Sagar Mandal

Inspirational

4.9  

Sagar Mandal

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कनकलता

कनकलता

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आज जब बच्चे सब कुछ समझने के उम्र के होते वो सोच लेते है की बड़े होकर उन्हें क्या बनना है, कोई इंजीनियर बनना चाहता है कोई डॉक्टर बनना चाहता है कोई पुलिस बनना चाहता है। पर आज से सौ साल पहले ऐसा नहीं था। बच्चे गुलामी के रस्सी से बंधे थे, अंग्रेजी हुक़ूमत ने उनके बचपन को जकड़ रखा था। आज़ादी की चाह बचपन में ही उनके मन मैं घर कर जाती थी। भारत एसी ही आज़ाद नहीं हुआ इसमें बहुत युवा स्वतंत्रता सेनानियो की खून बहे है, जिनमे से कई प्रसिद्ध हुए और कई को गुमनामी मिली। आज हम ऐसे ही इतिहास मैं दबी हुयी उस वीरांगना की बात करेंगे जो भारत छोड़ो आन्दोलन मैं पूरब की आवाज़ बनी थी-शहीद कनकलता बरुआ।

कनकलता बरुआ का जन्म असम के बांरगबाड़ी गाँव मैं 22 दिसंबर, 1924 मैं हुआ था,जो अब शोणितपुर जिले मैं स्थित है। उनके पिता का नाम था कृष्णकांत बरुआ और माता का नाम कर्णेश्वरी देवी था। बचपन मैं ही उनकी माता का देहांत हो गया जिसके बाद उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली पर उनकी सोतेली माँ भी कुछ दिन बाद चल बसी,उनके पिता का भी देहांत हो गया । वो अनाथ हो गयी थी,वो अपने दादी के सात रहने लगी थी और पढाई भी करती थी । जब वो छोटी थी तब से ही उनके मन मैं आज़ादी की चिंगारी थी बस उसमें आग लगना बाकि था । और उस चिंगारी को आग मिली वर्ष 1931 मैं,जब गोमरी गांव मैं रेयत सभा आयोजित किया गया । उस समय कनकलता केबल 7 वर्ष की थी फिर भी अपने मामा देवेन्द्र नाथ और यदुराम बोस के साथ उसने भी भाग लिया।

