Archana Tiwary

Inspirational Others

4.0  

Archana Tiwary

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पछतावा

पछतावा

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आज फिर सोनू अपने पापा के संग ही PTA मीटिंग में आया तो मैं पूछ बैठी, क्यों सोनू अपनी माँ को क्यों नहीं लाया। सोनू झेंपते हुए बोला मैडम माँ की तबीयत ठीक नहीं । मैंने थोड़े गुस्से में कहा हर मीटिंग के समय माँ की तबीयत खराब हो जाती है। ये संयोग है या बहाना। उसके पिता मेरी तरफ देखते हुए बोले कोई बहाना नहीं है मैडम सचमुच मेरी पत्नी बीमार है। मेरे पास कई पेरेंट्स बैठे थे इसलिए मैं उनसे ज्यादा बात न कर पाई। मैं देखती थी अक्सर बच्चे जब अपनी माँ की बातें करते थे तो सोनू चुप रहता कुछ भी न कहता। एक दिन मैंने सोनू को अकेले में बुला कर पूछा, "क्या बात है सोनू तुम अपने भाई बहन माँ की बातें कभी नहीं करते कोई परेशानी है तो मुझे बताओ मैं तुम्हें उसका हल बताउंगी। "कोई भी समस्या ऐसी नहीं होती जिसका हल न निकल सके। उसने पहले तो कुछ भी बताने से मना किया पर मेरे बार बार बोलने पर उसने बताया कि मैडम मेरी माँ अच्छी नहीं है। मैंने समझाया ऐसा नहीं बोलते माँ तो सबकी अच्छी होती है। उसने कहा नहीं मैडम आप नहीं जानते मेरी माँ हमेशा बीमार रहती है, मेरे किसी भी काम में मेरी मदद नहीं करती। अच्छे कपड़े नहीं पहनती, मेरे साथ कहीं भी नहीं जाती। मैं अपनी माँ से नफरत करता हूँ, और हाँ मेरी माँ तो दिखती भी बदसूरत है। मेरे दोस्तों की माँ कितनी अच्छी है। मैं जब उनको देखता हूं तो मेरी नफरत और भी बढ़ जाती है। आपके बार बार बोलने पर भी मैं माँ को इसी वजह से स्कूल में साथ नहीं लाता। मैंने सोचा मुझे इस बारे में उनके पिता से बात करनी चाहिए। मैंने देखा था सोनू क्लास में अकेला रहता ज्यादा दोस्त न बनाता गुमसुम सा बैठा रहता। दूसरे दिन मैंने उसके पिता से इस बारे में बात की तो उनका कहना था कि सोनू न जाने क्यों अपनी माँ से नफरत करने लगा है। शायद उन्हें भी इसकी असली वजह मालूम न थी। मैंने पूछा की सोनू की माँ को क्या बीमारी है। उन्होंने कहा कि जब सोनू बहुत छोटा था तो एक बार वो बहुत बीमार हो गया था। डॉक्टर ने बताया कि सोनू का किडनी ख़राब हो गया है। इसे दूसरा किडनी न लगाया गया तो इसके बचने की उम्मीद बहुत कम है। हम सब बहुत घबरा गए थे। तभी इसकी माँ ने अपनी किडनी इसे देने की ज़िद की। हमलोगों ने बहुत समझाया पर वो अपनी जिद पर अड़ी रही। आज हमारे बीच सोनू है सिर्फ अपनी माँ की वजह से। उसके बाद ही सोनू की माँ बीमार रहने लगी। मैंने पूछा, "सोनू को आपने ये बात बताई है।" उन्होंने कहा नहीं नहीं उसकी माँ नहीं चाहती की ये बात सोनू को पता चले। मैंने उनके जातीय मामले में दखल देना उचित न समझा। फिर भी मेरी समझ में ये नहीं आया कि क्यों सोनू की माँ किडनी देने की बात को उसे क्यों बताना नहीं चाहती थी।


     धीरे धीरे अपनी व्यस्तता के कारण मैं इस बात को भूल गयी। सोनू दसवीं पास करके स्कूल से चला गया । समय का पहिया अदृश्य हो घूमता रहा । एक दिन उसका दोस्त मोहन मुझे रास्ते में मिल गया। औपचारिक बातें हुई, उसने ही बताया कि सोनू अब इंजीनियर बन गया है और आजकल अमेरिका में अपनी बेटी और पत्नी के साथ रहता है। मैंने उत्सुकता से पूछा उसकी माँ कैसी है? उसे वो अपने साथ नहीं ले गया। दोस्त ने बताया नहीं उसकी माँ यही इंडिया में है। हाँ उसके पापा अब नहीं रहे इसलिए वो अकेली ही रहती है । मुझे उसके माँ से नफरत करने की बात आज भी याद थी पर पहले की तरह अब भी उसकी माँ की किडनी देने की बात उसे न बताने की बात समझ से परे थी। कुछ दिनों बाद मोहन का अचानक फ़ोन आया और उसने बताया कि आजकल सोनू इंडिया आया हुआ है और हम दोनों आपसे मिलना चाहते हैं। मैंने तुरंत मिलने का न्योता दे,  यादों में गोतें लगाने लगी । सारी यादों में बार बार सोनू की नफरत वाली बात आ आ कर मन को कसैला कर दे रही थी। मैंने सोचा अब तो सोनू बहुत बड़ा और समझदार हो गया है। इस बार मैं उसे माँ का जीवन में क्या अहमियत है ज़रूर बताऊंगी क्यूंकि जब तक वो हमारे साथ होती है हम उनकी अहमियत समझ नहीं पाते हैं पर उनके जाते ही जीवन की रिक्तता को महसूस कर अधूरा महसूस करते हैं। दूसरे दिन सोनू और मोहन जब मुझसे मिलने आये तो मैं बहुत गौरवान्वित महसूस कर रही थी। अपने स्टूडेंट्स को अच्छी अच्छी पोस्ट पर नौकरी करते देख अपने शिक्षक होने की सार्थकता महसूस होती है।  सोनू ने बातों बातों में बताया कि उसकी माँ का देहांत हो गया है इसलिए वो यहाँ आया है। मुझसे रहा न गया मैंने पूछा तुम अपनी माँ को साथ में क्यों नहीं रखते थे। उसने कहा माँ मेरे साथ जाना नहीं चाहती थी। मुझे उसकी बात में सत्यता का अभाव लग रहा था । तभी मोहन ने बताया कि मैडम सोनू जब अपने घर आया तो माँ का निधन हो चूका था उनके पड़ोसी ने एक चिट्ठी दी जो सोनू को उसकी माँ ने लिखी थी। उसमें उन्होंने अपने किडनी सोनू को देने की बात लिखी थी और लिखा था कि मैं जीते जी ये बात बताना नहीं चाहती थी क्यूंकि मैं अपने बेटे के लिए अपने प्यार को अहसान में परिवर्तित होते देखना नहीं चाहती थी, पर मैं सोनू के प्यार पाने की चाहत लिए जा रही हूँ। मेरे जाने के बाद ही शायद सोनू मेरे प्यार की अहमियत जान पायेगा। जब मोहन ये बातें बता रहा था तो सोनू की आँखें भर आयी। कहना तो बहुत कुछ चाहता था पर उसकी आवाज़ भी आज उसका साथ न दे रही थी। उसके मौन में पछतावा के आंसू दिख रही थी।      


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