Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Sagar Mandal

Abstract

4.9  

Sagar Mandal

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स्त्री

स्त्री

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आज सिया को निंद नहीं आ रही है करबट बदलते हुए वो सिर्फ जय के बारे मैं सोच रही है,रातो की निंद तो उसकी कबसे उडी हुई है। जय को सोचते सोचते वो अपने आप को भूल चुकी है,ऐसा एहसास उसे पहले न थी। सच्ची प्यार मैं ऐसा ही होता है। तभी सिया को उलटी आती है। बिस्तर से उतर कर वो वाशरुम की और दोरती है। सिया की तबियत बोहत दिन से ख़राब है। आँखों मैं पानी देते हुए सिया सोचती है “मैंने तो कुछ बाहर का नहीं खाया आज तो उलटी क्यू,ओह नो शिलोंग का टूर ऐसा नहीं हो सकता मैं मा-पापा को क्या बोलूंगी,जय को कैसे बोलूंगी क्या वो मेरी बातों का बिश्वास करेगा क्या वो मुझे अपनायेगा।” वो जय को फ़ोन करनेके लिए हात मैं फ़ोन लेती है तभी “नहीं अभी फ़ोन नहीं करती हु सुबहे फ़ोन करुँगी वैसे भी थोड़ी देर पहले बात हुयी जय भी थका हुआ है बोल रहा था’’-सिया सोचती है। सुबहे सूरज की रोशनी सिया को चूमती है और सिया की निंद टूटती है पाता नहीं रातको कैसे उसे निंद लग गयी। बिस्तरसे उठ बालो को सबारती वो अपनी रुम से बाहर जाती है।

“मा आज इंदु नहीं आई तुम क्यू काम कर रही हो” अपनी मा को सिया चाय बनाते देख बोलती हैं।

“इंदु गाव गयी हैं अपने घर उसके बाबा बीमार हैं” सिया की मा बोलती हैं।

सिया-आच्छा मुझे पता नहीं था।

“तुझे पता कैसे होगा घर मैं ध्यान कहा रहता है तेरा आजकल”सिया की मा गुस्से से बोलते है।

सिया कुछ बिना बोले चाय की कप उठाये अपनी रुम की और चलती है। अगर खुद की गलती हो तो कुछ ना बोलना ही सही है,वैसे भी सच ही तो बोल रही हैं मा इनदिनों कहा चैन था उसे वो तो जय के सोच मैं मगन हैं।

चाय की कप लेकर वो जय को फ़ोन लगाती हैं।

सिया-हेल्लो जय

जय-हा बोलो सिया

सिया-मुझे एक बात कहनी थी तुमसे

जय-मुझे लेट हो रहा है,जॉब के लिए निकलना हैं,शाम को बात करते है ओके बेबी बाय

सिया-सुनो जय मुझे बोहत जरुरी बात करनी हैं तुमसे।

जय-अच्छा जल्दी बोलो क्या बोलना हैं।

सिया-तुम्हे वो शिलोंग टूर की रात याद हैं।

जय-ये बात करने के लिए तुमने मुझे अभी फ़ोन किया

सिया-नहीं वो बात नहीं है,कल रात मुझे उलटिया हुई मैंने प्रेग्नन्सी टेस्ट की और रिजल्ट पॉजिटिव आया।

जय-ओह नो ! ऐसा नहीं हो सकता,हमने तो अभी तक शादी भी नहीं किया और मेरा कैरिअर भी हैं घर मैं क्या बोलूँगा अभी एक ही रास्ता हैं।

सिया-कोनसा रास्ता

जय-अबॉर्शन और कोई रास्ता नहीं हैं,मैं भी ऑफिस के काम के लिए गुवाहाटी से बाहर जा रहा हु कुछ दिन के लिए अब जो करना हैं तुम्हे अकेले ही करना होगा ओके बाय मुझे लेट हो रहा है शाम को बात करेंगे।

सिया-पर जय सुनो !

