स्कोरिंग बंटी
स्कोरिंग बंटी
अनुपमा अपने बेटा बंटी के व्यवहार में आए बदलाव को लेकर काफी चिंतित थी। उनको इस बदलाव का कारण सनाझ में नहीं आ रहा था।इस साल उसका बोर्ड का एग्जाम था और वह पढ़ने में काफी होशियार था। उसको हमेशा अच्छे अंक आते रहे हैं।नवीं कक्षा में भी वह टॉप किया था अपने सेक्शन में और बैच मे चतुर्थ स्थान था। वह आजकल गुमसुम रहने लगा है। बात बात में झुंझला जाता है। खाने पीने सोने का भी समय असमय हो गया है। उसके पापा अपनी व्यस्तता के चलते घर की बातों पर उतना ध्यान नहीं दे पाते हैं और उनके ग़ुस्सैल स्वभाव के चलते उसकी माँ यथासंभव कोशिश करती हैं कि बच्चों की छोटी मोटी बातें उनके संज्ञान में नहीं आए। लेकिन बंटी में आए बदलाव को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। अतः उन्होंने निर्णय किया कि परसो जब शर्मा जी बिज़नेस ट्रिप से वापस आएंगे तो उनसे बात करूंगी। लेकिन उससे पहले उसने सोंचा की उसी स्कूल में उससे दो क्लास पीछे पढ़नेवाली उसकी बहन से पूछती हूँ कि उसके स्कूल में कुछ ऐसा-वैसा तो नहीं हुआ है जिसका प्रभाव उस पर पड़ा हो।
रात को सोते समय अनुपमा ने बेबी को अपने बेड पर बुलाया और कहा कि आज मेरे सर में तेल मालिश कर दो।उसके बंगले में सात कमरे हैं ।इसलिए दोनो बच्चों का अपना अलग कमरा है और एक रूम को शर्मा जी ने मिनी ऑफिस बना रखा है। उनको समझ नहीं आ रहा था बेबी से बात की शुरुआत कैसे करें? उनको लग रहा था कहीं कोई लव अफेयर में धोखा का मामला तो नहीं है , कहीं बंटी किसी गलत लोगों के संगत में तो नहीं आ गया। पुत्र पीड़ा से आहत माँ का मन विविध आशंकाओं से घिर रहा था लेकिन किसी भी संभावना को स्वीकार नहीं करना चाहता था। फिर भी,साक्षात सामने खड़ी समस्या की अनदेखी भी नहीं कर सकती थी।
बेबी ने हिमगंगा तेल लेकर धीरे धीरे माँ को मालिश करना शुरू किया। माँ ने आँखे बंद किए हुए ही बेबी से पूछा " आजकल तुम्हारा भाई का मूड कुछ उखड़ा - उखड़ा और खोया - खोया सा रहता है। इसके पीछे क्या कारण लगता है तुमको ।"
बेबी -" माँ, मैंने भी भैया में बदलाव नोटिस किया है लेकिन कह नहीं पा रही थी। मालूम नहीं तुम इस बात को कैसे लेती !
वैसे मुझे कुछ खास मालूम नहीं है कि उसके साथ स्कूल मे क्या हुआ है।लेकिन उसके कुछ दोस्तों को मैं चेहरे से पहचानती हूँ जिनके साथ वो अक्सर दिखता है। उनमें से एक को कुछ दिन पहले कैंटीन मे बात करते सुना था की अब बंटी टॉप स्कोरर नहीं रहा। फर्स्ट ईयर का अल्बर्ट स्कोरिंग और स्वैपिंग दोनो मे उससे आगे है।"
माँ ने उत्सुकतावश बेबी से पूछा "यह स्कोरिंग और स्वैपिंग क्या होता है? कोई नई चीज सिलेबस मे जुड़ी है क्या ?"
बेबी ने कंधा उचका कर कहा "मुझे क्या पता कि यह क्या सब्जेक्ट है। हो सकता है ऊपर के क्लास मे पढ़ाया जाता हो। तुमको तो मालूम होना चाहिए आखिर तुम भी तो पोस्ट ग्रेजुएट हो।
माँ ने कहा हमारे जमाने मे तो ऐसा कोई टर्म नहीं था। हो सकता है नई शिक्षा नीति मे कुछ ऐसा जोड़ा गया हो। लेकिन कुछ भी हो तो उसमे इसके बैच के लड़के का स्कोर कम या ज्यादा होना इसको परेशान कर सकता है। इसके सीनियर के स्कोर से बंटी का क्या लेना देना !!
