Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Crime

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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Crime

अंधे रिश्ते

अंधे रिश्ते

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मेहुल भाई की तबियत आज थोड़ी ठीक नहीं थी इसलिए मॉर्निंग वॉक से जल्दी घर लौटे तो न्यूज़ पर देखा कि महाराष्ट्र में एक नया वायरस H3N2 के संक्रमण का मामला बढ़ रहा है।बिशेषज्ञों का कहना था की यह तेजी से फैलने वाला वायरस है और शायद यह दूसरा कोरोना का रूप ना ले ले। उसके जो भी लक्षण उसमे बताए जा रहे थे वो सब आम सर्दी जुकाम वाले ही थे। उनके अंदर भी वो सब लक्षण दिख रहे थे। उनको लगने लगा कि कहीं वो भी इस नए वायरस का शिकार तो नहीं हो गए।

लेकिन अपनी शंका को मन में रखते हुए अपनी बहन वत्सला की चिंता होने लगी। उसकी बेटी पलक ने बताया था की माँ की तबियत खराब है और उससे मिले हुए भी बहुत समय हो गया था।

मेहुल भाई के पास सीनियर सिटीजन कार्ड है जिससे बेस्ट की बसों में किराया कम लागत है। इसलिए अपनी एकलौती विधवा बहन से मिलने महीने में एक-आध बार चले जाते थे। वत्सला के पति कोरोना में गुजर गए थे। उसके घर मे रेगुलर आय का कोई स्रोत नहीं बचा था। उसकी बेटी पलक किसी प्राइवेट कंपनी में छोटी मोटी नौकरी करती थी। अपनी बहन का हाल चाल जानने के लिए मेहुल भाई ने फोन लगाया तो उसका फोन बंद आ रहा था।ऐसा पहले भी दो तीन बार हो चुका था। पलक का व्यवहार बहुत रूखा रहता थ इसलिए वो उसके फोन पर बहुत कम फोन करते थे। लेकिन आज मन बेचैन होने लगा। आखिर क्या बात है ? उसका फोन भी नहीं लग रहा है और उसने कभी कॉल बैक भी नहीं किया। पहले तो वह मिस कॉल देखते ही फोन करती थी। आज तबियत के चलते जाने का मन नहीं कर रहा था। उन्होंने अपने बेटे सुशांत से कहा शाम को ऑफिस से लौटते समय जरा फुआ का हाल चाल लेते आना। कई दिनों से उसका फोन नहीं लग रहा है और पलक भी फोन नहीं उठा रही है।

सुशांत ने कहा ठीक है पापा मैं पूरी कोशिश करूंगा कि फुआ से मिलता आऊँ। वैसे भी कल मेरा वीकली ऑफ है इसलिए मैनेज कर लूँगा।

देर शाम जब सुशांत घर लौटा तो मेहुल भाई ने उससे पूछा वत्सला मिली? कैसी तबियत है उसकी? वो ठीक तो है न!!

सुशांत गंभीर था और उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें स्पष्ट दिख रहीं थी। उसने कहा जरा फ्रेश हो लेने दो फिर बात करते हैं। थोड़ी देर बाद वह आकर मेहुल भाई के पास बैठा, बहु ने दो कप चाय रख दिया। दोनो ने अपने कप उठा लिए लेकिन सुशांत के चेहरे पर उलझन के भाव यथावत थे। ऐसा लग रहा था कि वो जो कहना चाह रहा था वो वह कहना नहीं चाहता था। लेकिन उसने अपने पापा से अपनी शंका को बताने का निर्णय लिया।

 सुशांत - पापा, फुआ से मुलाकात नहीं हुई। पलक ने कहा कि वह अपने किसी सहेली के घर शादी में कानपुर गई है। उसने मुझे घर के अंदर भी नहीं लिया।दरवाजे से ही चलता करना चाहा। मैंने कहा कि ठीक है चल एक कप चाय पिला दे फिर निकलूँगा। उसने कहा " चाय और शक्कर खत्म हो गया है।इसलिए मैं चाय नहीं पिला सकती। अब तुम जाओ।"

मुझे थोड़ा अजीब लगा। ऐसा कैसे हो सकता है कि फुआ कानपुर जाए और आपको बताए ही नहीं। मैंने पूछा कि फुआ कानपुर कब गयी तो उसने कहा लगभग महीना होने को आ गया। मैं तबतक फ्लैट के अंदर लगभग जबरदस्ती घुस गया था। फिर मैंने पूछा कि वह कब तक आएगी और उसका फोन क्यों बंद आ रहा है?