इतने मैं जय फ़ोन काट देता है।

कितनी आसानी से कह दिया जय ने मैंने बोहत गलत किया मुझे संभलना चाहिये था मर्द तो जानबर की तरह होता हैं मुझे तो रोकना चाहिये था,अब मैं क्या करू हर बार स्त्री को ही क्यू सहना पड़ता हैं अकेले गलती तो दोनों की थी-सिया के मन मैं सबाल उठता हैं। अपनों दुखो को किसीके सात बाट भी नहीं सकती थी वो।

5 महने गुज़र गए अभी तक जय गुवाहाटी नहीं लौटा,ऑफिस के काम से वो इतना ब्यस्त हो गया सिया से अभी अच्छे से बात भी नहीं करता। जैसे जैसे अबॉर्शन का दिन सामने आ रहा था सिया अंदर ही अंदर घुट रही थी। समाज का डर लोग किया कहेंगे सच मैं ये सब बोहत बेद्नादायक हैं पर सिया को मुक्ति दे कौन इनसे।

निंद भी नहीं आती रात के 2 बज रहे हैं हातों मैं रिमोट लिए सिया टीवी का चैनल घुमाए जा रही हैं। डी.डी.ओन मैं रामंन्द सागर की रामायण देते देख वो देखने लगती हैं,सीता माता रावन की कैद मैं हर पल प्रभु श्री राम को सोचते जा रही हैं। सामने फल रखे हैं पर वो तो तभी से भूकी हैं जब से रावन ने उनको साधू की भेष धर अपहरण करके लंका ले आया है। रावन भी बिच बिच मैं आकर उन्हें तंग करने मैं कसर नहीं छोड़ता। पर मा सीता सिर्फ श्री राम की सोच मैं मगन हैं। ओह ये कितना कितना कस्टदायक हैं। किया सिया भी ऐसे कस्ट नहीं झेल रही हैं जय का जॉब,मा-बाप का डर,समाज का डर ये सिया को अंदर ही अंदर बांध चूका हैं। क्रेता से कलिर युग तक हमेशा स्त्री ही क्यू अग्नि परीक्षा दे,ये रावन रूपी समाज आज भी क्यू एक स्त्री को कैद करता हैं।

आज सिया का अबॉर्शन हैं,नर्सिंगहोम मैं भी बेठ कर वो सिर्फ जय को याद कर रही हैं। सिया की दोस्त रागिनी भी उसके साथ हैं। तभी डॉक्टर आते हैं।

डॉक्टर-सिया राय आप ही हैं।

रागिनी-हा यही हैं सिया।

डॉक्टर-इनके पति कहा हैं।

रागिनी-वो कुछ जरुरी काम के लिए गुवाहाटी से बाहर हैं इसी लिए नहीं आ पाए।

अभी ये और इसका पति बच्चा नहीं चाहते,इसीलिए हम आपके पास आये हैं आप जल्दी से इस समस्या से निजात दिलाये।

कितनी आसनी से बोल दिया रागिनी ने,पर क्या ये इतना आसान हैं ?एक मा अपने खुद के बच्चे को कैसे मार सकती हैं। एक तरफ समाज मैं जीने का डर एक तरफ खुद का बच्चा।

बोहत मनाने के बाद डॉक्टर मान जाता हैं,वो सिया को ओ.टी मैं ले जाते हैं। नर्स सिया को बेड पे सुलाती हैं। अब मनो सिया को बड़ी बड़ी मशीनोने जकर लिया हो। सिया की आँखों से पानी बहने लगती हैं वो जोर से बोलती हैं-जय तुम कहा हो मुझे बोहत दर्द हो रहा हैं अभी,तुम मेरे पास आओ जय मैं सरे दर्द सह लुंगी......

डॉक्टर-नर्स मरीज़ को इंजेक्शन लगाओ

नर्स बेहोसी की इंजेक्शन सिया को लगा देती हैं। इंजेक्शन के दर्द के सात सिया अज्ञान हालत मैं हैं। बहार के दर्द से तो उसे मुक्ति मिली पर अन्दर के दर्द को कौन समझे। समाज के डर और प्रतारणा से स्त्री को हमेशा गुजरना परता हैं। हमेशा स्त्री ही क्यू अग्नि परीक्षा दे......



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