Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Others

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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

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अकाय - पार्ट 16

अकाय - पार्ट 16

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रिक्शा से उतरते ही सामने राधा को उसकी बेस्ट फ्रेंड वंदना मिल गयी। दोनो गले मिलीं फिर लाइब्रेरी की तरफ चल दीं ।सत्यम भी उनके साथ ही चल रहा था ।दोनो आपस मे फुसफुसा कर बात कर रहीं थी। लेकिन अकाय सत्यम को उस फुसफुसाहट को सुन पाना कोई कठिन काम नहीं था।

वंदना ने कहा " तुम्हारे चेहरे पर जो तनाव दिख रहा है उसका कारण कहीं वह मजनू मुरारी तो नहीं है?" 

राधा ने हाँ में सिर हिलाया और बड़े ही लाचारी भरे लहजे में कहा - देखो उसका हौसला दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। कल उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोला " बोल राधा बोल संगम होगा कि नहीं"। मैं यह बात अपने पापा से नहीं बता रही हूँ क्योंकि वो माँ की बीमारी को लेकर पहले से ही परेशान हैं। ऊपर से यह बड़े बाप की बिगड़ी औलाद है।

वंदना - अभी थोड़ी देर पहले कैंपस में दिखा था। शायद तुमको ही ढूंढ रहा होगा।चलो लाइब्रेरी में बैठते हैं क्योंकि परिहार सर अभी अपने केबिन में नहीं हैं।

अच्छा तुम उससे कैसे निबटेगी ? वह तो एक नंबर का लोफर है।

राधा - वही सोंच रही हूँ क्या करूँ ? आज यदि मेरा सत्यम होता तो इसको बरोबर समझा देता और इसकी सारी इश्कबाजी का नाड़ा ढीला हो जाता। वह मेरे को लेकर बहुत ही पोजेसिव था। मुझे समझ मे नहीं आ रहा है क्यों वह पागल की तरह मेरे पीछे पड़ा है! यदि एग्जाम सर पर नहीं होता और यह प्रोजेक्ट का झंझट नहीं होता तो मैं कॉलेज आना ही छोड़ देती।


वंदना - यार सुना है, परिहार सर यूनिवर्सिटी के क्वेश्चन पेपर के मॉडरेटर हैं। काश वो हमें क्वेश्चन दे देते। फिर उसी का राटा मारकर अपनी नाव पार हो जाती। लेकिन बड़े खड़ूस हैं। लोग कहते हैं जिस दिन वो हँसते हैं बारिस होने लगती है।

फिर दोनो हँसते हुए लाइब्रेरी के तरफ बढ़ गईं। राधा ने एक बुक इशू कराया और वंदना ने अपना बुक एक्सटेंड कराया। फिर लाइब्रेरी में बैठकर दोनो पढ़ने लगी । उनको मेहता साहब का इंतजार था क्योंकि उनको प्रोजेक्ट पेपर सबमिट करना था और वो दो घंटे बाद आने वाले थे।

लाइब्रेरी में दोनो बैठकर पढ़ने लगीं।राधा पढ़ने में व्यस्त थी और सत्यम उसको देखने में। वह अपलक उसको देख रहा था । जब वह जिंदा था तब भी राधा की खूबसूरती का इतने इत्मीनान से नयनभोग नहीं कर पाता था। एक तो मिलने का मौका भी छुप छुपा के मिलता था । ऊपर से राधा ठहरी एकदम संस्कारी लड़की। कभी-कभी तो उसको शक होने लगता था कि वह उसको प्यार भी करती है या नहीं। एक बार उसने सत्यम का घूरना नोटिस कर लिया था । फिर उसने कहा था " मुझे यों घूरा न करो तेरी नजरें चुभती हैं , दूसरी बात मेरी दादी कहती है कि मुझे नजर बहुत जल्दी लगती है।"

आज वह इतने करीब से निहार रहा है , उसको कोई एहसास नहीं, कोई प्रतिरोध नहीं, कोई अवरोध नहीं । वह तो अभी एकदम फुर्सत में था और निर्बाधित होकर अपनी प्रेमिका का सौन्दर्यपान कर रहा था। वह अपना काम कर रही थी ,वह अपना काम कर रहा था ।


तभी वंदना को सामने से परिहार सर आते दिखे। उसने कोहनी मारकर धीरे से राधा से कहा " काश! परिहार सर आकर सामने बैठते और आनेवाले सभी प्रश्न बता देते , हम लोग केवल उतना ही पढ़कर टॉप कर जाते ।"

 सत्यम ने सोंचा चलो आज अकाय होने का कुछ फायदा तो अपनी राधा को करा देता हूँ। वह परिहार जी के शरीर मे प्रवेश कर गया और आकर उनके सामने बैठ गया। दोनो ने प्रोफेसर परिहार को ग्रीट किया , फिर अपने पुस्तक में व्यस्त होने का दिखावा करने लगीं। परिहार बने सत्यम ने इस बात को पकड़ लिया। उनको कम्फ़र्टेबल फील कराने के लिए उसने पूछा "एग्जाम की तैयारी कैसी है तुम दोनो की ? यदि कोई प्रॉब्लम हो तो बेझिझक बोलो मैं मदद करने की कोशिश करूंगा।"

