Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win

Mukta Sahay

Abstract

4.5  

Mukta Sahay

Abstract

सुंदर पड़ाव जीवन का

सुंदर पड़ाव जीवन का

3 mins
24.6K


चार बच्चों के माता पिता राजेश और सोना अब उम्र के उस पड़ाव में थे जहां से उन्हें जीवन की अगली पारी शुरू करनी थी। अगले दो ही महीनो में राजेश नौकरी से सेवनिवृत होने वाले थे। चारों बच्चे, दो बेटे और दो बेटियाँ, सभी की शादी हो गयी थी और वे अपने परिवार के साथ रहते थे, अलग अलग शहरों में। राजेश और सोना पर अब कोई ज़िम्मेदारी नहीं बाक़ी थी। बस बचा था तो एक दूसरे के साथ खुल कर जीना, जो वह ज़िम्मेदारी को निभाने के दौरान भूल गए थे ।

राजेश की सेवनिवृति के दिन चारों बच्चे अपने-अपने परिवार के साथ आए थे। खूब ख़ुशी का माहौल था। ज़िंदगी की अगली पारी शुरू हो रही थी।

राजेश ने अपने बच्चों से पूछा की अगले एक साल में उन सभी का क्या प्लान है, घर आने का, छुट्टियों में कहाँ जाना है। बच्चे थोडा अचकाचाय की पिताजी ये क्या पूछ रहे हैं। तब सोना ने बताया की राजेश और सोना, अगले एक साल, गाँव के अपने पुश्तैनी घर पर बिताना चाहते हैं। उसकी कुछ मरम्मत भी करवानी है और खेतों-बगीचे का हाल भी देखना है। इसलिए अगर तुमसब आने की सोंच रहे हो तो फिर गाँव में ही आना। 

एक-दो दिनों में बच्चे वापस चले गए। राजेश और सोना ने अपने समान बांधे, यहाँ घर की चीजों को भी सहूलियत से बंद किया और लम्बी छुट्टी के लिए गाँव को निकल गए। रास्ते में सोना ऊब दिनों को याद करने लगी जब वह ब्याह कर आई थी, उस गाँव के घर पर। उस समय राकेश की नौकरी वहीं गाँव में थी। दोनो अपने शादीशुदा ज़िंदगी के शुरुआती सुनहरी यादों में खो गए। कैसे एक-एक रिश्ते को हिफ़ाज़त से सम्भाल था दोनो ने मिल कर। जैसे-जैसे गाँव पास आता जा रहा था वैसे-वैसे वहाँ से जुड़ी खट्टी-मीठी, कड़वी-तीखी यादें ताज़ा होती जा रहीं थी। 

सोना याद कर रही थी की राजेश कभी भी शहर नहीं जाना चाहते थे। वह यहीं गाँव में रह कर अपने माता-पिता और खेत-बगीचों की देखभाल करना चाहते थे। परंतु उन्हें पिताजी की बीमारी को देखते हुए उन्हें शहर आना पड़ा था क्योंकि पिताजी का सही इलाज, लगातार शहर में रह कर ही कराया जा सकता था। राजेश की मेहनत और निष्ठा के साथ उचित इलाज और देखरेख से पिताजी अगले दस साल हमारे साथ रहे। राजेश को गाँव की मिट्टी से बहुत प्यार है। वह हमेशा से ही वापस गाँव आना चाहते थे।

जैसे ही गाड़ी गाँव के घर पर रुकी, राजेश दौड़ते हुए आँगन में बने गौशले की तरफ़ गए और वहाँ बंधी गाय-बछड़े को खूब दुलारा। तभी घर और गौशले की देखभाल करने वाले गगन काका आ गए। नहा-धो कर राजेश और सोना ने थोड़ा आराम किया जबतक शाम हो गई थी सो सुबह खेतों और बगीचे में जाना तय हुआ।

राजेश और सोना सुबह सुबह खेतों पर पहुँच गए। सूरज की हल्की लालिमा और लहराते हरे खेत उसपर हल्की नम हवा और मिट्टी की सोंधि सुगंध, अंतरमन तक खुश हो गया।

राजेश के लिए ये सिर्फ़ नयनाभिराम, मनोरम दृश्य देखने की ख़ुशी नहीं थी बल्कि बचपन और यौवन की इन खेतों, बगीचों से जुड़ी याद के पुलिंदे को फिर से जीने का उल्लास था, उसके अपने गाँव, अपनी मिट्टी से प्रेम की प्यारी यादों का एक भरापूरा मज़बूत वृक्ष था। ये सारी यादों और इनसे जुड़े प्रेम एवं आत्मिक ख़ुशी ने राजेश को यहाँ फिर से बुला लिया है। राजेश को ऐसे खुश देख कर सोना भी आनंदित हो रही है।

ज़िम्मेदारियों की वजह से जिन ख़ुशियों से दूरी सी बन गई थी आज उन्ही ज़िम्मेदारियों के पूरे होने पर उन ख़ुशियों से नज़दीकियाँ बन रही थी। जीवन के अगले पड़ाव की सुबह इतनी सुंदर और प्रेम भरी होगी इसकी कल्पना भी सोना ने नहीं की थी और राजेश को भी आभास नहीं हुआ होगा।  


Rate this content
Log in

More hindi story from Mukta Sahay

Similar hindi story from Abstract