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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Tragedy

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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Tragedy

पिंक ऑटो - पार्ट 1

पिंक ऑटो - पार्ट 1

7 mins
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रमेश चंद्रा को आज ऑफिस जल्दी पहुँचना था । मार्केटिंग डायरेक्टर के साथ एनुअल मीटिंग थी।लगभग भागते हुए वह ऑटो स्टैंड पहुँचा। वहाँ एक पिंक ऑटो अपनी तीसरी सवारी का इंतजार कर रही थी। उसने अपने आपको किसी तरह ऑटो मे ठूंस दिया क्योंकि उसमे पहले से बैठे दो यात्री थोडे हेल्दी थे। रेलवे स्टेशन कब पहुंचा उसको आभास भी नहीं हुआ । उसका इस बात पर भी ध्यान नहीं गया की ऑटो को एक महिला चला रही थी। पैसा देते वक्त उसकी नजर उस पर पड़ी जब उसने कहा की सुबहु - सुबह  छूटे पैसे देने का, बीस रुपया के लिए मैं दो सौ  का खुला नहीं कर पाऊंगी। रमेश ने अपने सारे जेब टटोल डाले लेकिन बीस का नोट नहीं मिला। इतनी सुबह कोई दुकान भी नहीं खुला था जहां से वो छुट्टा करा सके और ट्रेन छूटने का भी डर उसके चेहरे से झलक रहा था। उसने कहा मैडम आप यह नोट रख लो और अपना मोबाइल नंबर दे दो । मैं शाम को आपको बीस रुपया देकर यह नोट ले लूंगा। ऑटो वाली ने कहा कोई बात नहीं, आप अभी जाइए अगर बीस रुपया मेरे नसीब का होगा तो आप से फिर मुलाकात होगी और आप मेरा किराया दे देना।वैसे भी इससे नहीं आप अमीर होंगे और ना ही मैं गरीब हो जाऊंगी । रमेश को उसकी बात उचित लगी और उसने उसका ऑटो नंबर और उसका चेहरा अपने जहन मे बैठा कर आगे बढ़ गया। किसी तरह अपनी ट्रेन को पकड़ लिया।रास्ते भर सोचता रहा आखिर क्या मजबूरी होगी की इतनी खूबसूरत महिला को ऑटो चलाना पड़ रहा है। चेहरे से शरीफ लग रही थी, बात करने का लहजा भी ऑटो वालों से मेल नहीं खा रही थी। खैर, कोई बात नहीं दुबारा जब कभी मुलाकात होगी तो पूछ लूंगा। लेकिन उसके अवचेतन मन मे वह महिला और उसकी सूरत बार बार दस्तक दे रही थी। आज के पहले कभी भी उसने अपने इलाके मे इतनी खूबसूरत महिला को पिंक ऑटो चलाते नहीं देखा था।इसलिए उसका पता लगाना कोई मुश्किल काम नहीं था। वैसे भी उसने उसका ऑटो नंबर नोट कर लिया था। देखते देखते कई महीने गुजर गए लेकिन उस ऑटो वाली से उसकी मुलाकात नहीं हुई। उस दिन के बाद से वह प्रत्येक पिंक ऑटो चालिका को ध्यान से देखता और उसके ऑटो नंबर का मिलान करता लेकिन उसको निराशा ही हाथ लगती। एक रोज रमेश आजाद नगर मोड पर ऑटो के इंतजार में खड़ा था। उसको वॉखार्ड हॉस्पिटल जाना था क्योंकि उसकी वाइफ आईसीयू मे भर्ती थी। तभी उसके सामने आकर एक पिंक ऑटो रुका। ऑटो वाली वही थी जिसको रमेश को बीस रुपया देना बाकी था। रमेश के मुंह से विस्मय भरे भाव में निकला "अरे, मैडम आप मिल गई!" फिर उसने अपने जेब से बीस का नोट निकलकर उसकी तरफ बढ़ा दिया। ऑटो वाली ने हाथ के