परिहार सर के मुँह से यह बात सुनकर दोनो को बड़ा आश्चर्य हुआ। क्योंकि वो बड़े ही रिज़र्व नेचर के और खड़ूस व्यक्ति हैं। लेकिन वंदना ने उनके अच्छे मूड का फायदा उठाने का सोंचा। वह बोली " सर हमने सुना है आपका गेस क्वेश्चन 90% तक सही निकलते हैं। यदि आप बता देते तो ,टिप्स भी चलेगा, हमलोगों का कल्याण हो जाता।" परिहार जी ने वंदना की कॉपी लेकर उसपर कुछ क्वेश्चन लिख दिया और कहा " मैं उम्मीद करता हूँ इतने का यदि सही से तैयारी कर लिया तो तुमको अच्छे मार्क्स से पास होने से कोई नहीं रोक सकता है। अपने अनुभव के आधार पर यह कह सकता हूँ।"

फिर अपना बुक उठाकर वो लाइब्रेरी से बाहर चले गए। दोनो एक दूसरे को आश्चर्य से देख रही हैं। दोनो के मन मे एक ही प्रश्न " जो अभी हुआ वह हुआ कि नहीं हुआ !" लेकिन कॉपी में उनके हाथ से लिखे हर सब्जेक्ट में सात क्वेश्चन थे।

फिर सत्यम परिहार जी के शरीर से निकलकर उनके पास आकर बैठ गया। उनके मन में उतपन्न आशंका को वह समझ रहा था लेकिन उसे वह दूर कैसे करे समझ मे नहीं आ रहा था। वह कैसे बताए कि यह ओरिजिनल क्वेश्चन पेपर है जो प्रेस में छपने को गया है। थोड़े समय के लिए उसने परिहार जी के ब्रेन को अपने कब्जे में लेकर यह काम कर दिया था। लेकिन इनको कैसे यकीन होगा कि यही हुबहू आने वाला है। इसको दोनो सहेलियां गेस ही समझती रहें, नहीं तो परिहार जी पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा।

दोनो सहेलियां अपने बुक में उलझी थी तभी मुरारी भी लाइब्रेरी में पहुँच गया। वह सीधे आकर उनके सामने खड़ा हो गया। वह राधा का ध्यान आकर्षित करने के इरादे से बोला "क्या मैं भी यहाँ बैठकर पढ़ सकता हूँ?"

राधा ने कोई जबाब नहीं दिया लेकिन वंदना बोली "लाइब्रेरी किसी की बपौती नहीं है । कोई भी कहीं भी बैठकर पढ़ सकता है । इसमे पूछने या अनुमति लेने का सवाल नहीं है।"

मुरारी ने कहा कि मिस वंदना मैंने आप से नहीं किसी और से अनुमति मांगी है।आप से जब कुछ मांगूगा तब अपनी राय देना। वंदना ने भी उसी तल्ख लहजे में कहा "मिस्टर मुरारी आपने किसी का नाम नहीं लिया और मैं भी यहाँ उपस्थित हूँ तो जबाब देने का मुझे पूरा हक है। दूसरी बात यह मेरी सहेली है और आपसे जब वह बात नहीं करना चाहती है तो क्यों इसको तंग कर रहे हो ?"

मुरारी - मेरी मर्जी, तुम क्यों कबाब में हड्डी बनने की कोशिश कर रही हो।जो भी बोलना है उसको बोलने दो। तुम्हारा मुंह बंद रखना ही तुम्हारे हक में फायदेमंद रहेगा।

इतना कहकर मुरारी ने राधा के ठीक सामने वाले चेयर को पीछे किया और बैठने लगा। उसकी नजर राधा के चेहरे पे गड़ी हुई थी , उत्तर की प्रतीक्षा थी, सकारात्मक संकेत की अपेक्षा थी। अपनी मजनुगिरी के इतिहास में उसने कभी भी किसी लड़की पर इतना समय खराब नहीं किया था। राधा अब उसके लिस्ट में जुड़ने वाली महज एक और नाम नहीं रह गयी थी बल्की उसके "लेडी किलर" व्यक्तित्व पर भी प्रश्नचिन्ह बन गयी थी। अतः उसने भले आधा हो मगर राधा हो की जिद्द पकड़ ली थी।

