कड़वे बोल
कड़वे बोल


अभी 2 महने हुए थे सागर से ब्याह कर स्मृता इस घर में आई थी, शुरू के कुछ दिन तो घूमना और हनीमून में निकल गया पर कुछ दिन से स्मृता घर में ही हैं। अब स्मृता को घुटन हो रही हैं, सागर की मां गायेत्री को बात बात पर उलाहने देने की आदत जो थी। हलांकि सागर ने शादी से पहले ही सब बोल दिया था,"मां जुबान की कड़वी है पर दिल की बहुत अच्छी हैं, तुम उनकी किसी भी बात को दिल से मत लगाना।" अब स्मृता ने कोशिश भी किया की उनकी बातों को दिल से ना लगाये आखिरकार वो मां हैं, ज़िन्दगी ने उन्हें ऐसा बना दिया हैं। सागर के पापा के मौत के बाद उन्होंने सिलाई का काम कर सागर को आगे पढ़ाया समाज में बड़ा बनाया। हो जाता हैं चिड़ चिड़ा इंसान।
इतने दिन तो सब कुछ ठीक था पर आज गायेत्री देवी ने कुछ ऐसा बोला था जो स्मृता के दिल में लग गयी। स्मृता किचन में जाकर रोने लगी। इतने में जानकी कीचेन में आ गयी। जानकी, गायेत्री देवी के घर 4 साल से काम कर रही हैं। वो घर में झाड़ू पोछा लगाती हैं बर्तन धोती हैं। स्मृति को रोता देख जानकी ने कांधे मैं हाथ रख पूछा “क्या हुआ भाभी आप रो क्यों रो रही हो, मासी ने कुछ कहा क्या ’’
बहुत पूछने के बाद स्मृति ने मुंह खोला और रोते हुए बोली “जानकी तुम इतनी कड़वी बात सह कैसे लेती हो”
जानकी हँसते हुए बोली-“आज से 2 साल पहले जब मेरी मां के आपरेशन के लिए पैसे चाहिये थे तब गायेत्री मासी ने ही मुझे पैसे दिए, अपनो जैसा सहारा दिया जो इस मोहोल्ले के मीठे बोलने बाले लोग न दे पाए, वक़्त और अकेलापन इंसान को जुबान से कड़वा बना सकता हैं पर दिल से नहीं कुछ बोलेंगी वो तो समय में आकर सहारा वो ही देंगी।