उसने कहा " माँ का फोन गुम हो गया है और वहाँ से उसका बद्रीनाथ और केदारनाथ जाने का प्रोग्राम है।अतः आने का कोई तय नहीं है।"

जब वो यह बात कह रही थी तो उसके चेहरे पर अजीब भाव थे और लग रहा था कि वह झूठ बोल रही है। रूम में से एक बेकार दुर्गंध आ रहा था। मैंने जब उस दुर्गंध के बारे में पूछा तो बोली लगता है कहीं चूहा मर गया है लेकिन मिल नहीं रहा है।उसने ढेर सारा रूमफ्रेशनर छिड़क दिया। मुझे फुआ को लेकर मन शशंकित है।भगवान करे मेरी शंका निर्मूल हो। वैसे भी आपको तो पता ही है पलक किस तरह की लड़की है!

यह सुनकर मेहुल भाई भी सोचने लगे आखिर पलक के झूठ बोलने का क्या कारण है? आखिर वह क्या छिपाना चाहती है? वैसे भी वत्सला उसके व्यवहार को लेकर चिंतित रहती थी। जवान बेटी है , हो सकता है और भी कुछ बात हो जो मेरे से भी छुपाती हो। माँ तो आखिर माँ ही होती है। बचपन मे संतान की गंदगी साफ करती है और पूरी जिंदगी उसके अवगुण पर भरसक पर्दा डालती है।

मेहुल भाई ने तय किया कि पलक से बात नहीं करेंगे क्योंकि वो सही जबाब देने से रही।अगली रोज वो स्वयं वत्सला की सोसाइटी में गए। घर पर ताला लगा हुआ था। उनको उस सोसाइटी में कई लोगों से पहचान थी। उन्होंने पड़ोसियों से पूछा कि पलक की माँ कहाँ गई है किसी को मालूम है क्या ? किसी को भी कुछ जानकारी नहीं थी और मुम्बई की जीवन शैली में यह आम बात है। लेकिन बगल के फ्लैट वाली ने बताया कि लगभग एक हप्ता पहले वो सब्जी मार्केट में मिली थी और साथ मे घर तक आई थी। उसके बाद से नहीं दिखाई दी।

अब उनका माथा ठनका ,सुशांत को पलक ने कहा था उसको कानपुर गए महीना होने को आया और पड़ोसन कह रही है एक हप्ता पहले वो भाजी लेकर साथ मे आयी थी। इसका मतलब साफ है ,कुछ राज है जो पलक छिपा रही है। उससे यह राज पुलिस ही निकाल सकती है। अतः वो वहाँ से सीधे काला चौकी पुलिस स्टेशन पहुँचे और अपनी बहन की गुमशुदगी का रिपोर्ट लिखा दिया।

जब वो पुलिस स्टेशन से बाहर निकल रहे थे तो एक थ्रीस्टार पुलिस ऑफिसर ने उनको प्रणाम किया। वो उसको पहचान नहीं पाए और असमंजस में पड़ गए कि यह पुलिस वाला उनको कैसे पहचानता है। उनके चेहरे के भाव को समझते हुए इंस्पेक्टर ने कहा मास्टर जी मैं आपका स्टूडेंट रहा हूँ जब मलाड में म्युनिसिपल स्कूल में आप टीचर थे। मेरा नाम सचिन भोसले है। अभी मैं ही इस थाने का इंचार्ज हूँ। लेकिन आप इस थाने में कैसे ? आप तो दहिसर रहते हैं !!

फिर मेहुल भाई ने उसको सारी बात बता दी। सचिन ने उनको आश्वस्त किया कि चिंता ना करें , वह व्यक्तिगत स्तर पर इस मैटर को हैंडल करेगा। इंस्पेक्टर की बात से उनको बहुत राहत मिली, नहीं तो आजकल आम आदमी की पुलिस प्रशाशन में सुनता कौन है !