फिर माँ-बेटी आपस मे और बहुत सारी बातें करती नींद में चली गयीं । सुबह मे नींद खुलने के बाद भी अनुपमा का दिमाग दो शब्दों में ही उलझा था - स्कोरिंग और स्वैपिंग । माँ का सिक्स्थ सेंस कह रहा था कि हो ना हो बंटी की परेशानी का राज इन दो शब्दों मे छिपा है। अतः उन्होंने सोंचा की बंटी से बात करने से पहले वो दूसरे माध्यम से इसके बारे मे मालूम करने की कोशिश करूंगी।
अनुपमा ने सोंचा की इस बारे में बहुत सावधानी से बात करनी होगी। फिर उन्होने शुभम की मम्मी को फोन करने का निर्णय किया। वह बहुत ही गंभीर स्वभाव की महिला हैं और उनसे अच्छी जान पहचान भी है। नर्सरी में जब बंटी को स्कूल छोड़ने और लाने जाती थी तो भारती से परिचय हुआ था। नर्सरी के फर्स्ट डे ही शुभम और बंटी का बैग आपस मे बदल गया था। वो भी क्या दिन थे। नर्सरी के क्लास से जब बच्चे निकलते थे तो सब यूनिफॉर्म में एक ही जैसे दिखते थे। कुछ बच्चों में तो इतनी समानता होती थी कि उनके बैग और वाटर बॉटल से पहचानना पड़ता था की अपना बच्चा कौन है। जब बच्चे बड़े हो गए और अपने से स्कूल जाने लगे तो उनकी मम्मी लोगों से भी मिलना जुलना लगभग बंद ही हो गया।
फिर भी शुभम की मम्मी से अलग संबंध बन गया था। कई बार उनको अनुपमा ने आर्थिक मदद भी किया था। आजकल वो दूसरे एरिया में शिफ्ट हो गयी हैं।संयोग से फर्स्ट रिंग में ही भारती जी ने फोन उठा लिया। एक दूसरे का कुशलक्षेम जानने के बाद अनुपमा ने भारती जी से पूछा कि स्कोरिंग और स्वैपिंग के बारे में उनको कुछ जानकारी है क्या ?
बंटी की माँ के मुंह से यह शब्द सुनते ही भारती को ऐसा लगा जैसे बिजली की तार पर उनका हाथ छू गया। उनके मुँह से अचानक निकल गया " कहीं आपका बंटी भी स्कोरिंग बंटी तो नहीं बन गया ??"
शुभम की मम्मी की प्रतिक्रिया को सुनकर बंटी की माँ को अपनी शंका प्रबल होती दिखने लगी। फिर भी उन्होंने खुद पर नियंत्रण रखते हुए पूछा नहीं ऐसी कोई बात नहीं है। लेकिन आपकी बात से लग रहा है कि इसका संदर्भ कुछ नकारात्मक है। मुझे जरा खुलकर बताइए आख़िर यह क्या बला है ?
भारती जी ने लगभग सुबकते हुए कहना प्रारंभ किया - अनुपमा जी आपसे क्या छुपाना । मेरा शुभम अठवीं में इस स्कूल में फेल हो गया । इसको प्रमोट नहीं कर रहे थे तो मैंने उसको इस स्कूल से निकाल कर अपने नजदीक के स्कूल मे दाखिल करा दिया ।
अनुपमा - अच्छा , तो फिर क्या हुआ ? और इसमें हर्ज ही क्या है , अपने बच्चे का साल बरबाद होने से बच गया।
भारती - साल तो बच गया लेकिन बच्चा बरबाद हो गया। इस स्कूल में आकर वह गलत लोगों के संगत में पड़ गया। आपने तो देखा ही है मेरा शिवम कितना सुंदर है अब तो उसकी कद काठी काफी आकर्षक हो गई है।
अनुपमा - हाँ जी , बिल्कुल आप पर गया है।वैसे भी मारवाड़ी लोग सुंदर तो होते ही हैं।
भारती - वही सुंदरता कभी- कभी मुसीबत का कारण बन जाती है। मेरा बेटा अचानक गुमसुम रहने लगा। पढ़ाई लिखाई और खाना- पीना सब अस्त-व्यस्त हो गया। मैं डॉक्टर के पास लेकर गयी तो उसने कहा कि यह डिप्रेशन में चला गया है । इसको किसी साइकियाट्रिस्ट से दिखओ। मनोचिकित्सक ने बताया कि यह लड़का अभी अवसाद में चल रहा है। इसको इससे बाहर लाने मे पैरेंट की अहम भूमिका होगी। मेरे तो पैर के नीचे से जमीन ही खिसक गई और लगने लगा मैं डिप्रेशन मे नहीं चली जाऊं।
अनुपमा - आपका वह एकलौता बेटा है , यह तो होना स्वभाविक है।अपना कष्ट एक बार झेल लेते हैं लेकिन बच्चों की परेशानी झेलना माँ के लिए भारी पड़ता है।
फिर आगे क्या हुआ ?