इसारे से पूछा - यह क्या है और किसलिए ? उसके बाद रमेश ने उसको उस दिन की घटना याद दिलाई। ऑटो वाली ने मुस्कुराते हुए कहा  "अभी तक आपको देनदारी याद थी।" रमेश - मैडम उधार और अपमान कभी भी कोई भी नहीं भूलता । उसको भूलने का बहाना करना नियत मे खोट का परिचायक होता है। ऑटो वाली  - आपकी बात बिलकुल सही है और आप दिलचस्प इंसान लगते हैं। यहाँ  आप किसी का इंतजार कर रहे हैं या कहीं जाना है? रमेश - मैं वॉखार्ड हॉस्पिटल जाने के लिए ऑटो का ही इंतजार कर रहा हूं । ऑटो वाली - इसका मतलब आपको उत्तन जाना है। वैसे तो मैं केवल शेयरिंग मे स्टेशन से इंद्रलोक तक ही चलाती हूं । लेकिन बैठिए आपको छोड़ देती हूं। शर्त सिर्फ इतनी है की आपको रिटर्न भी आना पड़ेगा। रमेश ने कहा यह तो मेरे लिए खुशी की बात होगी। लेकिन आपको थोड़ा वेट करना पड़ेगा। ऑटो वाली - कोई बात नही, आपको वेटिंग चार्ज लगेगा क्योंकि वो मेरा रूट नही है और मैं वहां के लोकल लोगों से पंगा नहीं कर सकती। रमेश ऑटो मे बैठ गया और मीटर गिराकर ऑटो चल पड़ी। रास्ते मे दोनो बाते करते जा रहे थे। दोनो ने एक दूसरे का नाम पूछा।फिर सपना ने  पूछा की कौन हॉस्पिटलाइज्ड है और उसको क्या हुआ है जो इतने बड़े हॉस्पिटल में भर्ती करना पड़ा।रमेश ने उसको बताया कि उसकी वाइफ को फूड प्वाइजनिंग हो गई थी।फिर उसके फैमिली डॉक्टर ने उधर रेफर किया क्योंकि लोकल हॉस्पिटल मे कोई आइसीयू बेड खाली नहीं था। सपना ने कहा वो हॉस्पिटल तो अच्छा है लेकिन बहुत महंगा है। उम्मीद करती हूं आपका मेडिक्लेम तो होगा ही। आजकल तो गरीबों को हॉस्पिटल के सामने से गुजरने मे भी डर लगता है। जब रमेश आईसीयू के पास पंहुचा तो उसे जानकारी मिली की    शोभा  को जनरल वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया है। उसने मन ही मन राहत महसूस किया।कुछ सुधार होगा तभी तो आईसीयू से बाहर शिफ्ट किया गया होगा । शोभा को दलिया खाते देख रमेश खुश हो गया । उसको पत्नी ने कहा की वह अब एकदम ठीक है और घर  जाना चाहती है। रमेश - मैं भी चाहता हूं की तुम जल्दी घर चलो। लेकिन हॉस्पिटल में डॉक्टर  कहता है ना की पेशेंट की उसे कब घर जाना है। फिर  रेसिडेंट डाक्टर से बात करने पर उसको मालुम हुआ की संभवतः परसो उसको छुट्टी मिल जाएगी। वह खुश हो गया और अपनी  पत्नी को यह बात बता खुशी मन से हस्पताल से बाहर आ गया। नीचे सपना औटो मे उसका ईंतजार कर रही थी। उसके पास पहुँचते ही रमेश ने कहा सौरी आपको  काफी ईंतजार करना पडा।यदि आपको कोई एतराज. नहीं हो  तो क्या हमलोग कहीं बैठकर  चाय पी सकते हैं? सपना ने कहा क्यों नहीं ! बैठीए, मैं आपको नजदीक मे ही नागोरी चायवाला के पास ले चलती हूँ।थोडी देर मे दोनो वहाँ पहूँच गए।