उसी दिन शाम को जब इंस्पेक्टर सचिन भोसले राउंड पर था तो हवलदार सखाराम ने याद दिलाया कि आपके मास्टर जी ने जो कंप्लेन लिखवाया है वो एड्रेस यहीं सामनेवाले विनायक सोसाइटी मे है।

इंस्पेक्टर सचिन ने कहा चलो देखते हैं, आखिर मास्टर जी के बहन की गुमशुदगी का राज क्या है ? पुलिस की गाड़ी को कंपाउंड में देखते ही सोसाइटी वालों मे हलचल बढ़ गई।आखिर पुलिस क्यों आई है, कौन सा कांड हुआ है। गाड़ी से उतरने के बाद एक छोटे बच्चे से हवलदार ने पलक के रूम के बारे में पूछा। बेल बजाने पर एक खूबसूरत लड़की ने दरवाजा खोला जिसकी उम्र बीस के लपेटे में होगी। सामने पुलिस को देख पलक एकदम घबड़ा गई।सखाराम की अनुभवी आंखों ने उस घबड़ाहट से यह अनुमान लगा लिया कि इस लड़की ने कुछ तो गुनाह किया है।

फिर भी अपने को संयमित करते हुए पलक ने पूछा "आपको क्या काम है?

सखाराम - तुम्हारा नाम पलक है ? तुम्हारी माँ का नाम वत्सला है ?

पलक - जी! जी!

सखाराम - फिर अंदर चलो , तुमसे ही मिलना है। तुम्हारी माँ के बारे मे कुछ जानकारी चाहिए।

पलक - आप यों ही मेरे घर मे नहीं घुस सकते हैं। यह कोई मुजरिम का घर नहीं है।

इंस्पेक्टर सचिन ने रोबिले आवाज में कहा " हमको तुमसे नहीं सीखना है कि कहाँ घुसना है और कहाँ नही घुसना है और किससे क्या और कैसे निकलवाना है। चल अपनी माँ को बुला।"

इतने में अंदर से एक लड़का आया और बोला कौन आया है और खालिपिली मचमच कर रहा है। लेकिन सामने पुलिस को देखकर उसके होश उड़ गए। वह पठान वाड़ी का हिस्ट्रीशीटर लतीफ था।

लतीफ को देखते ही इंस्पेक्टर समझ गया कि यहाँ कोई बड़ा झोल है और लतीफ भी समझ गया कि अब वह फंस गया।

इंस्पेक्टर - लतीफ, तुम यहाँ क्या कर रहे हो ?

पलक - इंस्पेक्टर साहब आपको कोई गलतफहमी है। यह लतीफ नहीं मेरा करीबी रिश्तेदार ललित लिम्बानि है।

इंस्पेक्टर - अच्छा, तो मैडम को इसका असली नाम तक मालूम नहीं और करीबी रिश्तेदार है!! सखाराम थाने से और पुलिस बुलाओ और इस घर की अच्छे से तलाशी लो। इन दोनों से अब लॉकअप में विधिवत पूछताछ होगी।

तुरंत पुलिस टीम पहुंच गई और घर की तलाशी शुरू हुई।इधर इंस्पेक्टर ने पलक से पूछताछ शुरू कर दिया। तुम्हारी माँ कहाँ है? उसका एक ही जबाब वह कानपुर गई है और उस स्थान का पता उसे नहीं मालूम है। उसको गए हुए पंद्रह दिन हुए है।

उधर पुलिस को एक स्टील का बडा कंटेनर मिला जिससे बदबू आ रही थी और उसमें सूखे खून के धब्बे थे। एक ब्लैक पोलीथिन मिला जिसमे एक प्लास्टिक गोनी था और उसमें अधेड़ उम्र के औरत के बाल पेपर में लपेट कर रखा हुआ था। किचन प्लेटफॉर्म पर एक कैटरर साइज का पतीला रखा हुआ था। अमूमन घरों में इस साइज का पतीला इस्तेमाल नहीं होता है। ढक्कन हटाकर देखा तो धनिया पता ,लेमन ग्रास और लहसुन पत्ता तैरता दिख रहा था और लग रहा था कि सुप बनाकर रखा है।