वह कुर्सी पर बैठे उसके पहले ही सत्यम उसके चेयर को पीछे की तरफ खिसका दिया।नतीजतन मुरारी धम से जमीन पर बैठ गया और उसके पीठ में में भी जोरदार चोट लगी। उसके गिरने से एक धडाम की आवाज हुई जिसके चलते लाइब्रेरी में बैठे सभी की नजर उस तरफ मुड़ गयी। उसको थसकमार लगी थी और राधा के सामने हास्यास्पद स्थिती बनी सो अलग। दूसरे दो लड़कों ने सहारा देकर उठाया। वंदना उसकी इस हालत पर अपनी हँसी रोक नहीं पाई ।वहीं राधा के होठों पर भी उपेक्षा भरी मुस्कान रेंग कर निकल गयी।

मुरारी ने मन ही मन कहा अच्छा फिर कभी देखता हूँ तुमको ,लेकिन छोडूंगा नहीं छेड़ता रहूंगा जबतक संगम नहीं होगा। उसके मन की बात जानकर सत्यम को और गुस्सा आ गया। किताब की अलमीरा का सहारा लेकर अभी वह चंद कदम बढ़ा था की एक स्टैंड-अलोन बूकसेल्फ़ उसके ऊपर सामने से आ गिरा।इसबार वह नीचें और किताबें ऊपर थीं। मुरारी के चरित्र से परिचित एक सज्जन ने कहा मुरारी को लाइब्रेरी में देख सभी नारीप्रधान पुस्तकें उससे मिलने के लिए उसपर टूट पडीं।अब मुरारी की हालत अपने से चलकर जाने लायक नहीं बची थी।

मेहता जी निर्धारित समय पर आ गए थे। उनसे मिलकर दोनो ने अपना पेपर सबमिट किया फिर कैंपस से बाहर निकली। जिधर से गुजरो आज लाइब्रेरी में मुरारी के साथ हुई घटना ही चर्चा में छाई थी। गर्ल्स कॉमन रूम में तो यह 'टॉपिक ऑफ द डे ' बना हुआ था। कॉलेज की शायद ही कोई खूबसूरत लड़की हो जिसका उसकी बदतमीजी से सामना नही हुआ हो। उसके खिलाफ शिकायत का भी कोई मतलब नहीं होता क्योंकि वह कॉलेज के दबंग ट्रस्टी का इकलौता बेटा था। उसके चरित्र का साक्षात प्रमाण पा चुकी एक लड़की ने कहा भगवान के यहाँ देर है लेकिन अंधेर नहीं।

वंदना और राधा एक ही रिक्शा में घर वापस लौट रही थी। और दोनों को अंदाजा नहीं था कि उनकी निहायत ही जनानी बातों को कोई पुरुष एकदम स्पष्टता से सुन रहा है।

आज सत्यम को पहली बार यह ज्ञात हुआ कि लड़कीयों या औरतों की कुछ बाते इतनी जनानी होती हैं जिसकी कल्पना भी कोई पुरुष नहीं कर सकता । जैसे बिल्ली को घी नही पचती वैसे ही नारी जात से बात नहीं पचती ।लेकिन यह धारणा गलत है। जो बात निहायत ही स्त्रैण हो उसकी भनक औरत अपने पति को भी नहीं होने देती है।

आज पहली बार सत्यम को पुरुष और महिला के स्वभाव का स्वभाविक अंतर ज्ञात हुआ। औरत अपने दुख को दूसरी औरत से खुलकर कहकर हल्का महसूस करती है । पुरुष अपने दुख को तबतक दूसरे से नहीं कहता जबतक उसका समाधान उसको नहीं मिल जाता। यही कारण है कि परेशानी में पुरुष शांत होकर समाधान खोजता है और औरत दूसरी औरत से अपनी परेशानी शेयर करके शांत होती है क्योंकि वो सहानुभुति पसंद करती है। पुरुष को सहानुभूति अपना अपमान लगता है। यही कारण है कि वह अपनी समस्या से संघर्ष करता है लेकिन खुलकर बात नहीं करता। सफल होने पर अपनी संघर्ष गाथा को गर्व से बयान करता है।

वंदना का घर पहले आता था अतः वह बीच रास्ते ही रिक्शा से उतार गयी।अब रिक्शा पर सिर्फ सत्यम और राधा ही थे।दोनो की स्थिती बड़ी अजीबोगरीब थी। सत्यम राधा को देख सकता था सुन सकता था लेकिन उसको महसूस नहीं करा सकता था। राधा सत्यम को देख नहीं सकती थी फिर भी अपने दिल मे महसूस करती थी। लेकिन अपनी भावना को संप्रेषित नहीं कर सकती थी। आज मुरारी के साथ जो कुछ भी हुआ वह महज एक संयोग नहीं हो सकता है। यह सोंच बार बार राधा के मन मे उठ रहा था। उसको इसमे कुछ राज लग रहा था और उस राज का तार उसके सत्यम से जुड़ा हो सकता है। लेकिन उसका सत्यापन कैसे करे ? इधर सत्यम अवरोधविहीन राधा के सानिध्य का लाभ ले रहा था और अपने को अकाय होने पर भाग्यशाली समझ रहा था।


क्रमशः ----------------


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