Deepika Kumari

Abstract

4.5  

Deepika Kumari

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सपना और हकीकत

सपना और हकीकत

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"करण..., करण.... सुनता नहीं,! बहरा हो गया क्या ? तुझे जरा भी शर्म नहीं सूरज सिर पर चढ़ आया और तू अभी तक सो रहा है।", करण की अम्मा उसे उठाने का प्रयास करती हुई कहती है।

करण आंखें मलते हुए, " क्या अम्मा, इतना सुंदर सपना देख रहा था । थोड़ी देर और नहीं रुक सकती थी क्या मेरा सपना पूरा हो जाता तो तेरा क्या बिगड़ जाता ?"

अम्मा, "अच्छा तो मेरा लल्ला सपने देख रहा था। जरा मैं भी तो सुनूं क्या सपने देख रहा था तू ?

करण खुशी से दौड़ता हुआ अम्मा के पास आता है और बताता है, " अम्मा बहुत ही सुंदर सपना था। मैंने देखा कि कि जहां पर हमारा खेत है वहां पर एक कोठी है। तू कोठी के आंगन में महंगे, चमकीले, सुंदर कपड़े पहने हुए जेवरों से लदी हुई एक बहुत ही महंगे और नरम सोफे पर बैठी है।

हमारी कोठी में नौकर चाकर काम कर रहे हैं। और अम्मा तू आराम से बैठी धूप सेक रही है। फिर मैं देखता हूं कि गांव का मुखिया कुछ लोगों के साथ हमारी कोठी पर आता है और आपके आगे हाथ जोड़कर खड़ा है। पूरा गांव आपको सलाम ठोक रहा है। और ये टूटी फूटी लोहे की साइकिल की जगह पर एक लंबी चौड़ी कार खड़ी है। जिसे चलाने के लिए मैं बेताब हो रहा हूं और आपसे इजाजत लेकर निकल पड़ा हूं काम पर। मैं एक इंजीनियर हूं और अपनी महंगी कार को सड़क पर ऐसे दौड़ाते हुए ले जा रहा हूं जैसे आसमान में पायलट विमान उड़ाता है।"

अम्मा हंसते हुए,"बस, बस, अब रुक भी जा अब मुझसे और नहीं हंसा जाता। मेरा तो हंस-हंसकर पेट ही दर्द करने लग गया है। रहने दे भाया! आदमी को उतना ही ऊपर उड़ना चाहिए कि अगर गिरना पड़े तो कहीं टूट कर बिखर ना जाए। इतनी ऊंची उड़ान ना भर । अपने सपनों की उड़ान से बाहर निकल और ले पकड़ अपनी हकीकत की टूटी फूटी साइकिल और डूंगर जा और चूल्हे के लिए लकड़ी ले आ।"

करण,"क्या अम्मा! आप हर वक्त मेरे सपनों का मजाक उड़ाते रहते हो। देख लेना मैं एक दिन जरूर मेरे इस सपने को पूरा कर दिखाऊंगा।"

अम्मा, "अच्छा....... क्या जादू की छड़ी है तेरे पास जो सपना सच हो जाएगा।"

करण साइकिल उठाकर खेत की ओर ले जाते हुए अम्मा से कहता जाता है, "जादू की छड़ी तो नहीं है अम्मा पर हां मेहनत और लगन की छड़ी जरूर है और अपनी इस छड़ी से मैं अपने इस सपने को जरूर पूरा करूंगा और मेरे सपनों की उड़ान एक दिन हकीकत के धरातल पर जरूर उतर जाएगी।"


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