जब उसमे कलछुल डालकर हिलाया तो उसमें से इंसानी नाक , दाँत और जीभ ऊपर दिखने लगे। पूरी पुलिस टीम भौंचक थी। फ्लैट को सील कर दिया गया और फोरेंसिक टीम को आगे की जाँच और सबूत के लिए सूचित कर दिया गया। पुलिस लतीफ और पलक को गिरफ्तार करके थाने पहुंची।

पुलिस के पूछताछ में जो निकलकर सामने आया वो रोंगटे खड़े कर देनेवाला और रिश्ते की विद्रूपता का प्रमाण था।

पलक का चाल चलन सही नहीं था। माँ अक्सर इस बात को लेकर रोक-टोक करती थी। पलक को यह सब अच्छा नहीं लगता था। माँ खुद बेसहारा और लाचार थी।अपने दवा वगैरह के खर्चे के लिए भी भाई पर निर्भर थी। फिर भी जवान बेटी के बहकते -फिसलते कदम किसी भी माँ को कैसे स्वीकार हो सकता है? शुरू में तो जब भी माँ उसको समझाने की कोशिश करती तो वह कह देती "माँ आप जैसा सोच रही हो वैसा कुछ भी नहीं है।मैं कुछ भी गलत नहीं कर रही हूँ। आज की दुनिया मे जीने का तरीका बदल गया है। आप नहीं समझोगी!"

माँ कहती ,बेटी तुम जितना दुनिया को जानती हो और दुनिया जितना तुमको जानती है उससे नव महीने पहले से मैं तुमको जानती हूँ। आज अगर तुम्हारे बापू होते तुम मुझको रौंद कर नहीं चलती।

हप्ता भर पहले ऐसी ही बात पर माँ-बेटी में कहा-सुनी हो गई। गुस्से में पलक ने माँ का गला दबा दिया।उसको एहसास भी नहीं हुआ और उसकी माँ मर गई। उसका मृत शरीर विस्तर पर पड़ा था। उसको यकीन नहीं हो रहा था उसके हाथों माँ की हत्या हो गई। अभी वह इसी उलझन में थी कि अब आगे क्या करे , क्या होगा, तभी किसी ने कॉलबेल बजाया। पलक ने माँ के मृत शारीर पर चादर डाल दिया मानो सो रही हो और दरवाजा सटा दिया। जब मेनगेट खोला तो सामने ललित था।उसने उसको अंदर लिया और एकदम नार्मल पेश आयी। उसको चाय के लिए पूछा , उसने हाँ किया। ललित के लिए चाय के साथ स्नैक्स भी लेकर आई। दोनो ने चाय पिया। इसबीच एक बार भी पलक की माँ की आवाज नहीं सुनाई दी या कोई रोका- टोकी नहीं हुआ। यह ललित के लिए आश्चर्य था। उसने पलक से पूछा तुम्हारी माँ कहीं बाहर गईं है क्या ?

पलक ने कहा उसकी तबियत ठीक नहीं है और वह सो रही है। फिर ललित ने कहा उसके रूम का दरवाजा बंद कर दो और उसकी गहरी निद्रा का लाभ उठा लिया जाए। पलक ने कुछ जबाब नहीं दिया। फिर ललित ने खुद ही दरवाजा बाहर से बंद कर दिया और दोनो ने शारीरिक संबंध बनाए। जब कभी एकांत मिलता था तो उनके लिए यह आम बात थी। लेकिन आज पलक की तरफ से उतना अच्छा रिस्पांस नहीं मिला। इस बात को उसने पलक से कहा और पूछा आखिर क्या बात है ?माँ की उपस्थिति से संकोच हो रहा है क्या ?

ललित ने कहा कुछ और खाने का हो तो लाओ ना। पहले पेट की भूख मिटा लूं फिर एक बार अच्छे से मन की भूख मिटाएंगे। जो भी माँ ने खाने में बनाया था वो लेकर आई और दोनो ने साथ मे खाना खाया। फिर एक बार संबंध बनाए।

ललित ने पलक की असहजता और बेमनपन को महसूस किया। उसने उसको प्यार से अपने गले लगाकर पूछा कोई बात तुमको परेशान कर रही है तो बताओ "मैं हूँ ना"।

