Dhan Pati Singh Kushwaha

Action Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

Action Inspirational

सुशांत सिंह राजपूत और लाली

सुशांत सिंह राजपूत और लाली

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"दिल ऐसा किसी ने मेरा तोड़ा,

बर्बादी की तरफ ऐसा मोड़ा।

एक भले मानुष को अमानुष बनाकर छोड़ा।"

रेडियो पर किशोर दा के इस गीत को सुनकर सुशील की मुद्रा गंभीर हो गई। वह अपनी ही तरह पेइंग गेस्ट के रूप में रह रहे अपने रूम पार्टनर यथार्थ से भाव विह्वल होते बोला,"भाई यथार्थ, बड़ा ही विचित्र है ये संसार। सीधे सच्चे इंसान को परिस्थितियां कब और कैसे पतन के गर्त में गिरा दें या किसी साजिश के तहत पतित सिद्ध कर दें। मामले इस तरह उलझ जाते हैं कि सच क्या है? यह समझ में ही नहीं आता।"


"सुशील, दुनिया में सब सुशील नहीं होते। तुम्हारे जैसे सरल, सीधे, सच्चे लोग दूसरों को भी ऐसा ही समझते हैं। अब देखो, प्रसिद्ध टी वी सीरियल" पवित्र रिश्ता" के पात्र सुशांत सिंह राजपूत की मौत का मामला इतना उलझ गया है कि यथार्थ को क्या अच्छे-अच्छों को यथार्थ का पता नहीं लग पा रहा है। पर तुम भावुक हो रहे हो प्यारे मोहन। ऐसी भावनाएं किसी को अवसाद की ओर धकेलने का काम करती हैं। अब यदि सुशांत सिंह ने आत्महत्या की है तो उसकी मौत का कारण उसका अवसादग्रस्त होना होगा। अगर यह आत्महत्या की बजाय हत्या का मामला है तो वह सुनियोजित षड्यंत्र का शिकार हो गया।"- यथार्थ ने सुशील की आंखों में दूर से आंखें डालकर समझाते हुए समझाया। आज कोविड-19 के समय में समझाने की टेलीपैथी ही समझदार लोगों द्वारा अपनाई जाती है।


सुशील ने जानकारी देते हुए यथार्थ को बताया-"अब सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार केस सी बी आई को सौंप दिया गया है। देखो करता खुलासा होता है और कब तक? असल में हमारे देश में राजनीतिक हस्तक्षेप इतना अधिक हो गया है यह विश्वास कर पाना बहुत ही मुश्किल हो जाता है कि सही परिणाम आ भी पाएगा या नहीं। कई बार एक राय बनती नजर आती है तो कुछ पल में ही उससे ठीक उलट स्थितियां लगने लगती हैं।"


"वैसे तो मामला सीबीआई के हवाले कर देने के बाद जांच निष्पक्ष हो जानी चाहिए क्योंकि सीबीआई हमारे देश की एक विश्वसनीय संस्था है। इसकी जांच पूरी तरह निष्पक्ष होती है ऐसा आम भारतीय का विश्वास है लेकिन आजादी के बाद बढ़ते राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण वास्तविकता आने की बजाए जांच को प्रभावित करने के लिए येन केन प्रकारेण सभी हथकंडों का इस्तेमाल किया गया है। ऐसे में सीबीआई की भूमिका भी संदिग्ध लगने लगती है। सभी अधिकारी एक से नहीं होते । कुछ राजनीतिक प्रभाव से प्रभावित हो जाते हैं तो अधिकतर ईमानदार लोग अपने कर्तव्य के रास्ते में आने वाली बाधाओं की परवाह नहीं करते और निष्पक्ष जांच करते हैं। वैसे आज हर भारतीय सुशांत सिंह राजपूत केस में वास्तविकता जानना चाहता है और वह यही चाहता है कि यह जांच निष्पक्ष हो जिससे कि सच्चाई का पता लग सके।" -यथार्थ ने इस मामले में अपनी राय व्यक्त करते हुए कहा।


सुशील ने उज्ज्वल भविष्य की कल्पना संजोए देश के विभिन्न क्षेत्रों से माया नगरी की ओर करते युवाओं की पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा-"आज देश के कई भागों से युवा भाग भाग कर अपनी जमीन सपनों को पूरा करने के लिए माया नगरी की ओर आकर्षित होते हैं। बहुत सारे ऐसे युवा भी होते हैं जो अपने परिवार के लोगों की पीड़ा को दरकिनार करते हुए केवल अपने भविष्य को संवारने के लिए घर से निकल पड़ते हैं। इनमें से ज्यादातर ऐसे ही लोग होते हैं जिनकी बदकिस्मती उनका पीछा नहीं छोड़ती यहां माया नगरी की खाक छानते हैं, दर-दर भटकते हैं ,बड़ी परेशानियां उठाते हैं ।ऐसे में वे अपने घर वापस भी नहीं जाना चाहते क्योंकि घर वापस पहुंचने पर भी गांव के लोगों के ताने सहने पड़ेंगे। माया नगरी में भी वे भेदभाव के शिकार होते हैं क्योंकि यहां माया नगरी में कुछ लोग कुछ क्षेत्र के लोगों के साथ दुर्भावनाएं रखते हैं उनकी सफलता के मार्ग में बाधा बनते हैं। कुछ राजनेता भी बाहरी क्षेत्र लोगों को बर्दाश्त नहीं करना चाहते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि कोई भी भारतीय भारत के किसी भी क्षेत्र में शिक्षा रोजगार या उज्ज्वल भविष्य के लिए जा सकता है उसका संवैधानिक अधिकार है। 5 अगस्त 2019 के पहले जब जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 लागू था तब शेष भारत के लोग जम्मू कश्मीर में जाकर बसने का संवैधानिक अधिकार नहीं रखते थे लेकिन अब अनुच्छेद 370 हटने के बाद शेष भारत के लोगों को यह अधिकार मिल चुका है। अन्य क्षेत्रों के लोग फिल्म इंडस्ट्री के लोगों की आंख में चुभते हैं और वह उन्हें वहां उनका करियर बनाने में तरह-तरह की बाधाएं उत्पन्न करते हैं। शेखर सुमन ने भी अपने समय में आई मुसीबतों के बारे में अपने वक्तव्य में इस पीड़ा का इजहार किया था। आज भी कितने सारे लोग माया नगरी की चमक से आकर्षित होकर खिंचे चले आने का क्रम जारी है और यहां उनके संजोए सपने धूलधूसरित हो जाते हैं। वह विविध प्रकार की शारीरिक और मानसिक यंत्रणाएं सहकर अपना समय गुजारते हैं। लंबे समय तक मुसीबतों का सामना करते हुए यदि कोई सफल भी होता है तो वह क्षेत्रीय भेदभाव रूपी दानव की यातना का शिकार बनता है।"


