम बड़ों की जिम्मेदारी भी तो हैं अपनी परंपरा अपने रीति रिवाज को एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी तक ले जाने की।


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