Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Tragedy

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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Tragedy

सफीना -पार्ट1

सफीना -पार्ट1

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फरवरी का महीना था और वातावरण में ठंढक अभी भी बरकरार थी। कई दिनों बाद आज धूप खिली थी ।उस धूप का आनंद लेने के लिए अनिता अपने कंकड़बाग के घर के हाते में बैठकर अपने पोते के लिए स्वेटर बुन रही थी। वैसे तो उसने बाजार से उसके लिए एक से एक स्वेटर और जैकेट खरीदा है।लेकिन इस बार अपने हाथ का बुना स्वेटर पहनाना चाहती थी।यह दादी का शौक था कोई जरूरत नहीं।

पैसों की कोई कमी नहीं थी । वह स्टेट बैंक से जनरल मैनेजर के पद से रिटायर थी और बेटा बहु दोनो पटना यूनिवरसिटी में प्रोफेसर हैं। मन की उंगली से पोते का साइज मापकर स्वेटर के डिज़ाइन में फूल बूटे बना रही थी।तभी गेट पर डाकिया ने आवाज लगाया की रजिस्टर्ड लेटर है अनिता शर्मा के नाम।

उसने लेटर लिया और प्रेषक के जगह अधिवक्ता 'सक्सेना एसोसिएट' का नाम देखकर सोंच में पड़ गयी। किसी एडवोकेट के ऑफिस से उसको रजिस्टर्ड लेटर क्यों आया होगा ? 

खैर, उसने लिफाफा खोला तो उसमे से दो बंद लिफाफा निकला जिसमे से एक पर लिखा था पहले इसको पढ़ना । लिखावट जानी पहचानी लगी। लेकिन उसपर किसी का नाम नहीं लिखा था। लिखावट तो मनोज की लग रही है । मनोज इतने सालों बाद उसको पत्र क्यों भेजेगा और वो भी वकील के माध्यम से । उसके जैसी ही किसी और कि लिखावट होगी। लेकिन मनोज का नाम ध्यान में आते ही उसका मन कई तरह की आशंका से भर गया क्योंकि मनोज उसका पति था, था नहीं है , जो उससे चालीस साल पहले अलग हो गया था। उसका बेटा अंकुर उसी मनोज की निशानी है।

लिफाफा खोलने से पहले वह अंदर से सिहर गयी क्योंकि इस मनोज नाम के भवँर ने उसके जिंदगी के सफीना को बहुत हिचकोले दिए हैं।उसकी जिंदगी कुछ और नहीं बस मनोज के कारण मीले दर्द की दास्तान है। उस जैसी लिखावट देखकर दिल पर लगी चोट हरी हो गयी। अनिता इतना तो समझ गयी थी कि पत्र में कुछ तो गंभीर बात होगी। अतः उसने खुद को हर तरफ से समेटा और मन को समझाया ,जो भी होगा देखा जाएगा। पत्र मनोज का ही था लेकिन उसमे क्या था पता नहीं क्योंकि अनिता ने सबसे पहले पत्र के अंत मे लिखने वाले का नाम देखा - मनोज प्रकाश शर्मा ।

अनिता का अनुमान सही निकला ,अब संयमित होकर उसने पत्र पढ़ना शुरू किया ।


प्रिय अनु,

तुम यह पत्र पढ़ रही हो ,यह इस बात का प्रमाण है कि मैं इस दुनिया को अलविदा कह चुका हूँ।मेरे कारण तुमको कितना कष्ट और अपमान झेलना पड़ा उसका मुझे एहसास है। तुमसे माफी माँगकर मैं तुम्हारी त्याग और तपस्या का अपमान नहीं करूंगा।यदि माफी माँगना भी चाहूँ तो शब्द काम पड जाएंगे। अतः मैं यह मान लेता हूँ कि मैं माफी के योग्य नहीं हूँ।फिर भी तुम मेरे बेटे की माँ हो और उस नाते तुमसे एक आग्रह करता हूँ उसे अस्वीकार मत करना।

मेरी अस्थिकलश एडवोकेट सक्सेना के पास रखा हुआ है। तुम अपने बेटे से कहकर उसे गंगा में प्रवाहित करा देना। इस दुनिया में तुम दोनो के अलावे मेरा कोई नहीं जिसको अपना कहने का प्रयास भी कर सकता।

तुम यह जानने का कभी भी प्रयास मत करना कि तुमसे अलग होकर मेरी जिंदगी कैसी बीती। जितना मैं तमको जानता हूँ ,तुको कष्ट होगा। इसलिए मेरे अतीत को जानने की कोशिश मत करना।

अंकुर को तो सिर्फ इतना ही पता होगा कि उसके पिता का नाम मनोज शर्मा है।इसके अतिरिक्त मैंने एक पिता की कोई भी जिम्मेदारी नहीं निभा सका और अपनी माँ का बेटा ही बना रहा। मैं यह स्वीकार करता हूँ कि एक पति और पिता के रूप में मैं शतप्रतिशत विफल रहा।

छोड़ो अब इन बातों का कोई मतलब नहीं रह गया है।दूसरे एनवेलप में मेरा वसीयत है ।मैंने अपनी सभी चल-अचल संपत्ति जिसमे कृष्ण नगर का बंगला ,कलकत्ता का फ्लैट और मानिकपुर की पुस्तैनी घर-जमीन भी शामिल है अंकुर के नाम कर दिया है।तुम तो मेरा कुछ भी लोगो नहीं इसलिए सब उसके नाम कर दिया है। अब उसको किसी तरह मनाकर उसे स्वीकार करने को कहना।

तेरे मेरे बीच की कहा सुनी अधूरी ही रहने दो जब ऊपर अओगी तो समझ लेंगे।अब तुम अपने शरीर से सिंदूर और मंगलसूत्र का बोझ उतार देना ।

एक अपना जो हमेशा अजनबी रहा।


क्रमशः----------------------


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