ससुराल और मायका दोनों दुश्मन
ससुराल और मायका दोनों दुश्मन


ऋतू की शादी को दो दिन हुए थे। सारे मेहमान धीरे धीरे जाना शुरू हो गए थे। जब तक मेहमान थे तब तक तो सब ठीक ठाक चलता रहा। पर जब सारे मेहमान चले गए तब एक दिन ऋतू अपने पति के साथ छत पर बैठी थी और तभी उसकी सास आ गयी और कहने लगी "बहु यह तुम्हारा ससुराल है यहाँ पति के साथ सबके सामने हमारे यहाँ कोई नहीं बैठती। " ऋतू को बड़ा अजीब लगा कि अपने पति के साथ ही तो बैठी है। उसे लगा उसने कोई जुर्म कर दिया ।
अब तो रोज़ सास का टोकना शुरू हो गया। अपनी तरफ से ऋतू कोई शिकायत का मौका नहीं देती थी फिर भी उसकी सास कभी ऋतू को पल्ला ठीक करने के लिए कहती कभी ऋतू चार औरतों के बीच में आके बैठ जाती तो उसकी सास उसे घूरने लगती। और तब तक घूरती जब तक की ऋतू वहां से उठ के किचन में न चली जाती। हद तो तब हो गयी जब सास ऋतू के आने जाने पे भी टोकने लगी। इधर मत खड़े हो उधर मत देखो, कोई देख लेगा तो बोलेगा।
मुकुल (ऋतू का पति) के एक दोस्त की शादी थी और मुकुल को जाना था। ऋतू ने सोचा शायद उसे भी जाना होगा तो उसने भी एक साड़ी पसंद कर ली पहन के जाने के लिए। पर सास ने कहा बहु हमारे यहाँ औरतें शादियों में नहीं जातीं। ऋतू सोचने लगी "कैसा ससुराल है। यहाँ इतनी पाबन्दी क्यों है। सब कुछ अजीब है। यहाँ अपने से बड़ा कोई भी दिख जाए तो सास सर के पलले को और आगे मुँह तक सरका देती है ।
ऋतू को कहीं जाने नहीं दिया जाता था। उसकी सास बस हर समय काम करने के लिए किचन में ही रखती थी। ऐसा हमारे यहाँ तो नहीं होता सब काम के साथ साथ हंसी मज़ाक भी करते हैं। सब बड़ों के साथ भी बैठते हैं और अपने पतियों के साथ भी रहते हैं। पर यहाँ मैं तो क्या कोई छोटा भी बड़ों के सामने बैठता नहीं हैं । "
मुकुल भी अपनी माँ के सामने ऋतू के पास कम बैठता था। उससे बात भी काम करता। ऋतू जितना पूछती बस उतना ही जवाब मिलता। दिन बीतते गए। मुकूल को दूसरे शहर में जाना पड़ता था काम के सिलसिले में। कई बार तो मुकुल को आये हुए कई दिन हो जाते थे। ससुर थे नहीं और सास ने ही पांच बच्चों को पाला था। बाबूजी की जगह सास को काम मिल गया था क्योंकि बाबूजी सारे बच्चे जब छोटे थे तब ही चल बसे थे ।
दोनों ननदों की शादी हो चुकी थी। बड़े भाई भाभी दूसरे शहर में नौकरी करते और रहते थे। छोटा देवर भी बाहर नौकरी करता था। मुकुल बिचले बेटे थे जो साथ रहते थे। ऋतू काम करके जब भी सुस्ताने बैठती तो उसकी सास फिर से कोई काम कह देती। आने जाने वालों का भी मेला लगा रहता था। ऋतू को सब बहुत अजीब लगता था।
अब मुकुल बिलकुल भी नहीं आते थे और फ़ोन भी नहीं उठाते थे। घरवालों ने पता किया तो पता चला कोई और लड़की है जिसके साथ मुकुल ने पहले ही शादी कर रखी थी और एक बच्ची भी थी उनकी। पर समाज के डर से कुछ नहीं बोला। पर सास को जब पता लगा तो ऋतू को ही दोषी मानने लगी। कहने लगी "क्या करता मुकुल बेचारा, तू ज़्यादा कुछ तो लायी नहीं। सोचा था शादी करके आएगी तो ज़िन्दगी सवंर जाएगी पर मुकुल को ही बाहर काम के लिए जाना पड़ता है हो गया होगा । "
ऋतू को जब पता लगा तो उसे झटका लगा वह अंदर से टूट गयी। ऋतू की ज़िन्दगी बर्बाद हो गयी थी। उसकी माँ सदमे से पागल हो गयी और पिता भी सेहत से लाचार हो गए थे इसलिए ऋतू को ससुराल में ही रहने के लिए बोला। ऋतू सोच रही थी की आज क्या मेरा मायके जाने पे भी रोक लग गयी, वह मेरा घर नहीं था क्या। क्यूंकि ऋतू बारहवीं कक्षा तक ही पढ़ी थी इसलिए नौकरी भी नहीं कर सकती थी।
ऋतू के पास कोई चारा न था। वह ससुराल की इसी काल कोठरी में कैद होकर रह गयी। उसे कोई सहारा देने वाला नहीं था। आज शादी के पांच साल हो गए पर ऋतू की ज़िन्दगी खाली पन्नों की एक बंद किताब की तरह रह गयी थी। लोगों की डर की वजह से नहीं जाती थी मायके। उसे यह भी पता चला सास ने पहले जेठानी को भी तंग किया था पर नौकरी लगने की वजह से वह चली गयी थी कभी कबार ही आती थी।
अगर आज ऋतू जैसी लड़कियाँ पढ़ी लिखी होती और उनके पास कोई नौकरी करने का तजुर्बा होता तो ऋतू की ज़िन्दगी ऐसी नहीं होती। ऋतू अपने पैरों पे खड़ी होती। ऋतू जैसी कितनी ही लड़कियाँ समाज में घिनौनी कुरीतियों का शिकार हो जाती हैं और दहेज़ न मिलने पर ससुराल और मायका दोनों दुश्मन बन जाते हैं। बाद में कोई मायका अपनी ही बेटी को नहीं रखता जब तक की बेटी अपने पैरों पर न खड़ी हो। पर किसी तजुर्बे के अभाव में बेटी के लिए मुश्किल हो जाता है। कोई उसे अपनाता नहीं है ।
इसीलिए साक्षरता का भी तभी महत्व है जब बेटियों को पढ़ाई-लिखाई के साथ उनके खुद के पैरों पे खड़ा होना भी सिखाएं। आशा करती हूँ आप मेरी बात से सहमत होंगे।