भारती - होना क्या था जी, डॉक्टर ने जो कुछ बताया उसपर यकीन नहीं हो रहा था। ऐसा लगा जैसे आँचल की छाँव में खड़ा बेटा छू मंतर हो गया। उसने बताया कि वह स्कोरिंग में पिछड़ने के चलते डिप्रेशन में चला गया है।
अनुपमा - यह क्या बात हुई ! अरे शुभम तो कभी भी हाई स्कोरर नहीं था । दो चार परसेंट कम आने से डिप्रेशन मे जाने की बात हजम नहीं हो रही है।
भारती - आप जो स्कोर समझ रही हैं उस स्कोर की बात नहीं है यह सब। एग्जाम में अच्छा स्कोर लाने वाले लड़कों का रुतबा पहले बढ़ता था, उसको रेस्पेक्ट मिलता था।आजकल स्कोर का मतलब गर्लफ्रैंड से है। जिसकी जितनी गर्लफ्रैंड वो उतना ही कूल समझा जाता है और उसका स्कोर हाई होते जाता है। जिसकी कोई गर्लफ्रैंड नहीं उसको हेय दृष्टी से देखते हैं। मंथली इसका चार्ट बनता है। जिसके गर्लफ्रैंड की संख्या बड़ी उसका रुतबा बडा। जब किसी की गर्लफ्रैंड पाला बदल ले तो और मुसीबत। इस तनाव को नहीं झेल पाने के चलते चौदह - पंद्रह साल के बच्चे डिप्रेसन में चले जाते हैं।
अनुपमा ने आश्चर्यचकित होकर पूछा "यदि स्कोरिंग का यह मतलब है तो फिर स्वैपिंग क्या चीज है ! नए जमाने की कोडवर्ड को समझना बहुत जरूरी है।"
भारती - "क्यों नहीं , स्वैपिंग मे अपनी गर्लफ्रैंड से शारीरिक सबन्ध बनाना और उसको अपने दूसरे दोस्त के साथ एक्सचेंज करना होता है। जो जितना स्वैपिंग करता है वो उतना बड़ा सुपरस्टार और जो लड़की सबसे ज्यादा लड़के से संबंध बनाती है उसको स्वैपिंग क्वीन की उपाधि मिलती है। इस स्कोरिंग और स्वैपिंग के चक्कर मे जब कोमल भावना आहत होती है या आत्मग्लानि होती है तो डिप्रेशन का कारण बन जाती है। ऐसा उस डॉक्टर ने मुझे बताया था । उसकी यह फाइंडिंग मेरे बेटा के साथ कई सेसन करने के बाद हुआ था। उसमे अब काफी सुधार है। डॉक्टर ने बताया कि आजकल अडोलेसेंट एज फिजिकल रिलेशन्स के केस बहुत बढ़ गए हैं जो डिप्रेसन का कारण बन रहे हैं।"
अनुपमा -" दुनिया किधर जा रही है भारती जी, हम बच्चों को स्कूल में पढ़ने के लिए भेजते है और वो कुछ और ही करने लगते हैं। आज की तारीख में हमलोगों के बच्चे अलग-अलग स्कूल में पढ़ते हैं लेकिन एक ही समस्या से जूझ रहे हैं। इसका मतलब यह हुआ कि समस्या केवल किसी स्कूल की नहीं बल्की इस सामाजिक पीढ़ी की है।
आपने इस संबंध में फिर वहाँ के प्रिंसीपल से बात किया था? उनका क्या कहना है ?"
भारती - "प्रिंसीपल ने समस्या को स्कूल की समस्या मानने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि यह आपके बेटा की व्यक्तिगत समस्या है। उससे आप निपटीए और स्कूल को बदनाम मत कीजिए।
खैर, हमलोगों ने बहुत मुश्किल से अपने बच्चे को संभाला और आज वह लगभग नार्मल हो गया है। लेकिन उसका एक साल बर्बाद हो गया है। अब सोंचनेवाली बात यह है कि आखिर हमारे बच्चे कहाँ सुरक्षित है ? एक उम्र के बाद बच्चे घर से ज्यादा समय स्कूल, क्लासेज और क्लासमेट के साथ बिताते हैं। यदि वहीं पर उनकी फिसलन और भटकन की वजह है तो हम क्या कर सकते हैं?"
अनुपमा -" हमलोगों को पैरेंट के अतिरिक्त एक समाज के रूप में भी सोचना पड़ेगा, आखिर गलती कहाँ हो रही है। मुझे तो लगता है कि इंटरनेट की सहज उपलब्धता और अनियंत्रित एवं असलील सामग्री की उपलब्धता बच्चों को उम्र से पहले ही जिंदगी के उन पहलू से रूबरू करा देती है जिसको समझने और सहेजने की चेतना उनमें विकसित नहीं हुई है।
घर के सभी सदस्यों का अपना अलग घरौंदा सा बन गया है जिसे मोबाइल फोन ने खड़ा किया है। हम साथ मे रहते हैं लेकिन संवादहीनता की स्थिति है। आभासी दुनिया से वैलकनेक्टेड हैं लेकिन अपनों के लिए वक्त नहीं है। नई पीढ़ी आभासी दुनिया को सत्य और वास्तविक दुनिया को झूठ मानने में खुद को समझदार समझने लगी है। परिणामस्वरूप नए प्रतिमान बनने लगे हैं। जिसके चलते क्लास के टॉपर बंटी की जगह स्कोरिंग बंटी को महत्व मिल रहा है और अपेक्षा की जाती है कि वह स्वैपिंग मास्टर भी हो।
मैं अब देखती हूँ अपने बेटा को बचाने के लिए क्या कर पाती हूँ। इस जानकारी के लिए आभार ।"