हमेशा की तरह दुकान पर काफी भीड थी। वहाँ पर लोग रोड पर खडे-खडे भी चाय पीते थे और अंदर एसी मे बैठकर भी चाय पी सकते थे। रमेश सपना को लेकर अंदर चला गया और कोने की टेबल पर दोनो बैठ गए। फिर सपना ने नागोरी स्पेशल "बन मसका पाव और  फुल गलास मलाई चाय' का ऑर्डर दिया। चाय पीते हुए रमेश ने पुछा , क्या मैं आपसे एक बात जान सकता हूँ कि आप ऑटो क्यों चलाती हैं? सपना ने प्रश्नवाचक दृष्टी के दायरे मे रमेश को रखते हुए पुछा, आखिर घर चलाने के लिए कोई भी काम करने मे क्या बुराई है ? रमेश जबाब सुनकर संकोच मे पड गया और सोचने लगा प्रश्न गलत है या पुछने का तरिका गलत है या इस प्रश्न के लिए अभी रिश्ते मे दुरी है !! फिर भी अपने को सहेजते हुए उसने कहा आपका व्यक्तित्व इस व्यवसाय से मेल नहीं खाता है। कहीं ना कहीं कुछ मिसमैच है जो मेरे समझ से परे है। रमेश की बात सुनकर दोनों के बीच एक ढंढी खामोशी पसर गई जिसके एक छोर पर स्वभाविक उत्सुकता थी तो दुसरे छोर पर दर्दभरी दास्तान का कटु अनुभव जिसे खयालों मे भी सहलाने से सपना को डर लगता था। दोनों के चाय से निकलती भाप थोडी ऊंचाई पर एकीकृत हो रही थी।रमेश की बातों मे एक अंजाना आकर्षण था जिसके जादुई प्रभाव मे सपना अपना पुरा अतीत उसको बता देने से रोक नहीं पा रही थी। दुसरी तरफ स्वाभिमानी नारी मन अंजाने इंसान के सामने आपबीती बताने मे झीझक रहा था। लेकिन उस झीझक को रमेश के इन शब्दों ने दूर कर दिया -"मेरे पर भरोसा कर सकती हो"। देखते ही  देखते सपना की घनीभूत अंतरवेदना आँसू बन छलक पडी। आँसू के आवेग और प्रवाह को महसुसते ही रमेश के हाथ संवेदना अभिवयक्ति मे सपना के हाथ को सहलाने लगे। रमेश समझ नहीं पाया यह कैसे हुआ लेकिन सपना को अच्छा लगा।दुख की घडी मे अवचेतन मन स्वभाविक अपनापन भरे स्पर्श को सहज महसूस कर लेता है। उस एहसास के प्रभाव मे सपना के अंदर एक   हलचल सी हुइ और दमित भावना शब्द बनकर बाहर निकल पडे। उसने कहा बहुत लम्बी कहानी है , समय लगेगा क्या आप सुनना चाहेंगे ? रमेश ने कहा  अवश्य , यदि सुनना नहीं होता तो आग्रह क्यों करता ? फिर सपना ने गहरी साँस ली और कहना शुरू किया - मैं एक सम्पन्न और कुलीन ब्राह्मण परिवार मे पैदा हुइ थी लेकिन अपने  करम से इस अवस्था मे पहुंच गई। क्या करें , अपनी गलतियां और अपने सतकर्म अदृश्य हमसाया की तरह आपके साथ - साथ चलते हैं ओर अनुकूल परिस्थिति आने पर आपके राह मे  काँटा या फुल बिखेर देते हैं। जब मैं काँलेज मे पढ रही थी तो पडोस मे एक दुसरी जाती के लडके से प्यार हो गया। हम दोनो ने प्यार मे सारी समाजिक मर्यादाओं को तोड दिया।माँ का समझाना तकियानुसी लगता था। मैंने और रमण ने घर से भाग कर बिना शादी के लिव-ईन रिलेशनशिप मे रहना शुरु कर दिया। पल-पल, क्षण-क्षण रोमांचक और  नेवर-बिफोर वाली फिलींग होती थी। सबकुछ था लेकिन अपना कोई नहीं था क्योंकि हम दोनों के परिवार वालों ने हमसे अपना रिश्ता तोड़ लिया था।फिर भी हमें कोई फर्क नहीं पडा। जवानी का जोश था, फाईव फिगर वाली इंकम थी , मनमानी स्वक्षंदता थी और यह सब मिला था  पारिवारिक और समाजिक परंपरा  की परिधि से बाहर निकलने के कारण।


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