असहोयोग आन्दोलन भारत के बाकि राज्य की तरह असम मैं भी भी जोर शोर से बोल रहा था,युवा नेता ज्यौति प्रशाद अगरवाला की गीत घर घर मैं गूंज रही थी । वर्ष 1942,8 औगस्त ये वो दिन था जब अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी के सदयस्य के अनुपस्थिति मैं और बहुत बड़े भीर के सामने महत्मा गाँधी जी ने “करेंगे या मरेंगे” नारे के साथ भारत छोड़ो आन्दोलन का आरम्भ किया । 9 अगस्त को गाँधी जी समेत कांग्रेस के बहुत नेतोओ को जेल मैं डाल दिया गया । असम मैं भी बड़े नेताओं को जेल मैं डाल दिया गया जिनमे गोपीनाथ बोरदोले,सिद्धनाथ शर्मा,मोलाना तेबुल्ला,बिष्णुरम मेधी शामिल थे । सभी बड़े नेता जेल मैं रहने के समय युवा नेताओं ने आंदोलन को चलाये रखा जिनमे मोहिकांत दास,गहन चंद्र गोस्वामी,महेश्वर बरा थे । आखिर मैं तेजपुर के अन्दोलन को ज्योति प्रशाद अगरवाला ने संभाला। उस समय असम मैं पुलिस चोकिया अंग्रेजों का केंद्र थी,पुलिस चौकी मैं ब्रिटिश झंडा लगाया जाता था । सभी बड़े नेताओ ने बोला इन पुलिस चौकिओं में भारत का तिरंगा लगाना चाहिये । वर्ष 1942,20 सितम्बर ये दिन ठीक क्या गया गोहपुर पुलिस चौकी मैं भारत का तिरंगा लहराने के लिए। सभी बड़े नेता और स्वतंत्रता सेनानियों के साथ कनकलता और बहुत युवा नेता भी इस जुलूस में शामिल हुए । बड़े स्वतंत्रता सेनानियो के मन मैं संदेह हुआ की कनकलता और बाकि युवा नेता डर जायेंगे । कनकलता को इस बात की भनक हुई । कनकलता ने गुस्से से उनको बोला “हम युवतियों को अबला समझने की भूल मत कीजिए। आत्मा अमर है, नाशवान है तो मात्र शरीर। हम किसी से क्यूँ डरे? करेंगे या मरेंगे,स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है। ” ये बोलकर आकाश गूंजती हुयी कनकलता गहपुर पुलिस चौकी की और बढ़ने लगी । अन्दोलोंन कारियो को चौकी की और आते देख पी.ऍम.सोम ने अन्दोलोंन कारियो से कहा “वही रुक जाओ अगर एक कदम भी आगे बढ़ाया तो गोली से उड़ा दिए जाओगे” युवा स्वतंरता सेनानियो को कनकलता निर्देशन कर रही थी वो सब से आगे थी । कनकलता ने पी.ऍम.सोम से कहा “हम आपके सात लड़ने नहीं आये है,हमें सिर्फ यहाँ भारत का तिरंगा लहराना है उस के बाद हम यहाँ से चले जायेंगे” ये बोलकर कनकलता ने अपना कदम बढ़ाया तभी बोगी कछारी नमक एक हवालदार ने कनकलता के सीने मैं गोली चला दी, कनकलता के सीने से खून निकलने लगा पर वो रुकी नहीं नहीं हाथ से तिरंगे को झुकने न दिया पर देखते ही देखते और गोलियां कनकलता के सीने मैं चलाई गयी । उनके पीछे मुकन्द ककोती थे जब उन्होंने देखा कनकलता गिरने वाली है उन्होंने कनकलता के हाथ से तिरंगा ले लिया और वो भी आगे बढे उनके ऊपर भी गोलिया चलाया गया । कनकलता और मुकुन्द ककोती को देख सभी युवा नेता आगे बढे गोलिया चलती रही खून से गहपुर चौकी सन चुकी थी पर तिरंगा झुकने नहीं दिया किसी ने,एक हाथ से दूसरी हाथ मैं तिरंगा जाता रहा और आखिर अंत मैं रामपति राजखोवा ने चौकी में भारत का तिरंगा लहरा दिया । शहीद कनकलता बरुआ की शब् को स्वतंत्रता सेनानी अपनी कांधे मैं लेकर उनके घर पहुचे जहा उनका अंतिमशंस्कर किया गया । आज भी असम की गोहपुर मैं शहीद कनकलता बरुआ का समाधी शेत्र है।

कनकलता बरुआ के जीवनी पर एक सिनेमा भी बन चुकी है जिसका नाम है “पूरब की आवाज” पर इसको जनता का सयोग न मिल पाया । आज कनकलता बरुआ गुमनाम हो चुकी है पर इतिहास में आज भी उनको वीरांगना का दर्जा दिया जाता है। असम के बाहर बहुत कम लोग है जो कनकलता के बड़े मैं जानते है । पर कनकलता सच में युवा समाज के लिए आदर्श थी वो अपनी बातों मैं कायम थी,वो आज़ादी का अर्थ जानती थी,उनके लिए अपने जान से ज्यादा प्यारा अपना देश था, अपने खून से ज्यादा प्यारा भारत का तिरंगा था । तब युवा शहीद हो गए हमें आज़ादी दिलाने के लिए,वह आज़ादी देख नहीं पाए पर आज के युवा आज़ादी देख पा रहे है । आज़ादी का अर्थ ये नहीं की हम अपने मन मुताबिक कुछ भी करे आज़ादी का अर्थ ये ही की हम किसी के गुलाम नहीं,हम किसी देश के गुलाम नहीं और नहीं हमें किसी विदेशी सामग्रियो का गुलाम बनना चाहिये।


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