सांत्वना और आत्मीयता के आगोश में उलझने त्वरित सतह पर आ जाती हैं।फिर उसने ललित को यह बता दिया कि उसके हाथ से माँ की हत्या हो गयी है।अब समझ मे नहीं आ रहा है कि इस समस्या से वो कैसे बाहर निकलेगी। ललित उर्फ लतीफ ने उससे कहा कि वह उसको इस मुसीबत से बाहर निकाल देगा यदि वह आज और अभी उससे शादी करने को तैयार हो तो।

फिर दोनो ने एक बार मिलकर कन्फर्म किया कि बूढ़ी मर चुकी है। उसके बाद दोनो ने वडाला राममंदिर में जाकर शादी किया। उधर से लौटते समय ललित ने बिग साइज वाली ब्लैक गार्बेज बैग का पैकेट ,इलेक्ट्रिक मार्बल कटर और एक हथौड़ा खरीदा। दोनो होटल में खाना खाकर घर पर आए।

अब पलक की माँ की बॉडी को ठिकाने लगाने के लिए उसको सबसे पहले बाथरूम में लेकर गए ताकि खून को आसानी से साफ किया जा सके।सबसे पहले मार्बल कटर से उसका गर्दन अलग किया ताकि शरीर का खून जल्दी से बह जाए।मुंडी को एक स्टील कंटेनर में रख दिया जिसमें माँ राशन का चावल रखती थी। उसके बाद शरीर के कई टुकड़े करके उसे फ्रिज में रखने लायक बनाया। शरीर के टुकड़े को बाहर लेकर जाने में पकड़े जाने का डर था इसलिए ललित के कहने पर यह तय हुआ कि मांस को बॉयल करके मिक्सर में ग्राइंड करके टॉयलेट में फ्लश कर देंगे।यदि कच्चा मांस फ्लश करेंगे तो गलने में टाइम लेगा और बदबू मारेगा। हड्डी को अच्छे से साफ करके पॉलीथिन में डालकर माहिम क्रीक में डाल देंगे। किसी को पता भी नहीं चलेगा कब मर्डर हुआ और लाश कहाँ गई। इसके लिए लतीफ ने अपने पहचान के कैटरर से पतीला मांग कर लाया था। उनलोगों ने पूरी बॉडी को ठिकाने लगा दिया था पांच दिन में। हड्डी को मैनेजेबल साइज में लाने के लिए हथौड़ा और कटर का उपयोग किया गया। आज खोपड़ी को ठिकाने लगाना था तबतक पुलिस के हत्थे चढ़ गए।

इस सनसनी खेज वारदात की रिपोर्टिंग पेपर में छपी तो कोई भी यकीन करने को तैयार नहीं हो रहा था कि कोई बेटी अपने माँ के साथ ऐसा कर सकती है। सुना था प्यार अंधा होता है। अब तो रिश्ते भी अंधे हो गए हैं।

अगले रोज ललित उर्फ लतीफ पठान का बेल कराने के लिए एडवोकेट कादिर खान थाने पहुँचा। उसको देखते ही सचिन का माथा ठनका क्योंकि कादिर खान तो लव जिहाद और आतंकवाद से जुड़े लोगों का ही केस लड़ता है।

बेल पेटिशन पर बहस के दौरान जज ने जो टिप्पणी किया वह समाज के लिए बहूत ही गम्भीर और चिंतनीय है। इस घटना को रेयर ऑफ द रेयरेस्ट माना। यह समाज मे रिश्तों में बढ़ती विकलांगता का प्रमाण है। हाल ही में एक अस्सी वर्षीय बुजुर्ग दम्पति ने आत्महत्या किया क्योंकि उनसे अपने बेटे-बहु द्वारा किया जानेवाला अपमान और अत्याचार असहनीय हो गया। वाराणसी में एक पेंशनधारी संतानहीन महिला का मरणोपरांत रिश्तेदारों ने दाह संस्कार करने से इनकार कर दिया। जबकि उसके पेंशन का लाभ उठाते रहे। आखिर कब तक आफताब के हाथों श्रद्धा के टुकड़े होंगे, सिंघानिया को भिखारी बनना पड़ेगा, वत्सला का सूप बनेगा। समाज और प्रशासन के सभी अंगों द्वारा संवेदनशील संस्थागत प्रयास की जरूरत है ताकि अंधे रिश्ते के फैलाव को रोका जा सके।


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