अनजाना डर
अनजाना डर
लगता है कभी-कभी तुम बहुत आगे निकल गए
वहां जहां तक पगडंडी पहुंचती ही नहीं
तुमसे बातें करते हुए भीअनजाना सा डर लगा रहता है
मजाक में कही गई तुम्हारी बातें अब सच्ची लगने लगी है
जिस गली में जाने से कभी कतराते थे
अब उस गली का दौरा करने लगे हो।
तेरी हर बातों पर अबबेवजह मुस्कुराने लगी हूं
शायद खुद से ही नजरें चुराने लगी हूं
तन्हाइयों में सोचती हूं क्या खुद से कुछ अब छुपाने लगी हूं
लगता है कभी-कभी तुम बहुत आगे निकल गए हो
वहां जहां तक पगडंडी पहुंचती ही नहीं।