यथार्थ ने ऐसे मामले में माया नगरी में आने वाली युवतियों की व्यथा व्यक्त करते हुए कहा-"ग्रामीण क्षेत्रों से कुछ भोली भाली युवतियां कुछ धूर्त लोगों के बहकावे में आ जाती हैं। गांव की जिंदगी उन्हें रास नहीं आती क्योंकि उन्होंने टीवी के सीरियल और बड़े पर्दे पर अभिनेताओं और अभिनेत्रियों की रंग बिरंगी दुनिया के सपने संजोए होते हैं। मेरे अपने गांव से एक लड़की लाली को उसके अपने दूर के रिश्ते का भाई लोकेश उसे अपनी चिकनी चुपड़ी बातों में फंसाकर ले आया। उसने उस लड़की को फिल्मों में हीरोइन का रोल दिलवाने का झांसा दिया । भोली-भाली लाली अपने घर से अपनी मां के गहने लेकर चुपचाप माता - पिता की लोक लाज को दांव पर लगाकर उसके साथ मायानगरी आ गई। जब तक उसके पास पैसे और गहने थे तब तक उनको बेच बेच कर उसे इधर-उधर घुमाता रहा ।बाद में चुपचाप छोड़कर चला गया। फिल्मी कहानियों की तरह वहां भी विभिन्न प्रकार के शोषण का शिकार हुई । घर पर भी वापसी का कोई रास्ता सूझ नहीं रहा था। इस संसार में भले लोगों की भी कोई कमी नहीं है वह किसी तरह से किसी भले व्यक्ति के संपर्क में आई जिसने उसकी मदद की । उसकी मदद से उसे फिल्म इंडस्ट्री में पहले छोटे-मोटे काम मिले लेकिन वह लोग उनके साथ लगी रही और अंततः उसे सफलता मिली। अपनी प्रतिभा के बल पर उसने नाम और यश कमाया। माता - पिता का घर छोड़ने के बाद जो पीड़ा बर्दाश्त की थी उसकी टीस से आज भी उसका हृदय उद्वेलित हो जाता था। उसने अपनी सफलता के बाद अपने ही जैसी कुछ दूसरी महिलाओं के साथ मिलकर एक ऐसी गैर सरकारी संस्था की स्थापना की जो मुसीबत की मारी हुई ,धोखे से बहला-फुसलाकर घर से लाई हुई लड़कियों के पुनर्वास का काम करती थी। उसकी संस्था उन युवतियां को जो अपने घर वापस जाना चाहती थी उन्हें सुरक्षित उनके माता-पिता या परिजनों के पास वापस भेजने का काम करती थी क्योंकि बहुत सी विवाहित युवती अभी अपने तथाकथित प्रेमियों के झूठे प्रेम जाल में फंस कर अपना घर परिवार छोड़कर आ जाती थी और धोखे का शिकार होती थीं। लाली की के संस्था ऐसी महिलाओं के लिए वरदान से कम नहीं जो बहकावे में आकर अपने पथ से भटक गईं थीं लेकिन सौभाग्य से वह लाली की इस गैर सरकारी संस्था के संपर्क में आईं और उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ संस्था की मदद से वे फिर से अपने घर वापस जा सकीं।"


"भाई यथार्थ, आज समाज को लाली जैसे सूझबूझ वाले लोगों की आवश्यकता है जो स्वयं रास्ता भटकने के बाद दूसरे रास्ता भटके हुए लोगों को समुद्र में स्थापित प्रकाश स्तम्भ की भांति कार्य करते हैं जो रास्ता भटके हुए लोगों को सही रास्ता दिखा कर समाज की सेवा में अपना योगदान देते हैं। यह लोग समाज में मानवीयता स्थापित कर मानव को पवित्र रिश्ता बरकरार रखने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते रहते हैं। समाज को आज ऐसे ही पाषाण के सदृश दृढ़ संकल्प वाले लोगों की आवश्यकता है जो समाज को एक सकारात्मक दिशा देकर समाज को सुधारकर सही दिशा में अग्रसर करते हैं।"-सुशील ने यथार्थ की बात में अपना मंतव्य व्यक्त किया।


यथार्थ ने मुस्कुराते हुए सुनील से सहमति व्यक्त करते हुए अब रेडियो पर गायक मुकेश की आवाज़ में " किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार, किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार। किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार, जीना इसी का नाम है....." की ओर संकेत किया। दोनों उस सदाबहार गीत की मस्ती में खो गए।


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