सुखद अहसास
सुखद अहसास


मां बनना नारी जीवन का सबसे सुखद अनुभव होता है।निशा का भी सपना था कि वह एक सुंदर और स्वस्थ बच्चे की मां बने लेकिन एक स्त्री से मां बनने तक के सफर में उसको बहुत सारी मुसीबतों परेशानियों शारीरिक अस्वस्थता का सामना करना पड़ा।
और जब उसके अस्तित्व में मां बनने की सुखद अनुभूति होती है तो वह सारे दुख कष्ट भूल जाती है एवं हर पल अपने अनदेखे अनजाने बच्चे की मिलन की कल्पना में खो जाती है यह अनुभव एक नारी के जीवन में कितनी सुखद स्मृतियां लेकर आता है।धीरे-धीरे समय बीतता जाता है और नौ महीने पूरे होने के पश्चात अपना ही प्रतिरूप जब अपने हाथों में आया तो वह मिलन की घड़ी निशा की जिंदगी की सबसे अनमोल घड़ी थी।
वह अपने बच्चे के लिए दुनिया की हर मुसीबत हर समस्या से लड़ने का जज्बा रखती थी।अब शुरू होता है बच्चे के साथ निशा की नींद का सफर और इस सफर में नि
शा की नींद और रात जैसे अपने लाडले दुलारे को निहारने में ही निकल जाती ।
उसे हर पल यह ख्याल रहता है की लाडला सो रहा है या नहीं कहीं भूखा तो नहीं है कहीं बिस्तर गीला तो नहीं है वगैरा-वगैरा और सारी रात भर इसी तरह निकाल देती है।
और जब धीरे-धीरे बच्चा बड़ा होने लगता है तो उसकी स्कूल की जिम्मेदारियां सुबह से टिफिन के लिए जल्दी उठना बच्चे को तैयार करना उसका सब सामान बैग में पैक करना इत्यादि।
इसी सुखद अहसास को शब्दों के रूप में बयां करती हुई
आने की दस्तक से तुम्हारी
मन खुशियों से भर गया
कौन हो तुम कैसे लगते हो
अनदेखी अनजानी सी
हर पल मिलने की चाहत में
मन खुशियों से भर गया
आ गया अस्तित्व का
प्रतिरूप मेरे अंक में
प्यारी नन्हीं परी से मेरा
आज घर आंगन खिला।